-फैज़ कुरैशी
पिछले दिनों मैं किसी काम से भोपाल आया हुआ था। गर्मी बहुत तेज़ थी, शाम की दस्तक हो रही थी। मैने सोंचा कि इस विशालकाय, भव्य शॉपिंग मॉल में जाना चाहिये। कुछ खरिदारी करूं या नहीं घुम कर तो आउं, ए.सी. में ठंडक तो मिलेगी। पार्किंग में गाड़ी खड़ी की और अंदर कदम रखे। रेशमी हवा की ठंडक मिली ऐसा लगा कि जन्नत में आ गया हूँ । सुंदर चेहरे, बड़ी और मंहगी दुकाने, एक छत के निचे 4 टाकिज़ मेरे जैसे छोटे शहर से आने वाले के लिये सब अद्भूत था। सोंचा कि एकाध टीशर्ट खरीद लेता हूँ , फुर्सत भी है फिल्म भी देख लुंगा, देवास में तो ऐसा कुछ है भी नहीं। दुकानें देखीं, चाकलेट पेस्ट्री खाई, अमीरों को देखा- वे मुझ जैसों को हिकारत से देख रहे थे, और मेरे जैसों की नज़रें तो इन पर ही टीकी थीं। हिम्मत करके दुकान में घुसा, टीशर्ट 400रू., शर्ट 800 से उपर, जींस पेंट 1000 रू. से ज्यादा, सब कुछ देखकर लगा कि मेरे जैसे मध्यमवर्गीय परिवार वाले के लिये भी इसमें जगह नहीं है तो गरीबों के लिये ......।
मॉल में घुम रहा था, कुछ यादें ताज़ा हो गईं। 2004 में इस जगह पर लगभग 40 वर्ष पुरानी, 1600 परिवारों की बसाहट थी, जिसे संजय नगर कहा जाता था । जगह-जगह गाय-बैल-भैंस-बकरी बंधे होते थे, पीपल-ईमली के पेड़, बच्चों का टायर चलाना, महिलाओं का ओटले पर बैठना और ना जाने क्या-क्या था। ये अन्दर से देखने पर बिल्कुल गांव था। यहां पर लगभग सभी जातियों व समुदायों के लोग साथ-साथ रहते थे। रोजी-रोटी के लिए महिलाएं कार्यालयों में, घरों में व घर पर कुछ-कुछ काम करके परिवार में मदद करती थीं। पुरूष व युवा अलग-अलग तरह के काम सरकारी व नीजि दफतरों में, ठेला लगाकर व अन्य तरह के काम करते तथा किशोर व बच्चे सरकारी व नीजि विद्यालयों में पढ़ाई करते थे। यह सारी चीजें समग्र रूप में एक बसाहट के जीवंत, सुचारू होने का परमाण थीं।
फिर ऐसा क्या हुआ कि बस्ती की जगह ये मॉल बन गया। वो सारे लोग कहां चले गये जो यहां रहते थे ? यह सब था तो फिर इसी जगह पर मॉल बनाने की ज़रूरत क्या थी ? इस मॉल से यहां के रहवासियों को क्या फायदा होने वाला था ? शायद उन लोगों के रहने और जीने से ज़्यादा भोपालवासियों को इस मॉल की ज़रूरत थी कि यहां धनाड्य लोग आएं, खाएं-पीएं, खर्चा करें और अपनी रईसी से उन हज़ार लोगों को उलाहना दें कि यहां सब पैसे वालों के लिये है। शहर में गरीबों के लिये कोई जगह नहीं है। मुझे तो यह सोंच कर भी आष्चर्य हुआ कि इस मॉल के निर्माण के समय भोपाल में जल संकट था, आम जन श्रमदान कर बड़े तालाब को गहरा कर रहे थे और इस मॉल में लगभग 300 टेंकर पानी निर्माण के लिये लग रहा था।
1 Comments
bhai bahut hi badiya likha hai
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