-राम पुनियानी

हाल (दिसम्बर 2011) में राष्ट्रपति ने मध्यप्रदेश विधानसभा द्वारा पारित गौवंश वध प्रतिषेध (संशोधन) विधेयकको अपनी स्वीकृति दे दी। इसके साथ ही, यह विधेयक कानून बन गया है। इस नए कानून के अंन्तर्गत गौवध, गायों को बूचड़खाने पहुंचाना और गौमांस का भंडारण करना या उसे खाना गंभीर अपराध घोषित कर दिया गया है। अपराधी को सात वर्ष तक की सजा या 5000 रूपये जुर्माना या दोनों से दंडित किए जाने का प्रावधान किया गया है। गुजरात, कर्नाटक, झारखण्ड और हिमाचल प्रदेश में गौवंश के वध पर पहले से ही प्रतिबंध है। उड़ीसा और आंध्रप्रदेश में गायों को छोड़कर गौवंश के अन्य सदस्यों का वध विधिसम्मत है,  बशर्ते वे जानवर किसी भी दृष्टि से उपयोगी न रह गए हों।

अन्य राज्यों में गौवध पर मामूली रोक है जबकि नागालैंड, मेघालय, पश्चिम बंगाल और केरल में गौवध पर किसी प्रकार की कोई पाबंदी नहीं है। इस सिलसिले में एक दिलचस्प तथ्य यह है कि भारत में गौमांस की खपत, चिकन और मटन की सम्मिलित खपत के दुगने से भी ज्यादा है। भारत, दुनिया में गौमांस का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की एक हालिया रपट के अनुसार, भारत में सबसे ज्यादा खाया जाने वाला मांस, गौमांस ही है। देश में गौमांस की प्रति व्यक्ति खपत, मटन और सुअर के मांस से कहीं ज्यादा है।

दक्षिणपंथी हिन्दुत्ववादी राजनैतिक दलों ने कभी इस बात को नहीं छिपाया कि उनका लक्ष्य गौवध पर पूर्ण प्रतिबंध लगवाना है। परंतु कांग्रेस ने भी विशेषकर उत्तर भारत में-गौरक्षा के कार्ड का उपयोग कई मौकों पर वोट कबाड़ने के लिए किया है।

भाजपा-शासित राज्यों में पहले से ही गौवध के खिलाफ कड़े कानून बने हुए हैं परंतु मध्यप्रदेश सरकार द्वारा बनाया गया यह कानून शायद इनमें सबसे ज्यादा सख्त है और इसका इस्तेमाल अल्पसंख्यकों और आदिवासियों को प्रताड़ित करने के लिए किया जाना अवश्यंभावी है। इस नए कानून के अनुसार, गौमांस खाने या उसका भंडारण करने वाले के अतिरक्ति किसी ऐसे व्यक्ति  जिसके द्वारा इस कानून के उल्लंघन किए जाने की आशंका हो के विरूद्ध भी हेड कांस्टेबिल या उससे वरिष्ठ किसी भी पुलिसकर्मी द्वारा कार्यवाही की जा सकती है। इस कानून में यह प्रावधान भी है कि स्वयं को निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी आरोपी की होगी। अर्थात, अभियोजन को यह साबित नहीं करना होगा कि आरोपी ने अपराध किया है वरन् आरोपी को यह साबित करना होगा कि वह निर्दोष है। इस कानून को लागू करने में अनेक व्यावहारिक बाधाएं हैं। आखिर कोई पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति द्वारा खाये जा रहे मांस के बारे में यह कैसे कह सकेगा कि वह गाय का है या भैंस या किसी अन्य जानवर का? इस अव्यावहारिक कानून को हिन्दू धर्म की रक्षा के नाम पर लागू किया गया है परंतु यह बड़ी संख्या में गरीब भारतीयों को उनके भोजन के एक महत्वपूर्ण भाग से महरूम कर देगा। आदिवासियों, दलितों और अल्पसंख्यकों (मुसलमानों और ईसाईयों) के लिए गौमांस ही प्रोटीन का सबसे अच्छा स्त्रोत है। कानाफूसी अभियानों, पर्चों व अन्य साहित्य के जरिए, सामूहिक सामाजिक सोच में गाय हमारी माता है, मियां इसको खाता हैजैसे  नारे बैठा दिए गए हैं।  यह मिथक भी फैलाया गया है कि मुसलमान इसलिए हिंसक हैं क्योंकि वे मांस खाते हैं। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन ने केन्द्र में अपने 13 दिनों के शासन के दौरान, पूरे देश में गौवध पर प्रतिबंध लगाने वाला कानून बनाने का प्रयास किया था। गाय, लंबे समय से आरएसएस, उसके सहयोगी संगठनों और हिन्दू दक्षिणपंथियों की राजनीति का महत्वपूर्ण मोहरा रही है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी गौहत्या के मुद्दे को लेकर अनेक दंगे भड़काए गए थे। देश में सैकड़ों गौरक्षा समितियां हैं जो गौशालाएं चलाती हैं। इन सारी गतिविधियों का संचालन संघ से जुड़े संगठनों और संघ की विचारधारा के समर्थकों द्वारा किया जाता है।

प्रजातंत्र पर हमले के लिए दक्षिणपंथी संगठन मुख्यतः राम मंदिर मुद्दे का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। परंतु गाय का मुद्दा हमेशा से उनका स्टेन्डबाय बना रहा है। धीरे-धीरे गौरक्षा के मुद्दे को और हवा दी जा रही है और गाय का महिमामंडन बढ़ रहा है। मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा बनाया गया नया कानून इसी दिशा में एक कदम है। मध्यप्रदेश सरकार पहले से ही विभिन्न धार्मिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिए राज्य का सांप्रदायिकीकरण करती आ रही है। इसके लिए पहचान-आधारित मुद्दों का जमकर उपयोग किया जा रहा है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि साम्प्रदायिक हिंसा की जड़ में पहचान-आधारित राजनीति ही होती है।

मध्यप्रदेश में वहां की भाजपा सरकार, राज्य का हिन्दूकरण करने के अभियान में लंबे समय से जुटी हुई है। राज्य की पूर्व भाजपाई  मुख्यमंत्री उमा भारती ने अपने आधिकारिक निवास में गौशाला बनाई थी। कहीं भी आते-जाते वक्त, ज्योंही उन्हें कोई काली गाय दिखलाई देती थी वे तुरंत अपना काफिला रूकवाकर गाय को रोटी खिलाती थीं। गाय के आसपास देवत्व का जाल बुना जा रहा है। गौमूत्र को कई गंभीर रोगों की रामबाण औषधि के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। प्रदेश में कई दुकानों में गौमूत्र से बनी औषधियां उपलब्ध हैं। सरकार ने स्कूलों में सूर्य नमस्कार करवाने और गीता सार पढ़ाने का निर्णय लिया है। स्कूल के बच्चों पर भोजन मंत्र लादने का प्रयास भी किया गया। राज्य सरकार ने प्रदेश की ईसाई आबादी के बारे में जानकारी इकट्ठा करने का प्रयास भी किया था। अधिकांश सरकारी कल्याण योजनाओं के नाम हिन्दू देवी-देवताओं और कर्मकाण्डों पर रखे गए हैं। कन्याओं के कल्याण के लिए चलाई जा रही योजना का नाम है लाड़ली लक्ष्मीऔर बच्चों के पोषण कार्यक्रम का नाम अन्नप्रासनरखा गया है। हिन्दुत्ववादी आतंकी संगठनों के सदस्यों के लिए मध्यप्रदेश सबसे पसंदीदा शरणस्थली है। राज्य में पढ़ रहे कश्मीरी छात्रों को परेशान करने की खबरें भी सामने आई हैं। राज्य की राजधानी भोपाल, जिसकी स्थापना नवाब दोस्त मोहम्मद खान ने की थी, का नाम बदलकर हिन्दू शासक राजा भोज के नाम पर भोजपाल रखे जाने का प्रस्ताव है।

दुर्भाग्यवश, बिना किसी शोर-शराबे के चलाए जा रहे साम्प्रदायिकीकरण के इस अभियान को राष्ट्रीय मीडिया में अपेक्षित स्थान नहीं मिल सका है। सरकार के अधिकांश निर्णय, भारतीय संविधान की आत्मा के विरूद्ध हैं। हमारा संविधान नागरिकों को उनकी आस्था, खानपान आदि के मामले में पूर्ण स्वतंत्रता देता है और राज्य की नीतियों को धर्म से परे रखने का हामी है। राज्य सरकार एक तरह से अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित व आतंकित कर रही है और उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक बना देना चाहती है। मध्यप्रदेश में हिन्दू राष्ट्र के गठन की ओर बढ़ने के एक नये माडल का प्रयोग किया जा रहा है। हिन्दू और भारतीय संस्कृति को प्रोत्साहन देने के नाम पर अल्पसंख्यकों का दमन किया जा रहा है। यह गुजरात से अलग माडल है जहां अल्पसंख्यकों को आतंकित करने के लिए सीधे शारीरिक हिंसा का सहारा लिया गया था। विडंबना यह है कि एक ओर तो मध्यप्रदेश में अल्पसंख्यकों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले और उन्हें सामाजिक मुख्यधारा से काटने वाले निर्णय लिए जा रहे हैं तो दूसरी ओर जोरशोर से यह प्रचारित किया जा रहा है कि हिन्दू धर्म दुनिया का सबसे सहिष्णु धर्म है।


(लेखक आई.आई.टी. मुंबई में पढ़ाते थे, और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)