व्यंग्य 

अथ श्रीमति इंद्राणी कथा...............


देश की जनता उदास बैठी थी। बरसात न होने के कारण फसलें सूख रहीं थीं और किसान अपने सर धुन रहे थे। बाबू लोग दफतरों में मक्खियां मार रहे थे। बहुत दिनों से राजनीति में कोई जुमला नहीं उछाला गया था। भले अपने परिधानमंत्री को उनकी ही पार्टी के अध्यक्ष महोदय जुमलेबाज कह के निकल जायें पर उनके जुमले देष के बहुत हितकारी होते हैं। देष के हजारों लाखों बेरोजगार युवक उनके की जुगाली करते हुये अपना कौषल विकास कर रहे हैं। वही नहीं तमाम बारोजगार लोग भी इन्हीं जुमलों के सहारे अपनी नौकरी की सरकारी कुर्सिंयां तोडते हुये रिटायरमेंट का इंतजार कर रहे हैं। वे लोग अभी कुछ दिन से बडे निराष थे। चर्चा करने के लिये कोई तडकता फडकता जुमला मौजूद नहीं था और उसके अभाव में अपने बाबू भाई लोंगों को काम करना पड रहा था। हमारे देष के सरकारी आदमी से काम मत करवाओ चाहे घूमने के लिये अंडमान की सेल्यूलर जेल भेज दो। दफतर में आने वाला हर आदमी उनको अपना पैदायषी दुष्मन नजर आता है। हां अगर उसने खर्चापानी देने का इशारा दिया तो फिर अपना सगा भाई।
तो एसे ही बेकारी के आलम में मायानगरी मुंबई में एक कांड हो गया जिसे जगत में शीना मर्डर केस के रूप देशव्यापी ख्याति अर्जित की है। एक बडे मीडिया हाउस की वर्तमान श्रीमति जी इस किस्से या कांड की स्वनामधन्य नायिका हैं। वाट्सएप और फेसबुक धन्य हो गये। गलियों, चैपालों और कार्यालयों में फैली उबासी पलक झपकते ही गायब हो गई। अरे बाप रे! तीन-तीन पति। और तीसरे पति की दो-दो पत्नियां!  एतराज। गंभीर एतराज। तुम कोई महाराज दशरथ हो जो तीन पत्नियां पालोगे? या कोई गांधारी हो जो पांच पतियों का सुख भोग करोगी? पर क्या किया जाये भैया घोर कलजुग आ गया है। जो न हो जाये वह थोडा है। अधिकतर की साझी तकलीफ यह है कि हाय.......हम न हुये ।हम क्यों न हुये? हमें तो अपने मोहल्ले में ही कोई पंूछ नहीं रहा है। कई तो वरदिखाई का इंतजार करते करते ही बूढे हो गये पर बधु का चेहरा देखना नसीब न हुआ और यहां शादी फिर तलाक और फिर शादी। मानों बच्चों का कोई खेल हो। हम कभी किसी उमुदराज हो चली महिला की अतिरंजित तारीफ करना चाहते थे तो चाहते थे तो उसको मक्खन लगाते हुये कहते थे कि आप तो अपनी उम्र से बहुत कम दिखतीं हैं। आपकी बेटी तो आपकी बहन जैसी लगती है। इस कांड की नायिका ने तो एसा कर के दिखा दिया। उसने अपनी बेटी को बहन साबित कर दो दो विवाह रचा डाले। अब भाई शिकायत क्या करना। जिसका नाम इंद्राणी हो वह इंद्र की लीलाओं से प्रभावित नहीं होगी क्या?
मैडम के पति महोदय एक मीडिया हाउस के मालिक हैं। उनको भी मीडिया ने बख्शा नहीं। हमारा मीडिया फायदे की खबर के आगे किसी को नहीं छोडता। खबर में सनसनी हो तो वे अपनी भी खबर एसी ही चलायें। महाशय के चैनल पर ही पारिवारिक षड्यंत्रों केे सालोंसाल लगातार चलने वाले मसालेदार सीरियल चलते रहते हैं पर उन्हें कानोकान खबर न हो पाई और उनकी ही सौतेली बेटी साली बनकर उनके सगे बेटे के साथ इश्क कर बैठी। पत्नि साक्षात इंद्र का अवतार सही पर बेटी की इस हरकत को सह न पाईं। हम अपने संबंधों में कितने भी आधुनिक क्यों न हो जायें पर बच्चों से समाज के पुरातन नियम मानने की अपेक्षा करते हैं। बेटी को मरवा दिया मैडम ने और हम चटखारे ले लेकर खबर की तिक्काबोटी में लगे हुये हैं। मीडिया जो दिखता है वह बिकता है के नियम पर चलते हुये देश की तमाम जरूरी खबरों की हत्या करते हुये इंद्राणी जाप करने में लगा हुआ है। इस बीच देश भर के मजदूरों ने अपने हकों पर डाका डालने की सरकारी कोशिशों के खिलाफ देशव्यापी हडताल भी कर डाली पर मीडिया अपने सिद्धांतों से जौ भर भी नहीं डिगा और मजाल है कि आप हडताल के बारे में उससे ज्यादा कुछ भी जान पायें कि इससे यातायात में परेशानी हुई। यह मीडिया का सिर्फ लाभ कमाने का मामला नहीं है बल्कि खबर पैदा करने की सलाहियत है जिसमें नकली सनसनी के बीच जनता के असली सरोकार दम तोड देते हैं।
- सत्यम सत्येन्द्र पाण्डेय