संघ की दकियानूसी, पुरूषवादी मानसिकता का प्रतीक


- एल. एस. हरदेनिया


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख डाक्टर मोहन भागवत ने महिलाओं को जो परामर्श दिया है और बलात्कार के जो कारण बताये हैं, वे उनकी पुरूषवादी व पितृसत्तात्मक सोच के प्रतीक हैं। डा. भागवत ने कहा कि ‘‘बलात्कार इंडिया में होते हैं भारत में नहीं‘‘

यह कहना कठिन है कि डा. भागवत का इंडिया और  भारत से क्या आशय है। डा. भागवत के भारत के दो अर्थ हो  सकते हैं। एक अर्थ हो सकता है प्राचीन भारत। यदि डा. भागवत का इशारा प्राचीन भारत की ओर है, तो क्या हम भूल सकते हैं कि प्राचीन भारत में पुरूषों ने द्रौपदी के साथ जो व्यवहार किया था, वह बलात्कार से कम नहीं था। पहले तो पांडवों ने द्रोपदी को जुएं में दांव पर लगा दिया। उसके बाद कौरवों ने द्रोपदी को भरी सभा में नंगा करने का प्रयास किया। द्रोपदी को नंगा किए जाने के शर्मनाक कृत्य को महान आत्माएं, जिनमें भीष्म पितामह शामिल थे, मौन होकर देख रहीं थीं। महिलाओं के अपमान के अनेक ऐसे दृष्टांत प्राचीन भारत और हिन्दू धर्मग्रंथों में भरे पड़े हैं। राम ने गर्भवती सीता को जिस ढंग से अपने महल से निकाला था, वह भी नारी जाति का अपमान था।

यदि भागवत के अनुसार, इंडिया का अर्थ शहरी क्षेत्र और भारत का अर्थ ग्रामीण क्षेत्र है तो हमें डा. भागवत से यह पूछने का अधिकार है कि क्या गांवों में बलात्कार नहीं होते हैं? सच पूछा जाए तो गांवों में महिलाओं के विरूद्ध शहरों से कहीं ज्यादा हिंसा होती है और सबसे दुर्भाग्य की बात यह है कि वे उसके विरूद्ध शिकायत भी नहीं कर पातीं। गांवों में महिलाओं के विरूद्ध होने वाले अत्याचार, सामंतवादी व्यवस्था की देन हैं।

हमारे देश में आज भी गांवों में सामंती व्यवस्था कायम है। इस सामंती व्यवस्था के कर्ताधर्ता उच्च जातियों के लोग होते हैं। ये लोग गांव में निवास कर रहे दलितों को इंसान नहीं मानते। दलितों की बहू बेटियों को भोग्या मानते हैं। आज भी हमारे देश में कुछ ऐसे गांव हैं जहां दलितों के घर आने वाली वधू पर पहला अधिकार इन दबंगों का समझा जाता है।

हरियाणा की खाप पंचायतें ग्रामीण भारत की महिलाओं के संबंध में सोच को इंगित करती हैं। इन पंचायतों ने महिलाओं के साथ घोर आपत्तिजनक व्यवहार किया है। झारखंड सहित कई राज्यों में महिलाओं को डायन घोषित कर उन्हें नंगा घुमाने और उनकी हत्या तक कर देने की घटनाएं आम हैं। 

आये दिन समाचारपत्रों में पढ़ने को मिलता है कि कोई महिला जिस समय रात के अंधेरे में शौच को गयी, उसके साथ बलात्कार किया गया। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि गांवों में होने वाली इन घटनाओं की पुलिस में रिपोर्ट भी नहीं लिखी जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में पुलिस पर इन सामंती तत्वों का दबदबा रहता है। डाक्टर भी इनके दबदबे के कारण बलात्कार की घटना की पुष्टि नहीं कर पाते हैं।

इस तरह, भागवत का यह कहना कि गांवों में बलात्कार नहीं होते बेबुनियाद है और देश को इंडिया और भारत में बांटने का दुष्प्रयास है। सच पूछा जाये तो बलात्कार चाहे शहर में हों या गांव में, इनके लिये वह दृष्टिकोण उत्तरदायी है जो मनुस्मृति से हमें धरोहर के रूप में मिला है। जहां तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सवाल है, वह तो केवल पुरूषों की  संस्था है। संघ के संस्थापकों ने आरएसएस से महिलाओं को दूर रखा है। इस मामले में संघ और इस्लामिक व्यवस्था में समानता है। इस्लाम के धार्मिक ठेकेदार, महिलाओं को पुरूषों के साथ मस्जिद में नमाज अदा करने की इजाजत नहीं देते हैं। उसी तरह, संघ अपनी शाखाओं में महिलाओं को प्रवेश नहीं देता है। कुल मिलाकर, भागवत अपनी पुरूषवादी सोच को ही प्रगट कर रहे हैं।

भागवत के बलात्कार संबंधी बयान से उत्पन्न विवाद ठंडा भी नहीं हुआ था कि उन्होंने एक और बयान दे डाला, जिसमें उन्होंने  महिलाओं को घर की चहारदीवारी में वैसे ही बंद रहने की सलाह दी जैसे तालिबानी, मुस्लिम महिलाओं को देते हैं। उनके इस बयान पर स्पष्टीकरण देते हुए संघ के प्रवक्ता राम माधव ने कहा कि भागवत ने यह बयान पश्चिम के परिवारों के बारे में दिया है। यदि उन्होंने ऐसा किया है तो यह पश्चिम की महिलाओं का अपमान है।

भागवत के अलावा, मध्यप्रदेश के उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने भी बलात्कार की घटनाओं पर आपत्तिजनक बयान दिया है। विजयवर्गीय ने युवतियों और महिलाओं को यह सलाह दी है कि वे लक्ष्मण रेखा को न पार करें. यह सच है कि शायद सीता का अपहरण नहीं होता यदि वे लक्ष्मण रेखा नहीं लांघतीं। परन्तु आज के रावण तो स्वयं लक्ष्मण रेखा के भीतर प्रवेश कर जाते हैं। क्या कैलाश विजयवर्गीय यह नहीं जानते कि आज के दानव, घरों में घुसकर महिलाओं के साथ जबरदस्ती करते हैं। अभी कुछ दिन पहले असम में कांग्रेस से जुड़े एक व्यक्ति ने रात्रि को एक महिला के घर में घुस कर उसके साथ बलात्कार किया। बाद में लोगों ने उसकी जमकर पिटाई की।

फिर, बलात्कार तो अबोध बच्चियों के साथ भी होते हैं। विजयवर्गीय बतायें कि ये बच्चियां कौन सी लक्ष्मण रेखा लांघती हैं। भागवत और विजयवर्गीय द्वारा दिये गये इन बयानों से अपराधियों के हौसले बुलन्द होते हैं। ऐसा लगता है कि भागवत और उनकी विचारधारा, महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के लिए महिलाओं को ही दोषी मानती हैं।  

भागवत और विजयवर्गीय ऐसे संगठन और पार्टी से जुड़े हैं जिनके हाथों में अनेक राज्यों की सत्ता है और जिनकी महत्वाकांक्षा पुनः केन्द्र की सत्ता हथियाना है। यदि इतने जिम्मेदार लोग इतने गैर जिम्मेदाराना बयान देंगे तो ऐसे जघन्य अपराधों पर कैसे नियंत्रण पाया जा सकेगा?

न सिर्फ राजनैतिक नेता ऐसे गैर-जिम्मेदाराना बयान दे रहे हैं वरन् वे जो आध्यात्मिक क्षेत्र की हस्ती होने का दावा करते हैं, भी इस मामले में गैर जिम्मेदाराना बातें कर रहे हैं। आसाराम बापू ने कहा कि दिल्ली की सामूहिक बलात्कार की पीड़ित लड़की यदि हाथ-पैर जोड़ती, बलात्कारियों के पैर पड़ती, गिड़गिड़ाती और उनमें से एक को अपना भाई बना लेती तो वह स्वयं को बचा सकती थी।

क्या आज तक किसी हत्यारे ने अपने दुश्मन को इसलिये छोड़ दिया है क्योंकि उसने उसके पैर छू लिये और उसके सामने समर्पण कर दिया? क्या कोई डाकू इसलिये लूट का इरादा छोड़ देता है क्योंकि जिसे वह लूट रहा है उसने उससे दया की भीख मांगी हो



 (लेखक वरिष्ठ पत्रकार व धर्मनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्ध कार्यकर्ता हैं)