इरोम शर्मिला के आमरण अनशन के समर्थन और सैन्य बल (विशेष अधिकार ) अधिनियम 


1958 के विरोध में एकजुट हों 


पिछले नवम्बर 2010 को इरोम शर्मिला के आमरण अनशन के 10 साल पूरे हो रहे है। यह सम्भवतः इतिहास का सबसे लम्बा अनशन हैं। शर्मिला मणिपूर में लागू ‘‘सैन्य बल (विषेष अधिकार ) अधिनियम 1958’’ के वापसी की मांग को लेकर पिछले 10 साल से लगातार आमरण अनशन कर रही हैं।

राज्य द्वारा अपने ही नागरिकों के विरुद्ध किये जा रहे क्रुरता, दमन और हिंसा के प्रतिरोध में इरोम शर्मिला का यह बहादुराना संघर्ष अपने आप में एक अनोखी मिसाल है, जिसमें उन्होनें अपने अडिग संकल्प से राजकीय हिंसा का अहिंसात्मक प्रतिरोध किया है। 

इस प्रतिरोध को समझने के लिए मणिपूर की स्थिति को समझना होगा। मणिपूर का भारत में विलय 1949 में हुआ था। 1950 से ही इस क्षेत्र में मणिपूर अस्मिता के आधार पर अलग राज्य की मांग उठने लगी। भारत सरकार ने इसका जवाब सैन्य कार्यवाही से दिया। इसके परिणामस्वरुप मणिपूर को 1958 से ‘‘सैन्य बल (विशेष  अधिकार ) अधिनियम ’’ के अर्न्तगत लाया गया। 

इस कानून के माध्यम से भारतीय सशस्त्र सेनाओं को बिना किसी वारंट के गिरफ्तार करने, किसी भवन या बसाहट को नष्ट करने और सिर्फ शक के आधार पर किसी व्यक्ति को गोली मार देने तक की अनुमति है। इस कानून के माध्यम से पीड़ित व्यक्ति द्वारा न्यायलय से मदद लेने और किसी भी सैन्यकर्मी पर बिना सरकारी पूर्व स्वीकृति के मुकदमा चलाने की अनुमति पर रोक लगा दी गई है। 

इस तरह के दमनकारी कानूनों का सबसे ज्यादा नकारात्मक प्रभाव महिलाओं पर पड़ता है। इस कारण मणिपूर की लोगो विशेषकर महिलाओं द्वारा इस कानून का लगातार विरोध किया जा रहा है। महिलाओं ने सशस्त्र राज्य की ताकत के खिलाफ अपने शरीर को अंतिम हथियार के रुप में इस्तेमाल किया है। 2004 में 12 महिलाओं ने सैन्य मुख्यालय के सामने निःवस्त्र हो कर एक युवा महिला की हिरासत में बलात्कार और मौत के खिलाफ प्रदर्षन किया था। इन परिस्थितियों में हमारे देश के सबसे बड़े लोकतंात्रिक राष्ट्र होने के दावे पर सवालिया निशान लगता है। 

 1998 में सेना द्वारा कुछ युवाओं को गोली मार देने की घटना से आहत हो कर इरोम शर्मिला ने आमरण अनशन शुरु किया। उनकी दो ही मांगें है


[ 1]  मणिपूर से सेना और सैन्य बल (विशेष  अधिकार ) अधिनियम की वापसी  

[2]   मणिपूर में शांति की बहाली। 

10 साल का अनशन भी उनके आत्मविष्वास को डिगा नही सका है। सरकार द्वारा उन्हे नजरबंद कर रखा है और जबरदस्ती नाक के रास्ते उन्हे जिंदा रखने के लिए तरल पदार्थ दिया जाता है। 

बद्तर होती स्थितियां हम सब को यह पूछने पर मजबूर कर रही है कि क्या एक लोकतंत्रिक राज्य को ऐसा कानून या नीतियां बनाने का अधिकार है जो सामान्य नागरिकों के सवैधानिक अधिकारों का हनन करता हैं।  

हम इरोम शर्मिला के संघर्ष को सलाम करते है और राज्य से मांग करते है कि मणिपूर से सेना और सैन्य बल (विशेष अधिकार ) अधिनियम को तत्काल वापस ले कर वहां शांति की बहाली की जाये। साथ ही हम देश के दूसरे हिस्सो में लागु इस तरह के जन विराधी कानुनों को निरस्त किया जाये।

हम आपसे अपील करते है कि आप इरोम शर्मिला  के संघर्ष के समर्थन मे आगे आये !

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मणिपुर में महिलाओं के निर्वस्त्र पर्दर्शन  पर कवि अंशु  मालवीय की कविता 

 

देखो हमें

हम माँस के थरथराते झंडे हैं

देखो बीच चौराहे बरहना हैं हमारी वही छातियाँ

जिनके बीच

तिरंगा गाड़ देना चाहते थे तुम

देखो सरे राह उघड़ी हुई

ये वही जाँघें हैं

जिन पर संगीनों से 

अपनी मर्दानगी का राष्ट्रगीत

लिखते आये हो तुम

हम निकल आये हैं

यूं ही सड़क पर

जैसे बूटों से कुचली हुई

मणिपुर की क्षुब्ध तलझती धरती

 

अपने राष्ट्र से कहो घूरे हमें

अपनी राजनीति से कहो हमारा बलात्कार करे 

अपनी सभ्यता से कहो

हमारा सिर कुचलकर जंगल में फेंक दे हमें

अपनी फौज से कहो

हमारी छोटी उंगलियाँ काटकर

स्टार की जगह टाँक ले वर्दी पर

हम नंगे निकल आये हैं सड़क पर

अपने सवालों की तरह नंगे

हम नंगे निकल आये हैं सड़क पर

जैसे कड़कती है बिजली आसमान में

बिलकुल नंगी......

हम माँस के थरथराते झंडे हैं।




( नागरिक अधिकार मंच और साथी संगठनों द्वारा 2 नवम्बर 2010 को इरोम शर्मिला के संधर्ष के समर्थन एवॅ सैन्य बल (विशेष अधिकार ) अधिनियम के विरोध में बोर्ड आफिस चौराहा एम.पी. नगर में एक दिवसीय अनशन  एवं आम सभा के दौरान जारी परचा )