फैज़




तुम ईष्वर की भेजी पुस्तक नहीं हो
60 बरस पहले
गढ़ा था किसी तथाकथित हीन ने 
तुम समता और न्याय को गढ़ते हो
और उच्च कूल की दीवारें हिलती है इससे
तुम राज्य व्यवस्था को चलाने वाले एक मात्र दस्तावेज हो 
जो उस कपटी ‘‘ईष्वर’’ से
न तो आरंभ होते हो और ना ही संचालित
लोग
तुम्हारी कसमें खाते हैं 
देषभक्ति के नाम पर 
हम पर्व भी मनाते हैं तुम्हारे नाम पर
क्योंकि
हमें दिखाना है 
सम्मान