उपासना बेहार
‘‘मैं अभी बहुत पढ़ना चाहती हूँ लेकिन मेरे घर वाले मेरी शादी जबरदस्ती करवा रहे
थे। शादी रुक जाने से बहुत खुश हूँ। अब मैं फिर से स्कूल जा पाऊॅगी और अपने मां
पिता को कुछ बन कर दिखाऊंगी।’’ ये कहना था 13 साल की तनु का जिसका बाल विवाह होने जा रहा था और
प्रशासन की मुस्तैदी से यह विवाह रुक गया। मध्यप्रदेश के उज्जैन के जमुनिया खुर्द गाँव
की 13 साल की सोनू और तनु के विवाह की तैयारियां चल रही थी। जिसे प्रशासन के
हस्तक्षेप के बाद रदद् किया गया। यह घटना उसी 24 जनवरी के चंद रोज पहले हुआ है जिस दिन को पूरा देश
“नेशनल गर्ल चाइल्ड़ डे” के रुप में मनाता है।
देश और प्रदेश में ऐसी हजारों तनु और सोनू जैसी बच्चियां हैं जो पढ़ना चाहती
थी, कुछ बनना चाहती थी लेकिन उन सब की आकाक्षांए और अरमान बाल विवाह की भेटं चढ़
गयी। संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया का ऐसा छठा देश है, जहां बाल विवाह का प्रचलन सबसे ज्यादा है। भारत में 20 से 49 साल की उम्र की करीब 27 फीसदी महिलाएं ऐसी हैं जिनकी शादी 15 से 18 साल की उम्र के बीच हुई है। जुलाई 2014 में यूनिसेफ द्वारा ‘एंडिग चाइल्ड मैरिजः प्रोग्रेस एंड प्रास्पेक्ट्स’ शीर्षक से बाल-विवाह से संबंधित एक रिपोर्ट जारी की गई। इस रिपोर्ट के अनुसार
विश्व में 720 मिलियन महिलाएं ऐसी हैं, जिनकी शादी 18 साल या इससे कम उम्र में हो गई है। विश्व की कुल
बालिका बधु की एक तिहाई बालिका बधू भारत में पाई जाती है अर्थात प्रत्येक 3 में से 1 बालिका बधू भारतीय है।
इसी प्रकार वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार मध्यप्रदेश में वर्ष 2012-13 में वर्ष 2011-12 की तुलना में अधिक बाल विवाह हुए हैं। प्रदेश में लड़कियों के बाल विवाह की
दर पिछले वर्ष की अपेक्षा वर्ष 2012-13 में 20 जिलों में बढ़ी है जिसमें सबसे ज्यादा झाबुआ, दूसरे स्थान पर शाजापुर तथा तीसरे स्थान पर राजगढ़ है। वैसे प्रदेश में बाल
विवाह लड़कियों में लड़कों की तुलना में कम रही है, लेकिन पिछले वर्ष 2011-12 की तुलना में बालिका विवाह 0.2 फीसदी की वृद्धि हुई है।
अगर लड़कों के बाल विवाह को देखें तो उनके बाल विवाह के जिलों में भी बहुत
ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई है। वर्ष 2012-13 में 21.3 फीसदी लड़कों के विवाह 21 वर्ष से कम उम्र में हुए है, जबकि पिछले वर्ष यह दर 18.3 फीसदी रही। वर्ष 2012-13 में 35 जिलों में लड़कों के बाल विवाह बढ़े हैं और इसमें 10 फीसदी वृद्धि की दर से झाबुआ प्रथम स्थान पर है, वहीं शाजापुर 9.6 फीसदी दर के साथ दूसरे और टीकमगढ़ 42.7 के साथ तीसरे पर है। इसी तरह इंदौर, भोपाल और जबलपुर जैसे शहर भी बाल विवाह वृद्धि दर से अछूते नहीं है।
बाल विवाह बाल अधिकारों का उल्लंघन है। लिंगभेद, अशिक्षा, अज्ञानता, असुरक्षा, धार्मिक-सामाजिक मान्यताएँ, रीति-रिवाज,परम्पराऐं, लड़कियों को कमतर समझना,उन्हें आर्थिक बोझ मानना, इत्यादि प्रमुख कारण है। समाज की यह सोच भी कि
लड़कीयों की कम उम्र में शादी कर देने से वे दूसरे घर में जल्दी सामंजस्यता बिठा
लेती हैं, यह भी बाल विवाह के अनेक कारणों में से एक है।
जिन बच्चियों का बाल विवाह होता है उनका शारीरिक, मानसिक, सामाजिक व शैक्षणिक विकास सही तरिके से नही हो पाता है। कम उम्र में शादी होने
से उन्हें गरिमापूर्ण जीवन जीने के,स्वास्थ्य ,पोषण, शिक्षा के अधिकार से महरुम होना पड़ता है और वे
हिंसा, दुव्र्यवहार, शोषण, यौन शोषण की षिकार हो जाती हैं। बाल विवाह के कारण बच्चियां कम उम्र में
गर्भवती हो जाती हैं जिससे उनमें स्वास्थ्य समस्याएं होने की सम्भावना बहुत बढ़
जाती है और इसके कारण उनकी मृत्यु, गर्भपात में वृद्धि, कुपोषित बच्चों का जन्म, माता में कुपोषण, खून की कमी होना, शिशु मृत्यु दर, माता में प्रजनन मार्ग संक्रमण यौन संचरित बीमारियां बढती हैं। कच्ची उम्र में
माँ बनने वाली ये बालिकाएं न तो परिवार नियोजन के प्रति सजग होती हैं और न ही
नवजात शिशुओं के उचित पालन पोषण में दक्ष होती हैं इस कारण बच्चों की सही देखभाल
नही हो पाती और बच्चे ताउम्र कमजोर रहते हैं। अध्ययनों से यह सिद्ध हो चुका है कि 15 वर्ष की उम्र में माँ बनने से मातृ मृत्यु की संभावना 20 वर्ष की उम्र में माँ बनने से पांच गुना अधिक होती है।
कम उम्र में शादी करने से लड़कियां शिक्षा से वंचित हो जाती हैं। उनका भविष्य
अंधकारमय हो जाता है। अनपढ़ या कम पढ़ी लिखी होने के कारण वे अपने घर में बहुत
ज्यादा आर्थिक सहयोग नही कर पाती हैं और गरीबी निरंतर बनी रहती है। इसके अलावा वे
अशिक्षित होने के कारण अपने बच्चों को भी शिक्षित नहीं कर पातीं। यदि विवाह के
पश्चात् पति कि मौत हो जाए तो उसे छोटी उम्र से ही विधवा का जीवन जीना पड़ता है।
इस प्रकार से बाल विवाह लड़की को लिंगभेद, बीमारी, अशिक्षा एवं गरीबी के भंवरजाल में फंसा देता है और
एक बार बच्ची इस जाल में फंस जाये तो उससे निकलना मुष्किल हो जाता है। कुल मिलाकर
बाल विवाह का दुष्परिणाम जीवन भर सबसे ज्यादा बालिका बधू को भोगना पड़ता है।
बाल विवाह की कुरीति को रोकने के लिए 1928 में शारदा एक्ट बनाया गया था। इस एक्ट के मुताबिक
नाबालिग लड़के और लड़कियों का विवाह करने पर जुर्माना और कैद हो सकती थी। आजादी के
बाद से लेकर आजतक इस एक्ट में कई संशोधन किए गए है। सन् 1978 में इसमें संशोधन कर लडकी की उम्र शादी के वक्त 15 से बढ़ाकर 18 साल और लड़के की उम्र 18 से बढकर 21 साल कर दी गई थी। बाल ‘विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006’ की धारा 9 एवं 10 के तहत् बाल विवाह के आयोजन पर दो वर्ष तक का कठोर
कारावास एवं एक लाख रूपए जुर्माना या दोनों से दंडित करने का प्रावधान किया गया
है। इसके अलावा बाल विवाह कराने वाले अभिभावक, रिश्तेदार, विवाह कराने वाला पंडित, काजी को भी तीन महीने तक की कैद और जुर्माना हो सकता है। बाल विवाह की शिकायत
कोई भी व्यक्ति निकटतम थाने में कर सकता है। अगर बाल विवाह हो जाता है तब किसी भी
बालक या बालिका की आनिच्छा होने पर उसे न्यायालय द्वारा वयस्क होने के दो साल के
अंदर अवैध घोषित करवाया जा सकता है।
देश में बाल विवाह के खिलाफ कानून बने हैं और समय के अनुसार उसमें लगातार संशोधन
कर उसे ओर प्रभावशाली बनाया गया है फिर भी बाल विवाह लगातार हो रहे हैं। अगर सरकार
के तमाम प्रयासों के बावजूद देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अंत नही हो पा रहा
है, तो इस असफलता के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि बालविवाह एक सामाजिक समस्या है
और इसका निदान सामाजिक जागरुकता से ही सम्भव हो सकेगा। केवल कानून बनाने से यह
कुरीति खत्म नही होने वाली है।
अगर इस कुप्रथा को जड़ से खत्म करना है तो इसके लिए समाज को ही आगे आना होगा
तथा बालिकाओं के पोषण, स्वास्थ्य, सुरक्षा और शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करना होगा। समाज में शिक्षा को
बढ़ावा देना होगा। अभिभावकों को बाल विवाह के दुष्परिणामों के प्रति जागरुक करना
होगा। सरकार को भी बाल विवाह के विरुध बने कानून का जोरदार ढंग से प्रचार-प्रसार
तथा कानून का कड़ाई से पालन करना होगा। बाल विवाह प्रथा के खिलाफ समाज में जोरदार
अभियान चलाना होगा। साथ ही साथ सरकार को विभिन्न रोजगार के कार्यक्रम भी चलाना
होगा ताकि गरीब परिवार गरीबी की जकड़ से मुक्त हो सकें और इन परिवारों की बच्चियां
बाल विवाह का निशाना न बन पाएं।
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