-एल. एस. हरदेनिया
ऐसा कोई संस्थान नहीं, ऐसा कोई शासकीय कल्याण कार्यक्रम नहीं जिसका उपयोग मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा का प्रचार करने के लिए न कर रही हो। इसी श्रृखंला में भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय भी शामिल है। इस समय विश्वविद्यालय का संचालन इस प्रकार से किया जा रहा है जैसे वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा हो। सभी कानूनों, नियमों और परंपराओं को ताक में रखकर विश्वविद्यालय में ऐसे लोगों की नियुक्तियां हो रही हैं जो या तो स्वयं संघ के सदस्य है या जो संघ के सामने साष्टांग दंडवत करने को तैयार हैं।
सन् 1990 में इस विश्वविद्यालय की स्थापना भोपाल को पत्रकारिता में राष्ट्रीय स्तर का प्रषिक्षण-शिक्षण केन्द्र बनाने के लिए की गई थी। विश्वविद्यालय के प्रबंधन की नियम विरूद्ध, आपत्तिजनक गतिविधियों को चुनौती देते हुए एक जनहित याचिका मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में दायर की गई है।
याचिका में उन सब गतिविधियों का विवरण दिया गया है जो विश्वविद्यालय के कुलपति ने संघ को प्रसन्न करने के लिए संपन्न करवाई हैं। याचिका में ऐसे लोगों की सूची दी गई है जिनकी नियुक्ति विश्वविद्यालय में विभिन्न पदों पर नियमों और परंपराओं को बलायेताक रख की गई है। दुःख की बात यह है कि इनमें से अनेक नियुक्तियां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान के निर्देष पर की गई हैं। मुख्यमंत्री ने ऐसी अनेक नियुक्तियों के लिए लिखित आदेश भी दिये हैं। जिन लोगों की नियुक्तियां की गई हैं उनमें नंद किशोर त्रिखा शामिल है। सन् 2010 में जब उनकी नियुक्ति हुई थी उस समय उनकी आयु 75 वर्ष से ज्यादा थी। उसके बावजूद उन्हें वरिष्ठ प्रोफेसर के पद पर नियुक्त किया गया। उनका मासिक वेतन 87 हजार रूपये है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों के अनुसार 70 वर्ष से ज्यादा आयु के व्यक्ति की नियुक्ति विष्वविद्यालय के किसी भी पद पर नहीं हो सकती। मुख्यमंत्री के लिखित आदेश के अनुसार अशोक टंडन को सीनियर प्रोफेसर के पद पर नियुक्त किया गया। इस पद के लिए न तो आवेदन आमंत्रित किए गये और न ही अन्य नियमों का पालन किया गया। इसी तरह सौरभ मालवीय की नियुक्ति प्रकाशन अधिकारी के रूप में की गई। मजेदार बात यह है कि इनकी नियुक्ति की खातिर विश्वविद्यालय में प्रकाशन विभाग की स्थापना भी की गई। इसी तरह राघवेन्द्र सिंह की नियुक्ति विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी के रूप में की गई। यह नियुक्ति इस तथ्य की उपेक्षा करते हुए की गई कि विश्वविद्यालय के ढांचे में ऐसा कोई पद था ही नहीं। राघवेन्द्र सिंह का वेतन 75 हजार रूपये मासिक तय किया गया। इसी तारतम्य में देवेष किशोर, रामजी त्रिपाठी और आशीश जोशी की नियुक्तियां भी प्रोफेसर के पदों पर की र्गइं। इन नियुक्तियों को न तो विज्ञापित किया गया और न ही आवेदनपत्र आमंत्रित किए गए। अमिताभ भटनागर का मामला तो और भी चैकाने वाला है। वे नाबार्ड में काम करते थे। वहां से सीधे उन्हें विश्वविद्यालय में नियुक्ति दे दी गई। उनकी नियुक्ति के संबंध में रजिस्ट्रार ने आपत्ति की थी परंतु इसके बावजूद उन्हें नियुक्त किया गया।
संघ के वफादार लोगों को विश्वविद्यालय में नियुक्ति देने के अतिरिक्त पाठयक्रम के माध्यम से भी संघ की विचारधारा को प्रचारित किया जा रहा है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बृजकिशोर कुठियाल के अनुसार नारदमुनि तीनों लोक के पहले पत्रकार हैं। विश्वविद्यालय में नारद के नाम पर एक पीठ की स्थापना भी की गई है। इसी तरह पतंजली के नाम पर भी एक पीठ की स्थापना की गई है। विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के स्नातकोत्तर पाठयक्रम के छात्रों को भवभूति का “नाट्यशास्त्र“ पढ़ाया जाता है।
पत्रकारिता विश्वविद्यालय में समय-समय पर विशिष्टजनों को छात्रों को संबोधित करने के लिए बुलाया जाता है। इन विशिष्टजनों की सूची में ऐसे लोग शामिल हैं जो अपनी हिन्दुत्ववादी विचारधारा के लिए जाने जाते हैं। कुछ दिनों पूर्व जगन्नाथपुरी के शंकराचार्य को भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया। शंकराचार्य के आगमन पर छात्र-छात्राओं को पंक्तिबद्ध खड़ा किया गया और उनसे शंकराचार्य पर पुष्पवर्षा करवाई गई। उसके बाद स्वयं कुलपति ने शंकराचार्य का पादुका पूजन किया। उनके भाषण को एक पुस्तिका के रूप में छापा गया। छपी पुस्तिका का शीर्षक दिया गया “पत्रकारिता का धर्म“। पुस्तिका के कवर पेज पर शंकराचार्य का चित्र छापा गया है। चित्र के नीचे लिखा गया है “अनंत श्री विभूषित जगन्नाथपुरी पीठाधीष्वर शंकराचार्य पूज्यपाद निष्चलानंदजी सरस्वती“।
इसी तरह एक श्रीमत् परमहंस परिव्राजकाचार्य श्रोत्रिय ब्रम्हनिष्ठ अखण्ड पीठाधीष्वर आचार्य महामंडलेश्वर अनन्त श्री डा. स्वामी शाष्वतानंदजी महाराज (पीएचडी. विद्यावाचस्पति, गीता वाचस्पति, भागवत भूषण, वेदान्तायुर्वेदरत्न, योगाचार्य) को भी आमंत्रित किया गया। इनके अतिरिक्त भी अनेक व्यक्तियों को संबोधन हेतु विश्वविद्यालय में आमंत्रित किया गया जिनका सीधा संबंध राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी से है। ऐसे ही एक वक्ता थे रामेश्वर मिश्र “पंकज“। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि वह दिन भारतीय इतिहास का सर्वाधिक काला दिन था जब भारतीय संविधान को लागू किया गया। यह बात “पंकज“ ने मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष सांसद प्रभात झा की उपस्थिति में कही और इस तथ्य के बावजूद कि सांसद की हैसियत से प्रभात झा ने संविधान के प्रति आस्था की शपथ ली है वे संविधान के प्रति अपमानजनक बातें चुपचाप सुनते रहे।
विश्वविद्यालय का संघीकरण इस हद तक हो गया है कि विश्वविद्यालय के कार्यक्रमों में संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार का चित्र भी रखा जाता है। कुल मिलाकर विश्वविद्यालय को संघ की शाखा बना दिया गया है। इसलिए यह साफ है कि अब विश्वविद्यालय में पत्रकार नहीं वरन् संघ के पक्के स्वयंसेवक तैयार होंगे।
विश्वविद्यालय के इस पतन पर चिंता प्रगट करते हुए आल इंडिया रेडियो भोपाल के पूर्व निदेशक और संस्थान में ही बारह वर्षों तक विजिटिंग प्रोफेसर के तौर पर पढ़ा चुके महावीर सिंह कहते हैं ‘इस विश्वविद्यालय के नाम में से विश्व को हटा दिया जाना चाहिए, अब यह विश्वविद्यालय नहीं बचा क्योंकि यहां का माहौल सिर्फ एक विचारधारा तक सीमित हो चुका है। जितने भी लोग अपने बच्चों को पत्रकार बनाने का सपना संजोए अपना पैसा और समय इस विश्वविद्यालय में लगाते हैं, वे यहां से एक प्रमाणपत्र के सिवा और कुछ नहीं ले जाते। विश्वविद्यालय में जब भी नयी नियुक्तियां या शासकीय बदलाव होते हैं तो वे बदलाव कम, राजनीतिक निष्ठा का पुरस्कार और प्रशासनिक लीपापोती अधिक लगते हैं।’
इसी माह की 17 तारीख को विश्वविद्यालय की महापरिषद की बैठक में कटु वचनों का इतना आदान-प्रदान हुआ कि उनसे व्यथित होकर भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू बैठक से उठकर चले गए। बाद में विश्वविद्यालय की महापरिषद के अध्यक्ष मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान उन्हें मनाकर लाए।
बैठक में विधानसभा में विपक्ष के नेता श्री अजय सिंह के कड़े विरोध के चलते विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा नोएडा में रू. 15 करोड़ में एक कोल्ड स्टोरेज को खरीदने का प्रस्ताव रद्द कर दिया गया। इस कोल्ड स्टोरेज में विश्वविद्यालय अपना नोएडा अध्ययन केन्द्र स्थापित करना चाहता था।
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