तुम, मेहरबानी करके ले आना
मेरे बेजान शरीर को
फादर कोबरू की मिट्टी के करीब
आग की लपटों के बीच
मेरी लाश का बादल जाना
अधजली लकड़ियों में
उसे टुकड़े-टुकड़े करना
फावड़े और कुल्हाड़े से
नफ़रत से भर देता है
मेरे मन को
बाहरी आवरण का सूख जाना लाजमी है
इसे जमीन के अंदर सड़ने दो
कुछ तो काम आये यह
आने वाली नस्लों के
इसे बदल जाने दो
खदान की कच्ची धातु में
मैं अमन की खुशबू
फैलाऊंगी अपने जन्मस्थल
कांगली से
जो आने वाले युगों में
फ़ैल जायेगी
सारी दुनिया में
(देश-विदेश, अंक-10 में प्रकाशित. अंग्रेजी से अनुवाद पारिजात )
sources- http://vikalpmanch.blogspot.in
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