''स्कूलों में हर हाल में देंगे गीता का ज्ञान।'' - शिवराज सिंह चौहान 


एल.एस.हरदेनिया

 क्या कोई व्यक्ति जिसकी रक्षा की कसम खाता है उसी की हत्या कर सकता है?

               मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगभग यही कर रहे हैं। शिवराज सिंह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री है। प्रत्येक मंत्री चाहे वह केन्द्र का हो या राज्य का उसे राष्ट्रपति या राज्यपाल शपथ दिलाते हैं। इस शपथ के बाद ही कोई व्यक्ति मंत्री बन सकता है। उस शपथ के अनुसार मंत्रियों पर संविधान की रक्षा कर उत्तरदायित्व सौंपा जाता है। हमारे संविधान की उद्देशिका के अनुसार भारत एक समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। संविधान के अनुसार राजसत्ता का कोई अपना धर्म नहीं होगा। उसके विपरीत संविधान भारत के सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने का अधिकार प्रदान करता है। 

                शिवराज सिंह चौहान ने दिनांक 13 नवंबर को इंदौर में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में बोलते हुए कहा कि वे ''स्कूलों में हर हाल में देंगे गीता का ज्ञान।'' उन्होंने यह भी कहा कि यदि इससे किसी को तकलीफ होती है तो होती रहे। चौहान ने कहा कि स्कूलों में हिन्दुओं के पवित्र ग्रन्थ ''गीता'' का ज्ञान जरूर दिया जाएगा। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि ''जब भी स्कूलों में गीता पढ़ाने की बात करते हैं तो कुछ लोगों को बड़ी तकलीफ होती है। अगर इससे उन लोगों को तकलीफ होती है तो होती रहे हम बच्चों को गीता का ज्ञान हर हाल में देकर रहेंगे।''

               मुख्यमंत्री ने उस संविधान की रक्षा करने की शपथ ली है जो पंथ निरपेक्ष (या धर्म निरपेक्ष) है। पंथ निरपेक्ष संविधान होने के कारण राजसत्ता किसी भी धार्म के प्रचार प्रसार नहीं कर सकती। हाँ संविधान प्रत्येक नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता की गांरटी अवश्य देता है। मुख्यमंत्री ने स्वयं स्वीकार किया है कि गीता हिन्दुओं का पवित्र ग्रन्थ है। इस स्वीकार्यता से कि गीता हिन्दू ग्रन्थ है और उसका सार स्कूल के बच्चों को बताया जाएगा तो यह हिन्दू धर्म का प्रत्यक्ष प्रचार होगा जिसकी संविधान में  मनाही है। इसके बावजूद भी यदि मध्यप्रदेश के स्कूलों में सरकार के आदेश के अनुसार गीता पढ़ाई जाती है तो वह स्पष्टत: संविधान का उल्लंघन होगा। एक मंत्री (एक प्रधान मंत्री और मुख्यमंत्री समेत) मंत्री पद स्वीकार करते हुये तो संविधान की रक्षा की शपथ तो लेता ही है उसके पूर्व भी वह दो बार संविधान के प्रति अपनी प्रतिबध्दता की शपथ लेता है। ऐसा वह चुनाव के पूर्व अपनी उम्मीदवारी का पर्चा दाखिल करते समय करता है। उसके विधायक या सांसद चुने जाने पर उसे स्पीकर भी ऐसी शपथ दिलवाता है उसके बाद यदि वह मंत्री बन जाता है तो पुन: संविधान की रक्षा की शपथ लेता है। जिस व्यक्ति ने संविधान की रक्षा की शपथ ली हो वहीं यदि संविधान के विपरीत आचरण करता है तो वह उस पद पर बने रहने की पात्रता खो देता है। मुख्यमंत्री ने यह घोषणा करके कि वह हर हालत में हिन्दुओं के पवित्र ग्रन्थ ''गीता'' का ज्ञान स्कूलों के बच्चों को देंगे मुख्यमंत्री के पद पर बने रहने की पात्रता खो दी है।

 मुख्यमंत्री ने अपने भाषण में संविधान में निहित ''सेक्यूलरिज्म'' (धर्मनिरपेक्ष) की परिभाषा को चुनौती है। संविधान की मंशा के अनुसार राजसत्ता न तो  किसी विशेष धर्म को संरक्षण देगी और न ही वह किसी धर्म विशेष का प्रचार करेगी। संविधान में कतई देश के सभी नागरिकों को उसी तरह धर्म निरपेक्ष बनाने की मंशा नहीं है जैसी राजसत्ता को बनाया गया है। एक ऐसा देश होने के जिसमें अनेक धर्मों के मानने वाले रहते हैं, राजसत्ता का धर्म के मामले में तटस्थ रहने के अतिरिक्त कोई और रास्ता नहीं था। संविधान निर्माताओं ने इसी रास्ते को चुना और चूँकि यह रास्ता चुना गया था इसलिए भारत के राष्ट्र एक रूप में अस्तित्व में है। इसलिए यदि राजसत्ता सेक्यूलरिज्म की वर्तमान परिभाषा  को त्यागकर अन्य परिभाषा को स्वीकार करती है तो इससे संविधान की नींव कमजोर होगी। इंदौर में मुख्यमंत्री सरस्वती शिशु मंदिरों के शिक्षकों के सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने अपने संबोधन में सरस्वती शिशु मंदिर को हर संभव सहायता देने का आश्वासन दिया। सरस्वती शिशु मंदिरों का संचालन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ करता है। इन शिक्षण संस्थाओं का उपयोग संघ की विचारधारा के प्रचार के लिए किया जाता है। सरस्वती मंदिरों में कुछ ऐसी पुस्तके पढ़ाई जाती है जिनमें दूसरे धर्मों के प्रति घृणा फैलाने वाली बातें शामिल हैं। विशेषकर इस्लाम और ईसाई धर्म के बारे में भ्रामक बातें बताई जाती हैं। फिर इन पुस्तकों में ऐसी बातें भी शामिल हैं जो इतिहास को तो छोड़ दें किवन्दती को भी तोड़ मरोड़ कर पेश करती हैं। जैसे राम मंदिर किसने बनवाया इस प्रश्न को उत्तर में बताया गया कि राम मंदिर राम के पुत्र लवकुश ने बनवाया है। क्या इस तथ्य पर भरोसा किया जा सकता है। फिर उन पुस्तकों में ऐसी बातें है जो तर्क एवं अनुभव के माप-दंड़ पर खरी नहीं उतरती है जैसे एक किताब में उल्लेख है कि गंगा का पानी वर्षों बोतल में रखने के बाद खराब नहीं होता है। क्या इस तरह के शिक्षा संस्थाओं को संविधान सम्मत सरकार द्वारा ''हर संभव सहायता'' दी जानी चाहिए।   

हमारे संविधान में जहां नागरिकों को अधिकार दिये गये है वही उनसे कुछ कर्तव्यों के पालन की अपेक्षा भी की गई है। इनमें एक कर्तव्य यह है कि नागरिकों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानर्जन तथा सुधार की भावना का विकास करना चाहिए। इसलिए यदि किसी शिक्षा संस्थान में ऐसी बातें पढ़ाई जाती हैं जिनसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास में बाधा पड़ती है तो ऐसी शिक्षा संस्थान को सरकारी सहायता कतई नहीं दी जानी चाहिए। ऐसा करना भी संविधान की मंशा के विपरीत होगा। वैसे यह वास्तविकता है कि शिवराज सिंह चौहान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा प्रशिक्षित राजनीतिज्ञ है परंतु उन्हें यह अधिकार नहीं है कि वह राज्य पर संघ की विचारधारा लादें।