विघटनकारी एजेण्डा
-राम पुनियानी
इस साल मई में मोदी सरकार अपना एक साल पूरा कर
लेगी। गुजरा साल, मुख्यतः, समाज में अलगाव और विघटन पैदा करने वाली राजनीति के नाम रहा। जहां मोदी
का चुनाव अभियान विकास पर केंद्रित था वहीं उन्होंने सांप्रदायिक मुद्दे उठाने में
भी कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी। बांग्लाभाषी मुसलमानों को बंगलादेशी बताया गया और ‘‘पिंक रेवोल्यूशन’’ की चर्चा हुई।
उद्देश्य था, अपरोक्ष रूप से
मुसलमानों का दानवीकरण।
मोदी सरकार की नीतियों में हिंदू राष्ट्रवाद के
भाजपाई एजेण्डे का खुलकर प्रकटीकरण हुआ। गणतंत्र दिवस 2015 के अवसर पर सरकार
द्वारा जारी विज्ञापन में संविधान की उद्देशिका से ‘‘धर्मनिरपेक्ष’’ व ‘‘समाजवादी’’ शब्द गायब थे।
केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज ने हिंदू धर्मग्रंथ ‘‘भगवत गीता’’ को राष्ट्रीय
पुस्तक का दर्जा देने की मांग की। एक अन्य केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति
ने सभी गैर-हिंदुओं को हरामजादा बताया तो अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री नज़मा
हैपतुल्लाह ने फरमाया कि मुसलमान अल्पसंख्यक नहीं हैं क्योंकि देश में उनकी खासी
आबादी है। पौराणिक कथाओं को ऐतिहासिक बताया जा रहा है और मुंबई में एक आधुनिक
अस्पताल का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि ‘‘प्राचीन भारत में
प्लास्टिक सर्जरी होती थी और यहां तक कि मानव शरीर पर जानवरों के सिर के
प्रत्यारोपण की तकनीक भी उपलब्ध थी’’। इस साल आयोजित इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस में ऐसे कई ‘‘शोध प्रबंध’’ प्रस्तुत किए गए
जिनमें इतिहास को फंतासी बना दिया गया।
पिछली एनडीए सरकार के शासनकाल में स्कूली
पाठ्यपुस्तकों को सांप्रदायिक रंग दिया गया। ऐसी पुस्तकें पढ़ाई जाने लगीं जिनमें
ऐतिहासिक घटनाओं का प्रस्तुतिकरण केवल और केवल धार्मिक व सांप्रदायिक दृष्टिकोण से
किया गया था। अब एक बार फिर, शिक्षा के भगवाकरण की बात कही जा रही है। देश की शीर्ष अनुसंधान संस्थाओं
में आरएसएस-हिंदू राष्ट्रवाद की विचारधारा से जुड़े लोगों की नियुक्तियां हो रही
हैं। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर) के अध्यक्ष पद पर प्रोफेसर सुदर्शन
राव की नियुक्ति इसी का उदाहरण है। प्रोफेसर राव की अकादमिक क्षेत्र में कोई
उपलब्धि नहीं है। उनका लेखन केवल कुछ ब्लागों तक सीमित है और वे जातिप्रथा को
न्यायपूर्ण व उचित ठहराते हैं। उनका कहना है कि जातिप्रथा से किसी को कभी कोई शिकायत
नहीं रही। वे पौराणिक कथाओं को इतिहास के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं। जाहिर
है कि यह वैज्ञानिक सोच और तार्किकता पर प्रहार होगा। हमारे संविधान में वैज्ञानिक
सोच को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी सरकार को सौंपी गई है परंतु अनुसंधान व शिक्षण
के क्षेत्रों में वैज्ञानिक सोच का मखौल बनाया जा रहा है और अंधविश्वासों व
अंधश्रद्धा को बढ़ावा दिया जा रहा है।
विचारधारा के स्तर पर भाजपा नेता और सांसद इस तरह
की बातें कह रहे हैं जो भारतीय राष्ट्रवाद के सिद्धांतों और मूल्यों के खिलाफ हैं।
भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताया और केरल के एक भाजपा
नेता ने कहा कि गोडसे ने जो कुछ किया वह ठीक था परंतु उसे गांधीजी की बजाए नेहरू
की हत्या करनी थी। हिंदू राष्ट्रवादी संगठन, गोडसे की मूर्तियां
स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। सोनिया गांधी के संबंध में गिरिराज सिंह की
नस्लीय टिप्पणी निहायत कुत्सित व घिनौनी थी। इसके पहले किसी मंत्री ने यह कहा था
कि जो लोग मोदी को वोट देना नहीं चाहते उन्हें पाकिस्तान चले जाना चाहिए।
धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा फैलाने वाली
बातें लगातार कही जा रही हैं। पुणे में बाल ठाकरे के कुछ कार्टूननुमा चित्र सोशल
मीडिया पर अपलोड किए जाने के बाद, हिंदू जागरण सेना के कार्यकर्ताओं ने मोहसिन शेख नाम के एक युवक, जो किसी आईटी कंपनी
में काम करता था, को सड़क पर पीट-पीटकर मार डाला। साध्वी प्राची और साक्षी महाराज हिंदू
महिलाओं को यह सलाह दे रहे हैं कि वे ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करें। योगी
आदित्यनाथ का कहना है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों को हिंदुओं के पवित्र स्थलों पर
नहीं जाना चाहिए। जब सानिया मिर्जा को आंध्रप्रदेश का ब्रांड एंबेसेडर नियुक्त
किया गया तब कई भाजपा नेताओं ने इसका यह कहकर विरोध किया कि वे पाकिस्तान की बहू
हैं। भाजपा के सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि चर्चों और मस्जिदों को ढहाया जा सकता
है। भाजपा से जुड़ी शिवसेना के संजय राऊत ने मांग की कि मुसलमानों को मताधिकार से
वंचित किया जाना चाहिए।
हम सब को याद है कि दिल्ली में भाजपा की सरकार
बनने से पहले भी भाजपा और उससे जुड़े संगठन लवजिहाद और घरवापसी जैसे मुद्दों को
लेकर समाज में सांप्रदायिकता का जहर घोल रहे थे। ये मुद्दे गुजरे वर्ष भी छाये
रहे। दिल्ली, मुंबई के पास पनवेल
व हरियाणा सहित देशभर के कई स्थानों पर चर्चों पर हमले हुए और इन हमलों के दोषियों
को पकड़ने के लिए सरकार व पुलिस ने समुचित कार्यवाही नहीं की।
पिछले वर्ष देशभर में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं
में भी तेजी से वृद्धि हुई। हां, एक फर्क जरूर था और वह यह कि हिंसा अब छोटे पैमाने पर की जाती है। कहीं
एक दुकान जला दी जाती है तो कहीं किसी आराधना स्थल पर पत्थरबाजी होती है। इसके बाद
हिंसा भड़कती है जिसके नतीजे में विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच अलगाव बढ़ता है।
धार्मिक आधार पर समाज का विभाजन, असहनीय स्तर तक बढ़ चुका है। धार्मिक स्थलों पर हमले और अल्पसंख्यकों के
खिलाफ हिंसा, हमारे संविधान में
निहित स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मूल्यों की नींव को कमजोर कर रहे हैं। अल्पसंख्यक
समुदाय के कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने अपने क्षोभ व दुःख को स्वर देते हुए कहा है
कि उन्हें ऐसा लगने लगा है मानो वे इस देश के नागरिक ही नहीं हैं।
जब भी कोई गैर-जिम्मेदाराना व घृणा फैलाने वाली
बात किसी व्यक्ति द्वारा कही जाती है तो भाजपा प्रवक्ता यह कहकर उससे पल्ला झाड़
लेते हैं कि जो कुछ भी कहा गया है, वे संबंधित व्यक्ति के व्यक्तिगत विचार हैं। इसके अतिरिक्त, भाजपा यह दावा भी
करती है कि विहिप, वनवासी कल्याण आश्रम, बजरंगदल आदि स्वतंत्र संगठन हैं जिनपर उसका कोई नियंत्रण नहीं है और ना
ही उनके नेताओं द्वारा कही जाने वाली बातों के लिए वह जिम्मेदार है। जबकि सच यह है
कि भाजपा और इन सभी संगठनों पर आरएसएस का पूर्ण नियंत्रण है और ये संघ परिवार के
सदस्य हैं। ये सभी संगठन भाजपा के साथ मिलकर, हिंदू राष्ट्र के
एजेण्डे को साकार करने के लिए सुनियोजित व समन्वित प्रयास कर रहे हैं। यह मात्र
संयोग नहीं है कि ये सभी संगठन, जो तथाकथित रूप से ‘स्वतंत्र’ हैं एक-सी बातें और एक-सी हरकतें कर रहे हैं। कई लोगों का यह कहना है कि
ये संगठन कुछ अतिवादियों के समूह भर हैं। परंतु तथ्य यह है कि संघ परिवार ने सबको
अलग-अलग जिम्मेदारी सौंपी हुई है और वे संघ के निर्देशन में ही काम कर रहे हैं। यह
इस बात से भी जाहिर है कि भाजपा के सत्ता में आने के बाद से ये संगठन अत्यंत
आक्रामक हो उठे हैं।
भाजपा, भारतीय राष्ट्रवादी विभूतियों, जिन्होंने
साम्राज्यवाद-विरोधी संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय राष्ट्र के
विकास के लिए कार्य किया, को अपना बताने की कोशिश में जुटी हुई है। आरएसएस का कहना है कि महात्मा
गांधी संघ से बहुत प्रभावित थे। संघ का यह दावा भी है कि अंबेडकर और आरएसएस के
विचार एक से थे। ये झूठ सुनियोजित ढंग से व जानते-बूझते हुए मीडिया में ‘प्लांट’ किए जा रहे हैं
क्योंकि आरएसएस के किसी नेता ने स्वाधीनता संग्राम में कभी कोई हिस्सेदारी नहीं
की। यह प्रचार भारतीय राष्ट्र की मूल अवधारणा को कमजोर करने का प्रयास है। महात्मा
गांधी को केवल स्वच्छता अभियान के प्रतीक के रूप में प्रचारित किया जा रहा है और
हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए उनके संघर्ष को नजरअंदाज किया जा रहा है। हम केवल आशा
कर सकते हैं कि मोदी सरकार, हिंदू राष्ट्र के अपने एजेण्डे को त्याग कर, भारतीय संविधान में
निहित मूल्यों को मजबूती देने का प्रयास करेगी। सत्ता पर काबिज लोगों को यह याद
रखना चाहिए कि देश को बांटने के भयावह परिणाम हो सकते हैं।
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