जावेद अनीस 


शहरों की ओर होने वाले पलायन में सबसे बढ़ी संख्या ग्रामीण गरीबों की है जिनके पास तथाकथित कानूनी आवास खरीदने के पैसे नहीं होते जिसके कारण उनको मजबूरी में षहरों के स्लमस् में अपना अषियाना बनाना पड़ता है। यदि आने वाले समय में षहरीकरण की दर बढ़ती है या समान रहती है तब स्लमस् में रहने वालों की संख्या बढ़ेगी क्योंकि कम लागत के आवसों व अन्य गरीब हितैषी अन्य प्रावधानों की कमी के कारण षहरों की ओर प्रवास करने वाली गरीब आबादी के पास संसाधनों की कमी के कारण स्लमस् में बसने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं रह जाता।

म.प्र. सरकार के आंकड़ों के अनुसार भोपाल में लगभग 4.35 लाख झुग्गीवासियों की संख्या है, जबकि स्वंयसेवी संस्था आक्सॅफेम द्वारा वर्ष 2006 में कराये गए सर्वे के अनुसार भोपाल में लगभग 10.62 लाख लोग शहर की 543 गरीब बस्तियों में रहते हंै जो कि षहर की कुल आबादी का लगभग 60 प्रतिशत है।



सरकार का अनुमान है कि भारत में जिस रफ्तार से शहरीकरण की प्रक्रिया चल रही है उसके हिसाब से वर्ष 2028 तक देष के कुल जनसंख्या की लगभग 70% आबादी शहरों और 30% आबादी गावों में निवास करेगी। इसके अलावा शहरों में असंगठित क्षेत्रों के मजदूरों की संख्या भी बड़े स्तर पर बढ़ेगी। इस बढ़ती हुई जनसंख्या को मूलभूत सुविधाऐं सूचारु रुप से मिल सके इस घोषित उद्देष्य के साथ केन्द्र सरकार द्वारा जवाहर लाल नेहरु शहरी नवीनिकरण मिषन की शुरुवात की गई थी, जिसकी समय सीमा 2005 से 2012 तक है।

मध्यप्रदेश  के 4 शहरों भोपाल, इंदौर, जबलपुर और उज्जैन को इस मिषन में शामिल किया गया है।

इस मिशन का मुख्य उदद्श्य शहरों का नियोजित विकास, शहर कारीडोर (बाहर) का विकास, पुराने क्षेत्रों (शहर के) का पुर्ननवीनिकरण व पुर्नविकास, गरीबों को ध्यान में रखते हुए नागरिक सुविधाओं में बढ़ोत्तरी व जन उपयोगी सेवाओं का प्रावधान, सड़क, पानी, बिजली इत्यादि सेवाओं का विकास व उसकी कमीयों को दूर करने के लिए समुचित पूंजी निवेष की सुनिष्चतता है। इस योजना के दो उपमिश न हैं  -

  •  शहरी अवस्थापना और अभिशासन

  •  शहरी गरीबों को आधारभूत सेवायें


इसी सदर्भ में मध्यप्रदेष प्रशासन द्वारा जे.एन.एन.यू आर.एम. योजना के तहत भोपाल के गरीब बस्तीवासियों को उनको झुग्गीयों से हटा कर बहुमंजिले फ्लैट बनाकर दिए जा रहे हैं, लेकिन योजना के मूल दस्तावेज में गरीबों से जो वायदा किया था, उसे पूरा नहीं किया जा रहा है।



भोपाल शहर विकास योजना ¼C.D.P.½[1], 2006 के मूल दस्तावेज के अनुसार GÆ2 फ्लैट बनाने की बात कही गई है परन्तुGÆ2 के स्थान पर GÆ3 फ्लैट बनाकर दिए जा रहे हैं।

वहीं मूल योजना में लोगों को फ्लैट के साथ ही सामुदायिक भवन, बच्चों के खेलने के लिए पार्क, आंगनबाडी के लिए स्थान, स्वास्थ्य केन्द्र आदि बनाकर देने की भी बात कही गई थी। लेकिन भोपाल में जिन स्थानों पर शहरी गरीबों को फ्लैट बना कर पुर्नवासित किया गया है, वहा इसका पालन नहीं किया जा रहा है।

इस पूरी योजना मे किसी भी प्रकार की जनभागीदारी/जनसहमति नहीं है। जैसे हितग्राही;(stakeholders) किस प्रकार का आवास चाहते हैं । राज्य सरकार द्वारा संशोधित पट्टा अधिनियम 2008 में सरकार ने मोहल्ला समितियों के निष्क्रिय होने का हवाला देकर समितियों के अधिकार नगर निगम को सौंप दिये हैं । जबकि केंद्र द्वारा जारी जे.एन.एन.यू आर.एम. के दस्तावेज में 74वें  संविधान संशोधन का पालन करते हुए मोहल्ला समीतियों की सहमति अथवा परामर्ष के बाद ही बस्ती चयन, विकास के लिए विस्थापन एवं पुनर्वास की बात की गई है। राज्य सरकार द्वारा 74 वें सविधान संषोधन का खुला उल्लंघन किया जा रहा है।

षुरूआत में प्रशासन ने फ्लैट (प्रकोष्ठ) की लागत एक लाख बीस हजार रखी थी, जिसमें हितग्राही को इस लागत का बीस प्रतिशत यानि कि लगभग तीस हजार रूपया चुकाना था, लेकिन मध्यप्रदेश  शासन के नगरीय प्रषासन एवं विकास विभाग द्वारा दिनांक 24 जुलाई 2007 को प्रकाषित पत्र क्रमांक एफ-10-31/18-2/2007  में मध्यप्रदेश  के सभी नगर निगम आयुक्तों को आदेश  किया गया है कि यदि किसी कारणवश  फ्लैटस की लागत 80 हजार से ज्यादा होती है वहां बढ़ी हुई राशि  का पूरा हिस्सा हितग्राही को वहन करना होगा। चूंकि गरीब बस्तीवासियों की आय एवं रोजगार अनियमित होता है इसलिए यह अंदाजा लगाना मुष्किल नहीं है कि उन्हें ब्याज सहित बढ़ी हुई लागत के साथ कर्ज चुकाने का भार उठाने में   कितनी दिक्कत होगी।

इसी सदर्भ में नागरिक अधिकार मंच द्वारा भोपाल में शहरी गरीबों पर जे.एन.एन.यू.आर.एम. के प्रभाव पर एक अध्ययन किया गया है।

इस अध्ययन में यह पता लगाने की कोषिश  की गई है कि झुग्गी मुक्त शहर बनाने के नाम पर शहरी गरीबों को जो फ्लैट दिये गये हैं उसकी गुणवता क्या है, वहां  कौन-कौन सी बुनियादी सुविधाऐं उपलब्ध करायी र्गइं हैं, इस पूरी प्रक्रिया में हितग्राहीयों की क्या भागीदारी रही है, जे.एन.एन.यू आर.एम. के मूल दस्तावेज में जो प्रावधान किये गये हैं  उसका जमीनी स्तर पर क्या स्थिति है और शहर को झुग्गी मुक्त बनाने की इस पूरी प्रक्रिया को लेकर लोगों की क्या सोच है?  

अध्ययन के लिए भोपाल के उन्ही बस्तीयों का चयन किया गया है जिन्हें जवाहर लाल नेहरु शहरी नवीनिकरण मिशन के तहत हटा कर शहर के सीमा के अंदर ही बहुमंजिला पक्के मकान बना कर पुर्नवासित किया गया हैं। इस तरह से इस अध्ययन में भोपाल के उन सभी बस्तीयों को शामिल किया गया है जहाँ  फरवरी 2012 तक जे.एन.एन.यू आर.एम.के तहत मकानों का आबंटन कर दिया गया था और लोग रहने लगे थे।

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष निम्नलिखित हैं  -

  •  अध्ययन में शामिल सभी बस्तीयों में शहरी गरीबों के लिए जे.एन.एन.यू.आर.एम. के तहत  बनाये गये मकानों में निर्माण सामग्री अच्छी क्वालिट की नहीं है। इसकी गुणवता काफी खराब है जिसके कारण मकान अभी से ही टूटने फूटने लगे हैं।

  •  जे.एन.एन.यू.आर.एम. के तहत  बनाये गये मकान बच्चों के लिए खतरनाक हंै। अनेक बस्तीयों के इन आवासीय इकाईयों में छत पर आने जाने के लिए सीढ़ी नहीं बनायी गई है साथ इन छतों पर बाउन्ड्रीवाल भी नहीं बनाया गया है, जिसके कारण इन बस्तीयों में कई बच्चों के साथ र्दुघटनाए भी घट चुकी हैं ।

  •   प्रशासन ने झुग्गीयों को तोड़ते समय हितग्राहियों को आवासीय इकाईयों की जो राशि बतायी थी, मकान आबंटन के बाद अब हितग्राहियों को उस राशि से कई गुना ज्यादा राशि देना पड़ रहा है।

  •  अध्ययन में शामिल सभी बस्तीयों में शहरी गरीबों के लिए बने मकानों के आबंटन में अनेक विसंगितियाॅ पाई गई है  अनेक विकलांग और बुर्जुग हितग्राहियों को बहुमंजिला मकानों में ऊपरी मंजिलों के आवासीय इकाई का आबंटित किया गया है।

  • इन मकानों में आने के बाद से लोगों की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई है क्योंकि हितग्राहियों को मकान का किश्त, बिजली, पानी का बिल, प्रापर्टी टेक्स आदि चुकाना पड़ता है जबकि लोगों की आय में कोई वृद्वि नहीं हुई है।

  • कई बस्तीयों में आबंटित मकानों में एकमात्र नल का कनेक्शन दिया गया है जो कि बाथरुम में है। किचन में नल का कनेक्शन नही दिया गया है। इससे लोग छत पर रखे टंकियों से पाइप लगा कर किचन में पानी लेते हैं और ये काम ज्यादातर औरतें और बच्चे करते हैं, छत पर आने जाने के लिए सीढ़ी ना बने होने के कारण लोगों ने कच्ची सीढ़ी की व्यवस्था की है जो कि बहुत कमजोर होता है और बच्चों और महिलाओं के साथ कभी दुर्घटनाऐं होने की सम्भावना बनी रहती है।


अध्ययन में यह मुख्य रुप से निकल कर आया कि बस्तीवासी इस योजना के तहत बनाये गये मकान और पुर्नवास से संतुष्ट नही है और इनमें काफी अनियमितताऐं हैं जैसे कि सभी हितग्राहियों को मकान नहीं मिला है, बनाये गये मकानों की गुणवता बहुत ही खराब है, हिग्राहियों से ज्यादा राषि ली जा रही है जिसे चुकाने में उन्हें बहुत कठिनाई आ रही है  दूसरी तरफ उन्हें पानी, बिजली, साफ-सफाई आदि का बिल भी चुकाना पड़ रहा है जिससे उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हुई है, बनाये गये आवासीय इकाई बच्चों के सुरक्षा के हिसाब से खतरनाक हैं साथ ही साथ बुनियादी सुविधाऐं वही की वही हैं।

प्रशासन द्वारा झुग्गीयों को तोड़ते समय जो वादे का सब्ज्बाग दिखाया गया था उसे पुर्नवास के बाद पूरा नही किया गया है।






केस स्टडी 1

नाम - नर्मदा बाई बाकोडे
बस्ती - मद्रासी कालोनी

मुद्दा  - आबंटित मकान का किश्त ना चुका पाने के कारण बेदखली की धमकी देना

नर्मदा बाई बाकोडे भोपाल शहर के मद्रासी कालोनी में जे.एन.एन.यू.आर.एम. के तहत बने मकान न. सी-25 में अपने परिवार के साथ रह रही हैं। वे आर्थिक दिक्कतों के कारण आबंटित मकान का बैक किष्त कुछ महीनों से जमा नही कर पा रही थी, किष्त जमा ना होने पर बैक वालों ने उन्हें नोटिस भेजा लेकिन नर्मदा बाई के बहुत कोषिषों के बावजूद भी पैसों का इतंजाम नही हो सका।

किश्त जमा ना होने के कारण बैक वाले नर्मदा बाई के घर आये और उनके घर से सारा सामान बाहर फेकने लगे, नर्मदा बाई और उनके परिवार वालों ने बैंक से आये लोगों से बहुत मिन्नत की तब उन्होनें नर्मदा बाई से एक कागज पर हस्ताक्षर कराये। नर्मदा बाई ने बताया कि जब उन्होंने इस कागज के बारे में उन लोगों से जानना चाहा कि कागज में क्या लिखा है तो बैंक द्वारा भेजे गये लोगों का कहना था कि वे स्वंय नहीं जानते कि इसमें क्या लिखा है। उन्हें बैक द्वारा ये कागज दिये गये हैं। नर्मदा बाई को उस हस्ताक्षर किये गये दस्तावेज की कोई कापी भी नही दी गई। ऐसे में नर्मदा बाई बाकोडे को यह चिंता बनी रहती है कि उनसे बैंक वालों ने किस दस्तावेज में हस्ताक्षर करा लिये है  और उस दस्तावेज का भविष्य में किस तरह उपयोग किया जायेगा।

केस स्टडी 2
नाम - स्व रामकेवल चैहान
उत्तरदाता - कौषलया बाई (बहु)
बस्ती - अर्जुन नगर

मुददा  - बुर्जुग और बीमार हितग्राही को ऊपरी मंजिल में मकान आबंटित करना और इसी वजह से उनकी दुखद मौत भी हुई

कौशलया बाई ने बताया कि उनके ससुर स्व. रामकेवल चैहान पुर्नवास के पहले भोपाल के अर्जुन नगर में ही रहते थे लेकिन उन्हें पुर्नवास के बाद अर्जुन नगर में मकान का आवंटन नहीं किया गया, जब रामकेवल चैहान ने नगरनिगम के अधिकारियों से इस सबंध में बात की तो अधिकारियों ने कहा कि अर्जुन नगर में बन रहे नये मकान पूर्ण हो जायेगें तब उन्हें मकान का आवंटन किया जायेगा।

स्व. रामकेवल चैहान ने अधिकारियों से आवास के लिए बहुत मिन्नतें की तब अधिकारियों ने उन्हें बस्ती में ही अपूर्ण बने एक ब्लाॅक के चैथे माले में अस्थायी रहने की इजाजत दे दी। जिसमें वे अपने बेटे-बहू के साथ रहते थे।
स्व. रामकेवल चैहान जिस मकान में रहते थे उसमें पानी, बिजली, शौचालय की व्यवस्था नहीं है। इस तरह बने अपूर्ण मकान में रहने वालों को पानी नीचे स्थित नल से भरना पडता है। मकानों में शौचालय भी नहीं है। इस कारण शौचालय के लिए भी उन्हें चैथे माले से नीचे आना पड़ता है फिर बस्ती के पास पहाड़ पर खुले में शौच जाने को मजबूर होना पड़ता है। इन सभी कामों के लिए लोगों को एक दिन में कम से कम 2 से 3 बार चैथे माले से उतरना और पुनः चढ़ना पड़ता है।

कौशल्या बाई ने बताया कि उनके ससुर स्व रामकेवल की उम्र 70 साल की हो गई थी और उन्हें रोज चैथे मंजिले से कम से कम एक बार नीचे अवश्य आना जाना पड़ता था। उन्हें ऊपर चढ़ने में बहुत दिक्कत होती थी।
स्व. रामकेवल की बहू कौशल्या ने बताया कि जिस दिन उनके ससुर की मृत्यु हुई उस दिन भी उनके ससूर शौचालय के लिए चैथे माले से नीचे गये थे फिर पहाड़ चढ़ कर खुले में शौच करने गये उसके बाद वापस पुनः चैथे माले में अपने मकान में वापस आये। इतने उतार चढ़ाव के कारण उनकी सांस बहुत फूल गई और जैसे ही घर आये थोड़ी देर में ही उनकी मौत हो गई।

अपनी इस दिक्क्त को लेकर स्व. रामकेवल चैहान ने सबंधित अधिकारियों से बात किया तो अधिकारियों का जवाब था कि जब अन्य मकान पूरे बन जायेंगे तभी वो लाटरी के माध्यम से मकानों का आबंटन कर सकते हैं तब तक उन्हें इन अपूर्ण बने मकानों में जो भी मकान अस्थायी तौर पर रहने को दिया गया है उसी में रहना पड़ेगा।

केस स्टडी 3

भोपाल के श्याम  नगर बस्ती में जे.एन.एन.यू.आर.एम. के तहत बनाये गये मकान के छत से फिर एक बच्चा गिरा
बच्चे का नाम - निखिल सहरिया
उम्र - 7 साल
जाति - सहरिया आदिवासी
बस्ती - झुग्गी नंबर 351, श्याम नगर बस्ती, भोपाल
र्दुघटना तिथि - 30 अगस्त 2012

रामदास सहरिया श्याम नगर बस्ती के झुग्गी नंबर 351 में अपनी पत्नि मीरा सहरिया और तीन बच्चों के साथ रहते हैं। 7 वर्षीय निखिल इन तीन बच्चों में सबसे छोटा है। निखिल श्याम नगर के पास स्थित रविषंकर माध्यमिक शाला में कक्षा 2 का विधार्थी है।

निखिल के पिता रामदास दिहाड़ी मजदूरी करते हैं और उसकी मां मीरा सहरिया आसपास के मकानों में घरेलू कामगार है। ये दोनों रोज सुबह से ही काम करने के लिए निकल जाते हैं

श्याम नगर बस्ती में जवाहरलाल नेहरु शहरी नवीनिकरण मिष्न के तहत शहरी गरीबों के लिए आवासीय इर्काईयाॅ बनायी गयी हैं। इन आवासीय इकाईयों में लगभग आधे बस्ती के परिवारों को पुर्नवासित कर दिया गया है। जबकि बाकि परिवार अभी भी वही पर झुग्गियों में रहते हुए निर्माण कार्य पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं।
रामदास सहरिया को भी अभी तक मकान आवंटित नही हुआ है और वे झुग्गी में रह रहे हैं।

30 अगस्त 2012 को रामदास सहरिया का 7 साल का बेटा निखिल सहरिया जवाहरलाल नेहरु शहरी नवीनिकरण मिष्न के तहत बने आवासीय इकाईयों में से ब्लाॅक नं 2 के छत पर अपने दोस्तों के साथ खेलने गया था। वहाॅ दिन में लगभग 2 बजे के आसपास खेलते खेलते निखिल मकान के छत से नीचे गिर गया। वह नीचे रखी हुई लकड़ीयों के गटठर के ऊपर सिर के बल जा गिरा। जिससे उसकी जान तो बच गई लेकिन उसके सर पर गंभीर चोटें आयी हैं। र्दुघटना के समय निखिल के माता और पिता दोनों काम पर गये हुए थे।

खून से लथपथ बेहोष निखिल को आसपास के लोग बस्ती के ही डाॅक्टर के पास ले कर गये लेकिन बच्चे की गंभीर स्थिति को देख कर उसे हमीदिया अस्पताल रेफर कर दिया गया। इसी दौरान निखिल के माता पिता को भी खबर कर दी गई थी। जब बच्चे को हमीदिया अस्पताल ले कर गये तो पुलिस केस का कह कर रहे एडमिट करने से मना कर दिया तब बच्चे को नेहरु नगर स्थित शारदा अस्पताललेकर गये। जो की एक प्रायवेट अस्पताल है, वहाॅ उसका इलाज किया गया।

निखिल के पिता रामदास ने बताया कि परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वे प्रायवेट अस्पताल का खर्च उठाने में असमर्थ थे इस कारण बच्चे को 2/3 घंटे में ही अस्पताल से डिस्चार्ज करके घर ले आये। अभी तक उसके इलाज में लगभग 1700 रु खर्च हो गये हैं। कल फिर ड्रेसिगं के लिए अस्पताल में बुलाया गया है ।
निखिल की मां मीरा बाई का कहना है कि जबसे यह हादसा हुआ है तब से ही निखिल कोमा में था आज 12 बजे करीब 20 घंटे बाद उसे होष आया है तब से वह दर्द से कराह रहा है। उन्होनें कहा कि अगर बच्चा सीधे जमीन पर गिरता तो उसकी मौत निष्चित थी लेकिन गटठ्र के ऊपर गिरने के कारण उसकी जान बच गई।

रामदास ने बताया कि बस्ती में जवाहरलाल नेहरु शहरी नवीनिकरण मिष्न के तहत बना कर दिये गये मकानों में छतों में जाने के लिए सीढ़ी नहीं दी है और इन छतों में बाउन्ड्रीवाॅल नहीं बनाया गया है। 


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