९४६ में गाज़ीपुर में जन्मे अफ़ज़ाल अहमद सय्यद के माता-पिता बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए थे. फ़िलहाल कराची में रहकर पत्रकारिता करने वाले अफ़ज़ाल को हिन्दी पाठकों के सम्मुख लाने का बड़ा काम ज्ञानरंजन जी द्वारा संपादित पत्रिका 'पहल' ने किया था. 'पहल' का वह पूरा का पूरा अंक अफ़ज़ाल अहमद की कविताओं का चयन ही था. 'छीनी हुई तारीख़', 'दो ज़बानों में सज़ा-ए-मौत' और 'खेमः-ए-सियाह' उनके प्रमुख काव्य-संग्रह हैं. अफ़ज़ाल ने गज़लें भी काफ़ी लिखी हैं पर पाकिस्तान के बाहर उनकी ख्याति उनकी नज़्मों की वजह से फैली.

भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे बड़े शायरों में शुमार किए जाने वाले अफ़ज़ाल अहमद ने बहुत पुरातन छवियों और विम्बों को बेहद आधुनिक शैली के साथ जोड़ कर अपना एक अलग अन्दाज़-ए-बयां ईजाद किया. आज प्रस्तुत है उनकी कुछ कवितायें :


शायरी मैंने ईजाद की

काग़ज़ मराकशियों ने ईजाद किया
हुरूफ़ फ़ोनेशियनों ने
शायरी मैंने ईजाद की

कब्र खोदने वालों ने तन्दूर ईजाद किया
तन्दूर पर कब्ज़ा करने वालों ने रोटी की परची बनाई
रोटी लेने वालों ने क़तार ईजाद की
और मिलकर गाना सीखा

रोटी की क़तार में जब चींटियां भी आकर खड़ी हो गईं
तो फ़ाक़ा ईजाद हुआ

शहवत बेचने वाले ने रेशम का कीड़ा ईजाद किया
शायरी ने रेशम से लड़कियों के लिये लिबास बनाए
रेशम में मलबूस लड़कियों के लिए कुटनियों ने महलसरा ईजाद की
जहां जाकर उन्होंने रेशम के कीड़े का पता बता दिया

फ़ासले ने घोड़े के चार पांव ईजाद किए
तेज़ रफ़्तारी ने रथ बनाया
और जब शिकस्त ईजाद हुई
तो मुझे तेज़ रफ़्तार रथ के नीचे लिटा दिया गया
मगर उस वक़्त तक शायरी मुहब्बत की ईजाद कर चुकी थी

मुहब्बत ने दिल ईजाद किया
दिल ने खे़मा और कश्तियां बनाईं
और दूर दराज़ के मुक़ामात तय किए
ख़्वाज़ासरा ने मछली का कांटा ईजाद किया
और सोए हुए दिल में चुभो कर भाग गया

दिल में चुभे हुए कांटे की डोर थामने के लिए
नीलामी ईजाद हुई
और ज़ब्र ने आख़िरी बोली ईजाद की

मैंने शायरी बेचकर आग ख़रीदी
और ज़ब्र का हाथ जला दिया
मायने

(
ईजाद करना: आविष्कार करना, मराकश: मोरक्को, हुरूफ़: शब्द का बहुवचन, फ़ोनेशिया: भूमध्यसागर और लेबनान के बीच एक स्थान,फ़ाक़ा: भूख, शहवत: काम वासना, मलबूस: कपड़े धारण किए हुए, महलसरा: अंतःपुर, ख़्वाज़ासरा: हिजड़ा, ज़ब्र: दमन और अत्याचार)

अगर उन्हें मालूम हो जाये

अगर उन्हें मालूम हो जाये
हमें कैसे मारा जा सकता है
वो ज़िन्दगी को डराते हैं
मौत को रिश्वत देते हैं
उसकी आँख पर पट्टी बाँध देते हैं

वो हमें तोहफ़े में खंज़र भेजते हैं
और उम्मीद रखते हैं कि
हम खुद को हलाक कर लेंगे

वो चिड़ियाघर में
शेर के पिंजरे की जाली को कमज़ोर रखते हैं
और जब हम वहाँ सैर को जाते हैं
उस दिन वे शेर का रातिब बन्द कर देते हैं
जब चाँद टूटा-फ़ूटा नहीं होता
वो हमें एक जज़ीरे की सैर को बुलाते हैं
जहाँ न मारे जाने की जमानत का काग़ज़
वो कश्ती में इधर-उधर कर देते हैं

अगर उन्हें मालूम हो जाये
वो अच्छे कातिल नहीं
तो वो काँपने लगें
और उनकी नौकरियाँ छिन जायें

वो हमारे मारे जाने का ख़्वाब देखते हैं
और ताबीर की किताबों को जला देते हैं
वो हमारे नाम की कब्र खोदते हैं
और उसमें लूट का माल छिपा देते हैं

अगर उन्हें मालूम भी हो जाये
कि हमें कैसे मारा जा सकता है
फ़िर भी वे हमें नहीं मार सकते
मायने
………………………………………………-
रातिब-दाना-पानी
जज़ीरा-टापू

गुलदस्ते और दावतनामा

हम जो मौसिक़ी सुनने पहुँच जाते हैं
मौसिकार के लिए
किसी गुलदस्ते के बग़ैर
और नहीं जानते
पियानो के कितने पाये होते हैं
हम जिन्हें देखकर
कोई किसी खाली नशिस्त की तरफ़ इशारा नहीं करता
हम जो दीवार से लगकर खड़े हो जाते हैं
जहाँ बिल अखिर हमें खड़ा किया जाना है
क्वालीकोड से पियानो तक
मौसिक़ी ने बड़ा सफ़र तय किया है
जैसे हमने
खुद को दावतनामे के बगैर
बड़े दरवाज़े से आख़िरी दीवार तक पहुँचाया है
अपनी पेशकश के बाद
मौसिकार
तशक्कुर में झुक रही है
अब उसे फ़र्श पर खून नज़र आयेगा
हमारा खून
जो हर जगह
गुलदस्ते
और दावतनामे के बग़ैर
हमसे पहले पहुँच जाता है

मायने
…………………………………………-
नशिस्त-सीट
बिल अखिर-अन्त में
तशक्कुर में-आभार में

तौक़ और ताबीज़

उस वक्त का
जब तहरीर ईजाद हो चुकी थी
काँसे का एक टुकड़ा
नाकाबिले शिकस्त शीशों के पीछे
महफ़ूज़ है

कभी एक तौक से बँधे हुए इस टुकड़े पर
कहीं मैं भाग न जाऊँ
मुझे पकड़ लो
और मेरे आका विवेण्टियस की ज़मीनों पर
वापस कैलिस्टस भेज दो

नीचे लिखा है
माहिरीन
इस ताबीज़ को किसी कुत्ते की गर्दन से
मुनसलिक करते हैं

मायने
………………………………………………–
तहरीरलिखावट
नाकाबिले शिकस्त-जिन्हें तोड़ा न जा सके
मुनसलिक करना-जोड़ना
तौक़-क़ैदियों के गले में ज़ंजीर से लटकाया जाने वाला वज़नदार बिल्ला