एल. एस. हरदेनिया

फोटू साभार - गूगल 


              
देश पर कब्जा करने के बाद नरेन्द्र मोदी के निशाने पर उत्तरप्रदेश है। यह कहा जाता है कि जो उत्तरप्रदेश पर कब्जा कर लेता है उसका लंबे समय तक प्रधानमंत्री के पद पर कब्जा रहता है। जब तक उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की सरकार रही जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री के पद पर बने रहे। इसी प्रकार इंदिरा गांधी भी लंबे समय तक प्रधानमंत्री बनी रहीं और एक-दो सालों को छोड़कर उनके प्रधानमंत्री रहते हुए भी उत्तरप्रदेश में कांग्रेस का शासन रहा। शायद नरेन्द्र मोदी इतिहास से यह सबक सीखकर, उत्तरप्रदेश पर कब्जा करने की तैयारी कर चुके हैं। लगता है वे उत्तरप्रदेश में उसी रणनीति से कब्जा करना चाहते हैं जिस रणनीति से उन्होंने 2002 में गुजरात पर कब्जा किया था। क्या नरेन्द्र मोदी और भाजपा का सरकार पर कब्जा करने का यही तरीका है?

इस समय चारों तरफ से उत्तरप्रदेश में सांप्रदायिक तनाव, वैमनस्य पैदा करने की तैयारी चल रही है। बहुत ही गैर-जिम्मेदाराना भड़काऊ बातें उत्तरप्रदेश के भाजपा नेता कर रहे हैं। 15 अगस्त के अपने भाषण में नरेन्द्र मोदी ने यह बात कही थी कि अगले दस सालों तक सांप्रदायिक दंगों पर रोक लगा दी जाए। उन्होंने यह भी कहा था कि सांप्रदायिक सौहार्द से ही देश का विकास हो सकता है। जहां उनने सांप्रदायिक सौहार्द, भाईचारे की बात की वहीं उत्तरप्रदेश के उनकी पार्टी के नेता और संघ परिवार के सदस्य दिन-रात सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने में लगे हुए हैं। क्या देश का प्रधानमंत्री जिसे पल-पल की खबर रहती है उसे यह नहीं मालूम कि उत्तरप्रदेश में आग लगाने की कोशिश जारी है। नरेन्द्र मोदी एक शक्तिशाली नेता हैं। उनका जैसा स्वभाव है और जैसी कार्यशैली है उसमें उनकी इच्छा के विरूद्ध और उनके समर्थन के बिना कोई भी बात उनकी पार्टी में नहीं हो सकती। दस साल से ज्यादा समय तक उन्होंने गुजरात में लगभग एक तानाशाह के समान शासन किया है। उनने अपने मंत्रिपरिषद के सदस्यों के साथ भी वैसा ही व्यवहार करना प्रारंभ कर दिया है जैसा स्कूल का हैडमास्टर अपने स्कूल के छात्र-छात्राओं के साथ करता है। क्या ऐसा शक्तिशाली प्रधानमंत्री अपने दल की और आरएसएस से जुड़े प्रचारकों से यह नहीं कह सकता कि वे बकवास बंद करें और ऊलजलूल बातें न करें?

देश के दो प्रसिद्ध काॅलम लेखकों ने यह सवाल मोदी से किया है कि वे क्यों अपने दल के नेताओं को सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की हरकत करने से बाज आने को नहीं कहते हैं? ये दो काॅलम लेखक हैं करन थापर और दूसरे मार्कटुली। करन थापर और मार्कटुली ने पिछले रविवार के हिंदुस्तान टाईम्स में मोदी के 100 दिन के संदर्भ में लेख लिखे हैं। करन थापर ने यह जानना चाहा है कि उत्तरप्रदेश में इतना सब कुछ हो रहा है उसके बावजूद मोदी चुप क्यों हैं? मोदी की आदत तो बहुत बोलने की है। यह सवाल करते हुए उन्होंने अपने लेख में उन भाषणों के अंश दिये हैं जो भारतीय जनता पार्टी के नेता उत्तरप्रदेश में दे रहे हैं। सबसे पहले वे उत्तरप्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी के भाषण का उद्धरण देते हैं। ‘‘वाजपेयी अपने भाषण में कहते हैं कि क्या उन्हें इस बात का सर्टिफिकेट मिल गया है कि वे दूसरे धर्म की लड़कियों के साथ बलात्कार करें’’ (इंडियन एक्सप्रेस अगस्त 24)। वाजपेयी अपने भाषण में आगे कहते हैं कि ‘‘नवयुवकों को चाहिए कि वे लवजिहाद के बारे में सावधान रहें। समझ में नहीं आता कि सरकार इनके विरूद्ध कड़े कदम क्यों नहीं उठा रही है। क्या हमने उन्हें बहुसंख्यक समाज की लड़कियों का धर्मपरिवर्तन करने का लायसेंस दे रखा है?’’ (दि हिन्दू अगस्त 24)। वे आगे चलकर इससे भी ज्यादा विस्फोटक बात कहते हैं। वे कहते हैं कि उत्तरप्रदेश में जो बलात्कार हो रहे हैं उनमें से 99.99 प्रतिशत बलात्कार मुसलमान कर रहे हैं। उत्तरप्रदेश सरकार इन लवजिहादियों को बचा रही है, जबकि उनसे पीडि़त बालिकाओं की या तो हत्या हो गई है या उन्हें सताया जा रहा है। (टाईम्स आॅफ इंडिया, अगस्त 24)

वाजपेयी अकेले भाजपा के ऐसे नेता नहीं हैं जो इस तरह की बातें कर रहे हैं। केन्द्रीय सरकार के मंत्री हैं कलराज मिश्र, उन्होंने भी अपने भाषणों में लवजिहाद की चर्चा बार-बार की है। इनसे भी बढ़कर हैं “योगी”  आदित्यनाथ, वे तो आग ही उगलते हैं। लवजिहाद की बात सबसे पहले उन्हीं ने चालू की थी और वह डंके की चोट पर कहते हैं कि लवजिहादियों से अपनी बेटियों को बचाने की जिम्मेदारी मेरी है। पहले भी उनके भाषणों और गतिविधियों से उत्तरप्रदेश में दंगे भड़के थे। अभी उन्होंने यह कहा कि दंगे वहीं चालू होते हैं जहां मुसलमानों का बहुमत होता है। वे एक से एक बढ़कर भडकाऊ बातें कर रहे हैं। करन थापर जानना चाहते हैं कि प्रधानमंत्री क्यों इनकों नहीं रोक रहे हैं? क्या वे चाहते हैं कि उत्तरप्रदेश सांप्रदायिक तनाव के वातावरण में बुरी तरह से ग्रस्त हो जाए? इन भाषणों के माध्यम से भाजपा के नेता और उनके अतिरिक्त संघ परिवार से जुड़े लोग यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि मुसलमान ही असली अपराधी हैं और उनकी गतिविधियों का खामियाजा उत्तरप्रदेश के हिंदुओं को भुगतना पड़ रहा है। यद्यपि भारतीय जनता पार्टी ने अपने सम्मेलन में लवजिहाद से संबंधित प्रस्ताव पारित नहीं किया परंतु उस प्रस्ताव में अत्यधिक भड़काऊ बातें की गई हैं। भाजपा जिस तरह की भडकाऊ बातें कर रही है उससे उसकी तस्वीर एक मुस्लिम विरोधी सांप्रदायिक संगठन के रूप में उभर रही है। इसके बाद फिर करन थापर पूछते हैं कि मैं मोदी जी से जानना चाहूंगा कि वे कैसे अपनी पार्टीजनों को ऐसी बातें कहने का अवसर दे रहे हैं। इतने दिनों से उत्तरप्रदेश में यह दूषित प्रचार चल रहा है परंतु मोदी ने इस मुद्दे पर एक शब्द भी नहीं कहा है। वे लगभग मौन हैं और मौन को सहमति मानी जाती है। करन थापर कहते हैं कि मेरी दिली इच्छा है कि मोदी मुझे गलत साबित करें और वे अक्षरशः उन बातों के अनुसार आचरण करें जो उन्होंने लाल किले के प्राचीर से पंद्रह अगस्त को कहीं थी।

उत्तरप्रदेश में चुनावी विजय से ज्यादा देश की एकता महत्वपूर्ण है। शायद मोदी कहेंगे कि यह करन थापर की प्राथमिकता हो सकती है पर मेरी नहीं है।

मार्क टुली वर्षों से बीबीसी के संवाददाता रहे हैं। बीबीसी से अवकाश प्राप्त करने के बाद वे भारत में बस गए हैं। वे भारत से बहुत मोहब्बत करते हैं और हमारे देश को दिन-रात उन्नति के शिखर पर पहुंचने की दुआएं देते हैं। उन्होंने भी मोदी के 100 दिन पूरे होने पर कुछ जिज्ञासाएं प्रगट की हैं। सबसे पहले वे कहते हैं कि मोदी ने मंत्रियों के साथ वैसा ही व्यवहार करना प्रारंभ कर दिया है जैसा कि एक सख्त हैडमास्टर छात्र-छात्राओं के साथ करता है। मोदी अपने मंत्रियों से कहते हैं कि वे वही पहने जो वे चाहते हैं, वे उनसे ही मिले जिनसे वे उन्हें मिलने की इजाजत देते हैं और वे वही कहें जिसे कहने की अनुमति उनकी तरफ से है। मोदी का यह व्यवहार संसदीय और कैबिनेट व्यवस्था के अनुकूल नहीं है। मोदी ने शासन पर तो अपना एकछत्र राज जमा ही लिया है परंतु अमित शाह को अध्यक्ष बनाकर उन्होंने पार्टी पर भी पूरा नियंत्रण कायम कर लिया है। यह किसी भी लोकतांत्रिक पार्टी को शोभा नहीं देता है। उनका मीडिया के प्रति भी रवैया अजीब है। आजादी के बाद से जब भी प्रधानमंत्री विदेश जाते थे उनके साथ पत्रकारों का एक दल जाता था। मोदी ने उस परंपरा को तोड़ दिया है। मोदी सोचते हैं कि मीडिया को वही छापना चाहिए जो सरकार चाहती है। इसलिए मंत्रियों और उच्च अधिकारियों का मीडिया से संवाद लगभग समाप्त हो गया है। इस कारण अब मीडिया सवाल नहीं पूछ सकेगी। पत्रकारों द्वारा पूछे गये सवालों से आम आदमी को बहुत कुछ पता लगता है। शायद मीडिया को सवाल पूछने का अवसर अब नहीं मिलेगा। इसी तरह स्वतंत्र निष्पक्ष न्यायपालिका किसी भी स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था की पहली शर्त है। अब कुछ ऐसी व्यवस्था की जा रही है जिससे अप्रत्यक्ष रूप से न्यायपालिका पर सरकार का नियंत्रण कायम रहे।

टुली कहते हैं कि भले ही 100 दिनों में कुछ क्षेत्रों में अद्भुत प्रगति दिखाई दी हो परंतु यह कहना मुश्किल है कि इन 100 दिनों में एक ऐसी सरकार की नींव पड़ी है जिसका प्रधानमंत्री, दूसरों की बातें सुनने को तैयार न हो। इस देश को सुनने वाला प्रधानमंत्री चाहिए। यदि यही रवैया चालू रहा तो सरकार और जनता के संबंधों के बीच एक खाई बन जाएगी।