(भोपाल- 7 दिसम्बर 2013 ) मध्यप्रदेश के धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील संगठनों ने राष्ट्रीय सलाहकार समीति द्वारा तैयार प्रारुप ‘‘साम्प्रदायिक और लक्षित हिंसा (न्याय तक पहुँच और हानिपूर्ति ) अधिनियम 2011 को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सुझाव भेजा है। 

ज्ञात हो कि बाबरी मस्जिद विध्वंस की 21 वीं बरसी (6 दिसंबर 2013) को भोपाल के गांधी भवन स्थित ‘सर्व धर्म प्रेरणा स्थल’ में एक विचार सभा का आयोजन किया गया था। इस विचार सभा में भोपाल के जागरूक नागरिकों एवं संगठनों द्वारा साम्प्रदायिक हिंसा के खिलाफ ठोस कानून की जरुरत और राष्ट्रीय सलाहकार समीति द्वारा तैयार ‘‘साम्प्रदायिक और लक्षित हिंसा (न्याय तक पहुँच और हानिपूर्ति ) अधिनियम 2011’’के प्रारुप पर चर्चा की गइ थी। इस चर्चा के दौरान जो सुझाव निकल कर आये हैं उन्हें ही प्रधानमंत्री को भेजा गया है। 

बैठक में प्रमुखता से यह मांग निकल कर आयी कि केन्द्र सरकार ‘‘साम्प्रदायिक और लक्षित हिंसा (न्याय और पुनर्वास तक पहुँच) विधेयक 2011’’को राज्यसभा की वर्तमान सत्र में लाये ताकि इस पर संसद और समाज में चर्चा हो सके और आम सहमति बन सके। 

इस विचार सभा में सबसे पहले नस्लीय भेदभाव के खिलाफ और बराबरी के लिए लड़ने वाले महान नेता नेल्सन मंडेला को श्रद्वांजलि दी गई थी। 

चर्चा के दौरान राष्ट्रीय सेक्युलर मंच के एल.एस.हरदेनिया ने कहा कि विधेयक अभी संसद के सामने पहुँचा भी नहीं कि इसके खिलाफ यह दुष्प्रचार शुरू हो गया है कि यह विधेयक भारतीय समाज को बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक दो भागों में बांट देगा। यह दुष्प्रचार उन्हीं के द्वारा किया जा रहा है जो नफरत की राजनीति करते हैं। लेकिन यह विधेयक बहुसंख्यकों के विरुद्व नहीं है बल्कि यह राज्य की मशीनरों को अल्पसंख्यकों और सामाजिक रूप से कमजोर तबकों के लिए संवेदनशील और जवाबदेह बनाने की पहल है। 

भारत ज्ञान विज्ञान समिति की आशा मिश्रा ने कहा कि भारत का संविधान धर्मनिरपेक्षता और अपने सभी नागरिकों को सुरक्षा की गारंटी देता है। साम्प्रदायिकता एक राष्ट्रीय मुद्दा है और पिछले तमाम अनुभव बताते हैं कि साम्प्रदायिक हिंसा से निपटने, दोषियों को सजा देने और पीडि़तों को उचित एंव पर्याप्त मुआवजा दिलाने का काम केवल राज्यों के भरोसे नही छोड़ा जा सकता है। इसलिए जरुरी है कि भारत के किसी भी क्षेत्र में होने वाले साम्प्रदायिक हिंसा की जवाबदेही राज्य और केन्द्र सरकार दोनों की हो। 

न्यू सोशलिस्ट इनिशिएटिव के जावेद अनीस ने कहा कि सांप्रदायिकता एक फासीवादी राजनैतिक विचार है, जो अल्पसंख्यक वर्ग को दोयम दर्जे का प्राणी मानती है। भारत में साम्प्रदायिक हिंसा एक गंभीर चुनौती है। अपने आप को आधुनिक दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक होने का दावा करने वाले राष्ट्र के लिए यह जरुरी हो जाता है कि वह अपने अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करे और दंगों के दौरान होने वाले जान-माल के नुकसान की भरपाई के लिये पर्याप्त मुआवजे का प्रावधान करे। प्रस्तावित विधेयक सभी पीडि़तों चाहे वह अल्पसंख्यक समुदाय का हो या बहुसंख्यक समुदाय का पुर्नवास और मुआवजे का प्रावधान करता है। इसलिए यह जरुरी हो जाता है कि सरकार इस पर गंभीरता से विचार करें ताकि किसी संतुलित और संगत नतीजे पर पहुँचना जा सके। लेकिन विधेयक के मूल उद्देश्य के साथ कोई भी समझौता नहीं होना चाहिए ।

प्रगतिशील लेखक संघ के शैलेन्द्र शैली ने कहा कि प्रस्तावित विधेयक राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्यों द्वारा तैयार किया गया है जिनका लंबा सामाजिक अनुभव रहा है। यह विधेयक भारत के किसी भी राज्य में धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों,दलित और आदिवासी समुदाय के सदस्यों को संगठित और लक्षित साम्प्रदायिक हिंसा से रक्षा का वादा करता है। समाज में इस विधेयक पर व्यापक चर्चा की जानी चाहिए, ताकि आम सहमति बनायी जा सके।

नागरिक अधिकार मंच की उपासना बेहार ने मध्यप्रदेश के संगठनों द्वारा राष्ट्रीय सलाहकार समिति को भेजे गये सुझाव को प्रस्तुत किया जिस पर विचार सभा में शामिल लोगों ने चर्चा की और नये सुझाव को जोड़ा। 

Free Press Bhopal; 7 December 2013
विचार सभा में शामिल जी.एस.असिवाल(सिटी ट्रेडयूनियन),वीरेन्द्र जैन(जनवादी लेखक संघ),राहुल शर्मा (भारत ज्ञान विज्ञान समिति), विजय कुमार(क्रांतिकारी नौजवान भारत सभा), आदिल रजा(सेंटर फॉर सोशल जस्टिस), सत्यम पांड़े(नागरिक अधिकार मंच), दीपक भट्ट(राष्ट्रीय सेक्युलर मंच) तथा न्यू सोशलिस्ट इनिशिएटिव के दीपा पोहनकर, अरधा तिवारी, मधुकर ने साम्प्रदायिकता के खिलाफ ठोस कानून की जरुरत और बिल के समर्थन में अपनी बात रखी। 

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