“हमारे संघर्ष का मुख्य
उद्देश्य मानवता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराना है”
नेल्सन मंडेला दक्षिण
अफ्रीका के मूल निवासियों के अधिकारों के लिए एक लंबे समय तक लड़े। प्रारंभ में
उनका विचार था कि उनका आंदोलन पूरी तरह से अहिंसक रहे परंतु कुछ ऐसी घटनाएं हुईं
कि उन्हें अहिंसा का मार्ग त्यागना पड़ा और हिंसा का सहारा लेना पड़ा। वैसे तो दक्षिण
अफ्रीका की रंगभेदी सरकार ने उन्हें अनेक बार गिरफ्तार किया। परंतु जब उन्होंने
औपचारिक रूप से हिंसा को अपनाया तो उन्हें फिर से गिरफ्तार किया गया। और उनके ऊपर
देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया। उस मुकदमे के दौरान उन्होंने अपना पक्ष जोरदार
शब्दों में रखा। अहिंसा को त्यागते हुए उन्होंने महात्मा गांधी को भी याद किया और
उनसे लगभग क्षमा मांगी। इसके साथ ही उन्होंने यह आश्वासन दिया कि उनके अंहिसात्मक
आंदोलन से किसी भी इंसान को हानि नहीं पहुंचेगी। उनका वह ऐतिहासिक भाषण यहां पर
प्रकाशित किया जा रहा है। उनने यह बयान दक्षिण अफ्रीका की सुप्रीम कोर्ट में 20 अप्रैल 1964 को दिया था। उनका यह
बयान दुनिया के अमर भाषणों में से एक है।
लगातार 4 घंटे तक बोलते हुए उनने
कहा कि ...
‘‘हमारे संघर्ष का मुख्य
उद्देश्य मानवता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराना है। अब हम इस नतीजे पर
पहुंचे हैं कि बिना हिंसा के सहारे लिए यह आंदोलन संभव नहीं है। उन्होंने कहा था
कि या तो हम गुलाम बनकर रहें या हिंसा का सहारा लेकर उस स्थिति में परिवर्तन लाने
का प्रयास करें । हमने अब फैसला किया है कि आवश्यकता पड़ने पर हम हिंसक रास्ते को
भी अपना सकते हैं। अदालत के सामने मंडेला लगातार पांच घंटे तक बोलते रहे। उन्होंने
स्वीकार किया कि उन्होंने तोड़फोड़ का रास्ता अपनाया है। हमनें यह सब किसी
उत्तेजनावश नहीं किया है वरन् एक सोचे-समझे इरादे के साथ ऐसा किया है। हम अब यह
महसूस कर रहे हैं कि जब सरकार हमारी मांगों के जवाब में हिंसक कदम उठाती है तो हम
कब तक अहिंसा के सहारे अपना संघर्ष जारी रख सकते हैं। हमारा यह निर्णय बहुत सोच
समझकर लिया गया है। जब शांति और अहिंसा के सब रास्ते बंद हो गए तो हमारे सामने और
कोई विकल्प नहीं था। अब हमारी यह नैतिक जिम्मेदारी हो गई थी कि हम हमारे देश के
शोषित और पीडि़त लोगों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता संभवतः हिंसा के रास्ते से ही
बता सकते हैं।
हिंसा के चार प्रकार हो सकते
हैं :-
1) तोडफोड़
2) गुरिल्ला युद्ध
3) आतंकवादी गतिविधियां
4) खुली क्रांति।
हमने पहला रास्ता अर्थात
तोड़फोड़ का रास्ता अपनाने का फैसला किया है। हमारा फैसला है कि हम दुश्मन की खून
की एक बूँद भी नहीं बहने देंगे। हमारा
आदर्श है अफ्रीकी राष्ट्रवाद। हमारे अफ्रीकी
राष्ट्रवाद का यह अर्थ नहीं है कि दक्षिण अफ्रीका में जितने भी गोरे नागरिक
हैं उन्हें समुद्र में फेंक दिया जाए। अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस का मुख्य आदर्श
आजादी है और अपने ही देश में अपनी समस्त महत्वकांक्षाओं और आकाक्षांओं की पूर्ति।
उससे भी ज्यादा हमारे सम्मान की रक्षा। अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस का सबसे महत्वपूर्ण
दस्तावेज है फ्रीडम चार्टर। उस चार्टर से यह न समझा जाए कि हम समाजवादी राज्य की
स्थापना करना चाहते हैं। हम विकास और उन्नति का समान बंटवारा चाहते हैं। हम खेती
की जमीन का राष्ट्रीयकरण नहीं करना चाहते परंतु हम उसका न्यायपूर्ण वितरण चाहते
हैं। हम खदानों,
बैंकों और उद्योगों के
राष्ट्रीयकरण के हामी हैं। उद्योग के क्षेत्र में हम एकाधिकार की नीति को पसंद
नहीं करते हैं क्योंकि बड़े उद्योग सिर्फ गोरे लोगों के हाथ में हैं इसलिए हम उनके
राष्ट्रीयकरण की मांग करते हैं। यदि राष्ट्रीयकरण नहीं होगा तो एक विशेष समूह का
नियंत्रण न सिर्फ आर्थिक क्षेत्र में रहेगा परंतु वह राजनैतिक क्षेत्र में भी बना
रहेगा। इसलिए हम निजी क्षेत्र के बड़े उद्योगों के राष्ट्रीयकरण के समर्थक हैं।
जहां तक कम्युनिस्ट
पार्टी के सिद्धांतों का सवाल है वे मार्क्सवाद पर आधारित राज्य का निर्माण करना
चाहते हैं। कम्युनिस्ट पार्टी वर्ग भेद को समाप्त करना चाहते हैं। परंतु हम उनका
मिलन चाहते हैं। यह एक महत्वपूर्ण अंतर है। यह बात सच है कि अफ्रीकन नेशनल कांगेस
और कम्युनिस्ट पार्टी के बीच सतत् सहयोग रहा है। परंतु यह सहयोग एक समान मंजिल पर
पहुंचने के लिए है जो इस समय गोरे लोगों की सर्वोच्च सत्ता को समाप्त करना है।
दुनिया के इतिहास में इस तरह के संघर्षों की गाथा भरी पड़ी है। इस संदर्भ में क्या
हम हिटलर के विरूद्ध ग्रेट ब्रिटेन, अमेरिका और सोवियत संघ के संयुक्त मोर्चे को भुला सकते
हैं? क्या इस तरह की स्थिति
में हिटलर यह कह सकता था कि चूंकि रूजबेल्ट और चर्चिल कम्युनिस्टों से सहयोग कर
रहे हैं इसलिए वे भी कम्युनिस्ट हो गए हैं। इसलिए हमारी लड़ाई समानता के लिए है।
इस लड़ाई में सैद्धान्तिक मतभेद भुलाकर हमें एक होकर शामिल होना पड़ेगा और हम हो
रहे हैं। क्या इस बात को भुलाया जा सकता है कि दक्षिण अफ्रीका में कम्युनिस्टों
का ही एक ऐसा समूह था जो यहां के मूलनिवासियों को इंसान मानता है और उनसे बराबरी
का व्यवहार करता है। वे उनके साथ खाना खाने को तैयार हैं, वे उनके साथ सम्पर्क रखने को
तैयार हैं, वे उनके साथ रहने को तैयार
हैं और वे उनके साथ काम करने को तैयार हैं। कम्युनिस्टों का ही समूह था जो हमारे
संघर्ष में बिना शर्त हमसे सहयोग करता है। इसलिए ही हमारे देश के अनेक अफ्रीकन
नागरिक आजादी और कम्युनिजम में कोई अंतर नहीं मानते हैं। और इसलिए दक्षिण अफ्रीका
की वर्तमान संसद ने एक कानून पास किया है जिसमें जो भी व्यक्ति लोकतंत्र और
अफ्रीकनों की आजादी की बात करते हैं उन्हें कम्युनिस्ट घोषित किया गया है और इस
तरह सभी उन लोगों को जो इस आजादी के आंदोलन के हिस्से हैं कम्युनिस्ट समझा गया है
और इसके लिए उन्होंने कम्युनिजम को समाप्त करने के लिए एक विशेष कानून बनाया है और
उस कानून की श्रेणी में उन सभी लोगों को रख दिया गया है जो अफ्रीकी नागरिकों की
आजादी की बात करते हैं। मैं कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य नहीं रहा हूं, फिर भी मुझे इस कानून के
अंतर्गत गिरफ्तार किया गया है। मैं सबसे पहले अफ्रीकन देशभक्त हूं। मैं मार्क्स वाद
के इस सिद्धांत से प्रभावित हूं कि एक आर्थिक रूप से एक वर्गविहीन समाज का निर्माण
किया जाए। जहां यह सिद्धांत मार्क्सवाद का मुख्य आधार है वहीं यह आधार प्राचीन
अफ्रीकन समाजों का भी था। पूरी जमीन एक वर्ग (ट्राईब) की होती थी। पुराने समाज में
न तो कोई धनी था और न ही कोई गरीब। वह शोषणमुक्त समाज था। हमें समाजवाद के
सिद्धांत की आवश्यकता है ताकि हम प्रगति की होड़ में विकसित राष्ट्रों के साथ खड़े
हो सकें। समाजवाद के सिद्धांत से ही गरीबी से मुक्ति मिल सकती है परंतु इसका मतलब
यह नहीं कि हम मार्क्सवादी हैं।
मेरी समझ है कि
कम्यूनिस्ट पश्चिम की संसदीय व्यवस्था को प्रतिक्रियावादी व्यवस्था मानते हैं।
परंतु मैं ऐसा नहीं सोचता। मैं संसदीय व्यवस्था का प्रशंसक हूं। मेग्नाकोर्टा और
इसी तरह के अन्य घोषणा पत्र जो पश्चिम में समय समय पर जारी किए गए हैं उन्हें आज
भी दुनिया के लोग श्रृद्धा और सम्मान से देखते हैं। मैं ब्रिटेन की अनेक संस्थाओं
का सम्मान करता हूं और उस देश में जो न्याय व्यवस्था है उससे मैं बहुत प्रभावित
हूं। मैं ब्रिटेन की संसद को एक प्रमुख लोकतांत्रिक संस्था मानता हूं। वहां की
न्यायप्रणाली की निष्पक्षता मुझे हमेशा प्रभावित करती है। अमेरिकन कांग्रेस, वहां अधिकारों का विभाजन
और अमेरिका की स्वतंत्र न्यायपालिका मेरे मन में सम्मान का भाव पैदा करती है। मैं
पश्चिम और पूर्व की महान परंपराओं का भी सम्मान करता हूं। मैं किसी भी इस तरह की
व्यवस्था का समर्थक नहीं हूं जिसका आधार समाजवाद न हो। सच पूछा जाए तो मैं पश्चिम
और पूर्व से जो भी अच्छा है उसे लेने को तैयार हूं।
हमारा संघर्ष उन
वास्तविकताओं के विरूद्ध है जिसके अंतर्गत राजसत्ता के निर्देशन में आम आदमी के
ऊपर तरह तरह के जुल्म किए जा रहे हैं। हम वर्तमान दक्षिण अफ्रीका के दो विशेष
लक्षणों के विरूद्ध अपनी आवाज बुलंद करते हैं। ये लक्षण हैं-व्यापक गरीबी और इंसान
को इंसान न मानने का रवैया। हमें इसके लिए कम्युनिस्ट विचारधारा को समझने की
आवश्यकता नहीं है। यह तो सभी लोगों की आपसी समझ का परिणाम है। दक्षिण अफ्रीका, अफ्रीका महाद्वीप का
सबसे धनी देश है। वह दुनिया का भी सबसे धनी देश बन सकता है। परंतु हमारे देश में
जो असमानताएं व्याप्त हैं, उनके चलते ऐसा संभव नहीं है। दक्षिण अफ्रीका में इस समय सब कुछ
यहां के गोरे निवासियों के हाथ में है। उनका रहन-सहन का स्तर दुनिया के किसी भी
विकसित देश के नागरिकों से ज्यादा ऊंचा है। जहां उन्हें सब अय्याशी के साधन
प्राप्त हैं,
वहीं अफ्रीका का मूल निवासी
गरीब और दरिद्रता में रह रहा है। गरीबी सबसे बड़ा अभिशाप है। गरीबी का दूसरा रूप
कुपोषण है। कुपोषित व्यक्ति जल्दी ही किसी भी बीमारी को पकड़ लेता है। हमारे देश
के इन गरीब नागरिकों को अनेक प्रकार की बीमारियां सताती हैं। यहां कि मृत्यु दर
अनेक देशों से ज्यादा है। हमारी शिकायत सिर्फ यह नहीं है कि हम गरीब हैं और गोरे
लोग धनवान हैं परंतु हमारी शिकायत यह भी है कि इस देश में ऐसे कानून बनाए गए हैं
जिससे इस तरह की स्थितियों में परिवर्तन लगभग असंभव है। गरीबी दूर करने के दो उपाय
हैं-पहला शिक्षा और दूसरा आम आदमी में प्रतिभा का संचार और उसे काम के बदले अच्छा
भुगतान। ये दोनों चीजें आम अफ्रीकी को उपलब्ध नहीं हैं। यहां की सरकार हमें
शिक्षित बनने के रास्ते में तरह-तरह के रोड़े अटकाती है। गोरे परिवारों के बच्चों
को सभी तरह की शिक्षाएं निशुल्क उपलब्ध हैं। वे बच्चे चाहें धनी परिवार के हों या
गरीब परिवार के हों। इसके ठीक विपरीत अफ्रीकन परिवारों के बच्चों को अपनी शिक्षा
के लिए बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। उनके शिक्षा के रास्ते में अनेक प्रकार की
बाधाएं डाली जाती हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार 40 प्रतिशत अफ्रीकी बच्चे स्कूल
नहीं जा पाते हैं। जो शिक्षा उन्हें दी जाती है वह भी तुलनात्मक रूप से काफी कमजोर
है। यह सब उनके द्वारा बनाई गईं नीतियों के अनुसार है। अभी कुछ दिन पहले दक्षिण
अफ्रीका के प्रधानमंत्री ने कहा था ‘‘जब मैं स्थानीय निवासियों के शिक्षा पर नियंत्रण कर
रहा हूं तो मैं उन्हें ऐसी शिक्षा देना चाहूंगा जिससे ये अफ्रीकी बच्चे प्रारंभ से
ही यह महसूस करें कि यूरोपियन नागरिको से
समानता की आकांक्षा रखने की इजाजत उन्हें नहीं है। जो शिक्षक इस समानता की बात
करेंगे उन्हें हम अच्छा शिक्षक नहीं मानेंगे।’’
आखिर हम चाहते क्या हैं ? सबसे पहले हम चाहते हैं
कि हमें इस तरह की मजदूरी का भुगतान मिले जिससे हम एक सम्मानपूर्ण स्वस्थ जीवन
निर्वाह कर सकें। हम चाहते हैं कि हमें ऐसा काम करने को दिया जाए जो हम कर सकते
हैं न कि ऐसा काम जो सरकार हमसे करवाना चाहती है। हमें उस जगह रहने का अधिकार
मिलना चाहिए जहां हम कार्य करते हैं, न कि हमें ऐसे स्थानों पर काम दिया जाए जहां हम रहते
नहीं हैं। हमें जमीन पर अधिकार दिया जाए। हमें ऐसी जमीन दी जाए जिस पर हम अपने
मकान बना सकें,
ताकि हमें किराए के
मकानों में रहने के लिए मजबूर न किया जाए। हम सभी के साथ रहना चाहते हैं न कि
गांव-शहरों के एक कोने में।
हम चाहते हैं कि हम जहां
काम करते हैं वहां अपनी पत्नियों-बच्चों के साथ रह सकें। अफ्रीकी महिलाएं चाहती
हैं कि वे अपने पतियों और बच्चों के साथ रहें, न कि उन्हें इस तरह रहने को मजबूर किया जाए जैसे वे
विधवा हो गईं हों। हमें 11 बजे रात के बाद भी स्वतंत्र रूप से घूमने फिरने की इजाजत मिलना
चाहिए, न कि हमें रात होने के
बाद अपने घरो में रहने को मजबूर किया जाए। हमें पूरे देश में भ्रमण करने की इजाजत
होनी चाहिए। हमें ऐसी जगह जाने पर मजबूर न किया जाए जहां श्रमविभाग हमें भेजना
चाहता है। हमें अपने देश में बराबर का हिस्सा चाहिए। सुरक्षा चाहिए और देश के
विकास में हमारा योगदान चाहिए। हमें राजनीतिक अधिकार चाहिए। उनके बिना हम स्वतंत्र
सुखद जीवन नहीं बिता सकते। हमें मालूम है कि हमारी ये मांगे गोरे लोगों को
क्रांतिकारी लगेंगी क्योंकि उन्हें मालूम है कि यदि हमें राजनीतिक अधिकार दिए
जायेंगे तो हमें वोट देने का भी अधिकार मिलेगा। और यदि ऐसा होता है तो गोरे अपने
को असुरक्षित महसूस करेंगे। इसलिए वे लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू करने से डरते हैं।
परंतु यह डर कब तक रहेगा। जब यह डर खत्म होगा तब ही हमारे देश में समानता के
सिद्धांत पर आधारित समाज बन सकेगा। हम इस
बात का आश्वासन देना चाहते हैं कि यदि हमें वोट का अधिकार मिला तो हम उस अधिकार का
उपयोग दूसरे लोगों के अधिकारों को छीनने के लिए नहीं करेंगे। रंग पर आधारित विभाजन
कृत्रिम है और वह विभाजन समाप्त हो जाएगा तभी हमारे देश में सच्चा लोकतंत्र कायम
हो पाएगा। हम पिछली आधी शताब्दी से रंगभेद के विरूद्ध संघर्षरत हैं। जब हम जीतेंगे
तब भी हम अपनी समानता की घोषणाओं पर कायम रहेंगे। हमारा संघर्ष इन सब आदर्शों के
लिए है। हमारा संघर्ष सच्चे मायने में राष्ट्रीय है। हमने जो भुगता है और हमने जो
सहा है उस अनुभव ने ही हमारे संघर्ष को जन्म दिया है। हमारा संघर्ष जीने के लिए
है। मैंने अपना सारा जीवन इसी संघर्ष को अर्पित किया है। मैं गोरे लोगों लोगों की
तानाशाही के विरूद्ध हूं। मैं आश्वासन देता हूं कि मैं काले लोगों की तानाशाही कभी
भी स्थापित नहीं होने दूंगा। मेरी कल्पना का समाज वह समाज है जिसमें सभी लोग
मिलजुल कर समान अवसरों को प्राप्त करते हुए अपना जीवन यापन कर सकें। मैं इसी आदर्श
के लिए जिंदा रहना चाहता हूं और यदि आवश्यकता हो तो मैं इसी आदर्श को प्राप्त करने
के लिए मरने को भी तैयार हूं।"
इस सारगर्भित बयान को
सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मंडेला को आजीवन कारावास दिया और यह कारावास 27 वर्ष तक चला।
प्रस्तुतीकरण - एल.एस. हरदेनिया
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