भोपाल के 11 बस्तीयों में 5 साल से छोटे बच्चों की पोषण की स्थिति पर एक अध्ययन रिर्पोट
यह अध्ययन
इस अध्ययन का मुख्य उद्देश्य मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 5 साल से कम उम्र के बच्चों के स्वास्थ की स्थिति को जानना है।
इसके लिए हमने भोपाल शहर के 11 बस्तीयों का चुनाव किया। बस्तीयों का चुनाव करते समय इस बात का ध्यान रखा गया है कि शहर के सभी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व हो सके।
ये 11 बस्तीयॉ निम्नानुसार है -
श्याम नगर,विटठल मार्केट के पास,गौतम नगर, चेतक ब्रिज के नीचे,राजीव नगर,राहूल नगर पम्पापूर,बलबीर नगर,झागरिया,न्यू अम्बेड़कर नगर, कोलार,शंकर नगर,हबीबगंज स्टेषन के पास,पात्रापुल,बागमुगिलया,मलिन बस्ती, बागमुगिलया,न्यू आरिफ नगर
इन बस्तीयों में ज्यादातर आदिवासी,दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्ग के लोग रहते हैं।
इस अध्ययन के लिए दो विधियों का उपयोग किया गया है।
1 प्रश्नावली - प्रश्नावली द्वारा अध्ययन के लिए चुने गये बस्तीयों की सामान्य जानकारी ली गई है।
2 बच्चों का वजन - चयनित बस्तीयों में 5 साल तक के बच्चों के पोषण की स्थिति का पता करने के लिए जनवरी और फरवरी माह 2011 में कुल 255 बच्चों का वजन लिया गया है। इन 11 बस्तीयों में से 9 बस्ती में से प्रत्येक में 25 बच्चों और 2 बस्ती में 15 -15 बच्चों का वजन लिया गया है। वजन के लिए बच्चों का चुनाव दैव निदर्षन (रेन्ड़म सेम्पलिंग) विधि द्वारा किया गया है। इस पद्वति के अर्न्तगत समग्र में से प्रत्येक को समान रुप से चुने जाने की संम्भावना होती हैं।
बच्चों का वजन करने के लिए आंगनबाड़ी केन्द्रों में उपयोग होने वाले मषीन का उपयोग किया गया हैं। वजन के बाद मध्यप्रदेष शासन के महिला और बाल विकास विभाग द्वारा जारी वृद्वि निगरानी चार्टस रजिस्टर के माध्यम से वजन किये बच्चों के पोषण/ कुपोषण का स्तर निकाला गया है।
यह अध्ययन एक नमूने के तौर पर भोपाल के 11 बसाहटों में किया गया है। हम उम्मीद करते हैं कि प्रस्तुत अध्ययन समग्र भोपाल में कुपोषण की स्थिति जानने के लिए एक पैरामीटर का काम करेगा। हम ये भी उम्मीद करते हैं कि प्रस्तुत अध्ययन के निर्ष्कषों एवं मांगों पर प्रशासन और नागरिक समाज गंभीरता से विचार करेगा और स्थिति में सकारात्मक बदलाव के लिए नयी पहल की शुरुवात होगी।
भूमिका
आमतौर पर शहरों को उम्मीदों का केन्द्र माना जाता है लेकिन भारत के ज्यादातर शहर अपने एक बड़ी जनसंख्या के लिए मजबूरी, अभाव और नाउम्मीदी के नये टापू ही साबित हो रहे हैं।
विकास के रथ पर लम्बी छलांगे लगा रहे भारत के शहरों के चमचमाते चहरों के पीछे अभावों की ऐसी अंधेरी दुनिया बस्ती है जो देश के विकास दर की तरह दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है। इस अंधेरी दुनिया में बसने वाली आबादी शहर की रीढ़ होती है जो अपने श्रम से शहर की अर्थव्यवस्था में बहुमूल्य योगदान देती है लेकिन शहर का खाया पिया वर्ग और सरकारी तंत्र इन लोगों को बोझ मानता है और इसे नये नये तरीकों से छुपाने या भगाने के यत्न में लगा रहता है।
लेकिन शहरों के अभावग्रस्तों की दुनिया इतनी बड़ी और गहरी है कि तमाम छुपाने या भगाने के खेल के बावजुद इसका ग्राफ लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इसका कारण बहुत साफ है, कृषि पर बहुसंख्यक भारतीयों की निर्भरता, उनके लिए कृषि के विकल्प का अभाव, गांव मे सूखे की लगातार स्थिति, खेती के लगातार बिगडते हालात, खेती को प्रोत्साहित करने वाली सुदृढ़ योजनाओं का अभाव, सीमित रोजगार और शहरों में बढ़ते काम के अवसरों के कारण एक बड़ी तादाद होती है जिसके पास दो ही विकल्प होता है, शहरों की तरफ अंधी दौड़ या आत्महत्या। शहरों की इन झुग्गीयों में रहने वाले लोगों में दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक तथा आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग ही शामिल है।
यही आबादी शहरों का असंगठित क्षेत्र कहलाती है। भारतीय अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र में देश की सकल नगरीय श्रम शक्ति का एक बहुत बड़ा भाग बसा हुआ है। ये श्रम शक्ति असंगठित औधोगिक श्रमिकों के अलावा निर्माण श्रमिक, छोटे दुकानदार, सब्जी-खाने का सामान बेचने वाले, अखबार बेचने वाले, धोबी, फेरी वाले, सफाई करने वाले,घरेलू कामगार इत्यादि की भी बड़ी संख्या है जिन्हें असंगठित क्षेत्र में गिना जाता है। असंगठित क्षेत्र का यही कामगार वर्ग शहर की झुग्गीयों में रहता है जो परम्परागत रुप से आर्थिक और सामाजिक रुप से कमजोर तबके से ही हैं।
झुग्गीयों में जीवन जीने के बुनियादी जरुरतें पानी, बिजली, शोचालय, स्वास्थ सुविधा, स्कूल,सम्मानजनक आवास, साफ सफाई आदि नही होती है। ऐसे विपरीत परिस्थितियों का सबसे ज्यादा नकारात्मक प्रभाव बच्चों और महिलाओं पर पड़ता है।
वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार देश में लगभग 61.8 मिलियन लोग स्लम में निवास करते हैं।
भोपाल जनसंख्या की दृष्टि से म.प्र. का दूसरा सबसे बडा शहर है। मध्य प्रदेष के सन् 1956 मे अस्तित्व मे आने के पश्चात् भोपाल को राजधानी का दर्जा यहां की नवाबी रियासत के जोर पर मिला।
वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक भोपाल की जनसंख्या 14,33,875 थी। शहरीकरण की प्रक्रिया में 5 प्रतिशत प्रति वर्ष वृद्वि के आकलन के अनुसार वर्तमान में शहर की आबादि 17 लाख अनुमानित है (स्रोत- बी. एम. सी. भोपाल सर्वे 2005 ) जिसमें रोजगार की तलाश में पलायन करके आने वाले लोगों का प्रतिशत 14.59 है (स्रोत सी. डी. पी. भोपाल 2005 ) इसमें भी बड़ी तादात गरीब मजदूर वर्ग की होती है। वर्ष 1991 की जनगणना के मुताबिक भोपाल के स्लम में रहने वालों की जनसंख्या 3.99 लाख थी जो कि 2001 की जनगणना में घटकर मात्र 1.26 लाख रह गयी। जबकि राजधानी जैसी जगहों पर लोगों का रोजाना आना और बसना जारी है, वहां यह जनसंख्या बढ़नी ही चाहिए थी। जनगणना विभाग से यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि आखिर स्लम में रहने वाले ये लोग गये कहॉ?
अभाव और भूखमरी की मार बच्चों पर सबसे ज्यादा पड़ती है। आवश्यक भोजन नही मिलने की वजह से बड़ों का शरीर तो फिर भी कम प्रभावित होता है लेकिन बच्चों पर इसका असर तुरंत पड़ता है जिसका असर लम्बे समय तक रहता है। सबसे पहले तो गर्भवती महिलाओं को जरुरी पोषण नही मिल पाने के कारण उनके बच्चे तय मानक से कम वजन के होते ही है, तो जन्म के बाद अभाव और गरीबी उन्हें भरपेट भोजन भी नसीब नही होने देती है। नतीजा कुपोषण होता है। जिसकी मार या तो दुखद रुप से जान ही ले लेती है या इसका असर ताजिंदगी दिखता है।
अगर ये माना जाये कि किसी भी व्यक्ति की उत्पादकता में उसके बचपन के पोषण का महत्वपूर्ण योगदान होता है। तो यहे भी मानना पड़ेगा कि देश /प्रदेश में जो बच्चे भूखमरी और कुपोषण के शिकार है उसका प्रभाव देश और समाज की उत्पादकता पर भी पड़ेगा।
वर्तमान ही भविष्य बनता है और हमारे इस वर्तमान का खामयाजा अगली पीढ़ी को भुगतना ही पड़ेगा।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ सर्वेक्षण के मुताबिक भारत के 3 साल से कम उम्र के 46 प्रतिषत बच्चे कुपोषण के शिकार है। मध्यप्रदेश में 60 प्रतिषत बच्चे कुपोषण से ग्रस्त है। वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि ऐसे बच्चों को बीमारीयों से जान गंवाने का खतरा सामान्य बच्चों से 8 गुना ज्यादा होता है।
कुपोषण और शिशु मृत्यु दर में म.प्र. पहले पायदान पर है। फरवरी 2010 में मध्यप्रदेश के लोक स्वास्थ मंत्री ने प्रदेश की सबसे बड़ी पंचायत विधानसभा में स्वीकार किया था कि राज्य में 60 फीसदी बच्चे कुपोषण से ग्रस्त है। उन्होनें स्वीकार किया था कि राज्य में 5 वर्ष तक के आयु वर्ग के प्रति एक हजार में से करीब 70 बच्चे कुपोषण की वजह से मौत का शिकार हो जाते है।
आंकड़े बताते है कि प्रदेश में कुपोषण के सर्वयापीकरण का आलम ये है कि 2005 से 2009 के बीच राज्य के 50 में से 48 जिलो में 1लाख 30हजार 2सौ 33 बच्चे मौत के काल में समा गये।
मध्यप्रदेश में ग्रामीण क्षेत्रों में कुपोषण की स्थिति जगजाहिर है लेकिन प्रदेश के शहरों की स्थिति भी कुछ अलग नही है। जिस पर हमें बातचीत करने की जरुरत महसूस हुई।
प्रस्तुत रिर्पोट मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 0 से 5 साल के बच्चों की पोषण/कुपोषण के स्थिति की पड़ताल करती है -
चयनित 11 बस्तियों की सामान्य जानकारी एवं उपलब्ध बुनियादी सुविधाऐं
श्याम नगर
श्याम नगर नये भोपाल के लगभग मध्य में स्थित है। इस बस्ती में कुछ परिवार जे.एन.एन.यू.आर.एम के तहत बने पक्के फ्लैट में रहते है वही गौड़ समुदाय संधन क्षेत्र वाले परिवार झुग्गीयों में रहते हैं। बस्ती में लगभग 1500 परिवार है जिसमें गौड़,अल्पसंख्यक,अनुसूचित जाति के लोग हैं। बच्चों की संख्या ज्यादा होने के कारण इस बस्ती में 3 आंगनबाड़ी है। शहर के लगभग बीच में होने के कारण इस बस्ती के आसपास ही सभी आवश्यक स्थान है। इस बस्ती के सबसे निकट का स्वास्थ केन्द्र 1 कि.मी. की दूरी पर ही स्थित है जबकि नये भोपाल का मुख्य सरकारी हॉस्पीटल 1250 लगभग 2 से 3 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। इस बस्ती में लगभग ज्यादातर के पास गरीबी रेखा का कार्ड है।
बस्तीवासीयों ने बताया कि बस्ती में दो सबसे बड़ी समस्या है पहला पानी की, पक्के मकानों में तो घरों में नल कनेक्षन है परन्तु वहॉ पानी एक दिन छोड़ के एक-आध घंटे के लिए आते है। जबकि झुग्गीयों में जगह जगह में सार्वजनिक नल है। दूसरी बड़ी समस्या शौचालय की है। पक्के मकानों में तो घरों में ही शौचालय है। जबकि झुग्गीयों में एक सुलभ शौचालय है पर वह बहुत गंदा रहता है इस कारण लोग खुले में शौच के लिए जाते है। बस्ती के गौड़ समुदाय के लोग पत्थर तोड़ने, शादीयों में लाईट उठाने और निर्माण मजदूर का काम करते हैं। दूसरे समुदाय के लोग सरकारी, प्रायवेट नौकरी, पंचर की दुकान, आटो चलाना, दुकानों में मजदूरी करते हैं।
गौतम नगर
गौतम नगर चेतक ब्रिज के पास नये भोपाल में स्थित है। इस बस्ती में वैसे तो लगभग 60 झुग्गियॉ है परन्तु एक झुग्गी में कई परिवार साथ रहते है। इस तरह से इस बस्ती में लगभग 250 परिवार रहते हैं। सभी परिवार गौड़ आदिवासी है। समुदाय के लोगों ने बताया कि इस बस्ती में आंगनबाड़ी नही है, पास में ही जनता र्क्वाटर में आंगनबाड़ी स्थित है जो कि लगभग 2 कि.मी. दूर है। इस कारण बस्ती के बच्चे आंगनबाड़ी केन्द्र नही जाते हैं। इस बस्ती से सबसे निकट का सरकारी अस्पताल 1250 हॉस्पीटल है जो कि लगभग 4कि.मी. की दूरी पर स्थित है। बस्ती में लगभग सभी परिवारों के पास गरीबी रेखा का राशन कार्ड है। राशन की दुकान जनता र्क्वाटर में है।
लोगों ने बताया कि बस्ती में सबसे बड़ी समस्या पानी की है। पूरे बस्ती में केवल 2 नल ही है और वो भी दो दिन में एक बार आता है। बस्ती में सामुदायिक शौचालय नही है इस कारण सभी लोग खुले में शौच करते है। रोजगार के नाम पर इस बस्ती के ज्यादातर पुरुष और महिला कचरा बीनने का काम करते है और बच्चे भीख मांगते हैं। कुछ पुरुष को कभी कभी पास के पेप्सी कोलड्रीग फैक्टरी में माल ढोने का काम मिल जाता है। कुछ परिवार सूपा और पीपा बनाने का काम करता है। इस बस्ती में एक साल के दौरान 5 साल से छोटे उम्र के 2 से 3 बच्चों की मृत्यु हुई है।
राजीव नगर
राजीव नगर बस्ती भोपाल के नेहरु नगर चौक के पास स्थित है। यहॉ ज्यादातर पारधी समुदाय के लोग निवास करते हैं। बस्ती में एक आंगनबाड़ी है जो की रोज खुलती है। बस्ती के सबसे निकट कोटरा का सरकारी अस्पताल है जो की बस्ती से केवल 1 कि.मी.की दूरी पर स्थित है। बस्ती के ज्यादातर लोगों के पास गरीबी रेखा का कार्ड है। यहॉ नल एक दिन छोड़ कर आता है और एक हैंडपम्प भी है। बस्ती के कुछ ही घरों में शौचालय है परन्तु बस्ती में सामुदायिक शौचालय है। इस बस्ती के ज्यादातर पुरुष मजदूरी करते है। कुछ पुरुष छोटा मोटा धंधा करते है। ज्यादातर महिलाऐं कचरा बीनने का काम करती हैं। बस्ती में एक साल के दरमियान 2 माह के एक बच्चे की मृत्यु हुई थी जिसका कारण डॉक्टर ने निमोनिया बताया था।
राहूल नगर, पम्पापुर
राहूल नगर में लगभग 200 से 250 परिवार रहते है जो कि ज्यादातर अनुसूचित जाति वर्ग से है। लोगों ने बताया कि आंगनबाड़ी बस्ती के दूसरे टोले में स्थित है। बस्ती के सबसे पास का हॉस्पीटल 1250 हॉस्पीटल है जो कि 3 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। बस्ती के लगभग सभी लोगों के पास गरीबी रेखा का कार्ड है। राशन लेने के लिए बस्ती के लोगों को माता मंदिर में स्थित राशन की दुकान में जाना पड़ता है जो कि बस्ती से केवल 1 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
बस्तीवासीयों ने कहा कि बस्ती में नल तो जगह जगह लगे हुए है परन्तु इन नलों में पानी बहुत कम समय के लिए आता है। बस्ती में लोगों के घरों में शौचालय नही है। बस्ती में एक सामुदायिक शौचालय है परन्तु उसमें रेगूलर सफाई ना होने के कारण लोग नही जाते है और खुले में शौच करने जाते हैं। बस्ती के ज्यादातर लोग मजदूरी का काम करते हैं।
बलबीर नगर
बलबीर नगर के अनुसूचित जाति टोले में लगभग 40 से 50 परिवार निवास करते हैं। बस्ती में 1 आंगनबाड़ी है जो इस टोले से आधा कि.मी. से भी कम दूरी पर स्थित है। बस्ती के सबसे पास का हॉस्पीटल 1250 हॉस्पीटल है जो कि 3 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। बस्ती के इस टोले में ज्यादातर के पास गरीबी रेखा का कार्ड है। माता मंदिर में स्थित राशन की दुकान से बस्ती वाले राशन लाते है। लोगों ने बताया कि नल से पानी भरते है परन्तु वह पूरा नही होता जिसके कारण उन्हें दूसरी बस्ती से पानी लाना पड़ता हैं। टोले में एक सामुदायिक शौचालय है परन्तु पानी की कमी के चलते वह बंद हो गया हैं। इस लिए टोले के लोग खुले में शौच करने जाते हैं। बस्ती के ज्यादातर लोग मजदूरी करते है। कुछ लोग छोटा मोटा धंधा करते है। कुछ महिलाऐं आसपास के मकानों में घरेलू कामगार का काम करती हैं।
झागरिया
झागरिया गॉव होशंगाबाद और रायसेन को जोड़ने वाली बायपास रोड़ पर स्थितहै। यहॉ 8 माह पहले बंजारा बस्ती कटारा हिल्स भोपाल से लोगों को विस्थापित करके बसाया गया है। यह स्थान शहर से लगभग 25 कि.मी. दूरी पर स्थित है। यहॉ एक आंगनबाड़ी है परन्तु स्थानिय लोगों ने बताया कि वह रेगुलर नही खुलती है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता रोज नही आती है।
लोगों ने बताया कि सबसे पास का हॉस्पीटल कटारा हिल्स, बागसेवनिया में स्थित है जो कि लगभग 4 कि.मी की दूरी पर है परन्तु वहॉ तक पहुचने का रोड़ बहुत खस्ता हालत में है साथ ही इस स्थान से किसी भी प्रकार की लोकल परिवहन सुविधा नही है। इसी के चलते एक व्यक्ति को सही समय पर हास्पीटल नही पहुचाया जा सका और उसकी रास्ते में ही मृत्यु हो गई। इस गॉव से प्रमुख सरकारी हॉस्पीटल 1250 लगभग 25 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। ज्यादातर लोगों के पास अति गरीबी वाला कार्ड है पर राशन लेने के लिए उन्हें लगभग 5 कि.मी. दूर कटारा हिल्स में जाना पड़ता है।
यहॉ पानी के लिए लोग हैड़पम्प पर निर्भर हैं परन्तु इसका पानी बहुत ही खराब होता है। स्थानिय लोगों ने बताया कि जब से वे विस्थापित हो के यहॉ आये हैं तब से यहॉ लगभग 12 लोगों की मौत हो गई है। लोगों का कहना था कि हैड़पम्प के गंदे पानी पीने के कारण ही ये मौते हुई हैं।
सामुदायिक शौचालय की व्यवस्था नही है इसी कारण सभी लोग पास के जंगल/झाड़ियों में शौच करने जाते हैं। स्थानिय लोगों ने बताया कि यहॉ पिछले 8 माह के दौरान दो बच्चों की मौत हो चुकी है। जिसमें से एक बालक 3 माह का था जो की सोते ही में खत्म हो गया था। उसकी मौत के कारण का पता नही चल पाया। जबकि दूसरे बच्चे की सही देखभाल ना होने के कारण मौत हो गई। यह बच्चा जन्म के समय से ही कमजोर था डॉक्टर ने बहुत देखभाल के लिए बोला था परन्तु उसी समय इन लोगों को कटारा हिल्स से यहॉ विस्थापित कर दिया गया। इस बदहाली की स्थिति में उस नवजात बच्चे की देखभाल नही हो सकी और उसकी मृत्यु हो गई। इसके अलावा इन 8 माह के दौरान टोले में एक महिला और बच्चा की डिलवरी के बाद मौत हो गई।
शहर से इतनी दूर बसाये जाने के कारण ज्यादातर लोगों का रोजगार छिन गया है। लोगों की आर्थिक स्थिति ओर कमजोर हुई है।
न्यू अम्बेड़कर नगर
कोलार में स्थित न्यू अम्बेड़कर नगर में लगभग 500 परिवार है जो 3 टोलो में विभाजित है। जिसमें से एक टोले में पारधी समुदाय और बाकी टोलों में महाराष्ट्र से आये अनुसूचित जाति समुदाय के लोग रहते हैं। बस्ती में 3 आंगनबाड़ी है। बस्ती के पास ही प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र है। बस्ती के लगभग सभी लोगों के पास गरीबी रेखा का राशन कार्ड है। समुदाय के लोगों ने बताया कि पारधी टोले में पानी के लिए एक बड़ी टंकी लगी थी जिसमें सरकारी टैंकर पानी भर कर चला जाता था उससे वहॉ के लोगों की पानी की जरुरत की पूर्ति हो जाती थी परन्तु बाद में उसे हटवा दिया गया। जिससे अब लोगों को पानी की बड़ी समस्या हो रही है। सरकारी टैंकर भी 2 दिन में एक बार आता है। परन्तु यह पूरी बस्ती के लिए कम पड़ता है। इसी कारण सभी बस्ती वाले हर 15 दिन में पैसा जमा कर प्रायवेट टैंकर बुलाते है। पारधी टोले वाले सभी परिवार खुले में शौच करने जाते है जबकि अन्य टोलों में से ज्यादातर घरों में शौचालय की व्यवस्था है। बस्ती की महिलाओं ने बताया कि पारधी समुदाय में ज्यादातर महिलाऐं ही काम करती है जबकि पुरुष घर पर रहते है। ये महिलाऐं कचरा बीनने का काम करती है। अनुसूचित जाति समुदाय की महिलाऐं और पुरुष दोनों ही काम करते है। पुरुष मजदूरी, कबाड़ का काम करते है महिलाऐं मजदूरी और घरेलू कामगार है।
शंकर नगर
हबीबगंज स्टेशन के पास लगभग 100 परिवारों वाला शंकर नगर बस्ती है। यहॉ ज्यादातर लोग अनुसूचित जाति और अल्पसंख्यक वर्ग से हैं। स्थानिय लोगों ने बताया कि बस्ती में आंगनबाड़ी केन्द्र नही है। यह बस्ती के पास के मेन रोड़ के उस पार की बस्ती में है। इस रोड़ में ट्रैफिक बहुत होने के कारण बस्ती के बहुत कम बच्चे ही उस आंगनबाड़ी में रेगूलर जा पाते है। लगभग सभी के पास गरीबी रेखा के कार्ड है। लेकिन राशन लेने के लिए 6 नं स्टॉप में स्थित राशन की दुकान जाना पड़ता है। पानी के लिए पास के पम्प हॉउस से सामुदायिक नल का कनेक्षण है। बस्ती में किसी के घर में शौचालय नही है ना ही कोई सामुदायिक शौचालय है। बस्ती के पुरुष कबाड़ का काम और महिलाऐं और बच्चे कचरा बीनने का काम करते हैं। लोगों ने बताया कि इस बस्ती में एक साल के दौरान दो बच्चों की मौत हुई है जिसमें संगीता नामक महिला का 4 माह का बच्चा रात में सोया था परन्तु सुबह जब देखा गया तो वह मृत पाया गया। वहीं संतोष के 2 माह के बेटे की मौत सर्दी के कारण हुई।
पात्रापुल
पात्रापुल बागमुगलिया में स्थित है। इस बस्ती में लगभग 60 परिवार है जो कि अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग से है। बस्ती के पास ही आंगनबाड़ी केन्द्र है। ज्यादातर लोगों के पास गरीबी रेखा वाला राशन कार्ड है। पात्रापुल से 2 कि.मी. की दूरी पर लाहरपुर में राशन की दुकान है। पानी के लिए इस बस्ती में हैडपम्प और नल दोनों है। शौचालय किसी भी घर में नही है इस कारण ये लोग खुले में शौच के लिए जाते है। इस बस्ती के ज्यादातर लोग दैनिक मजदूरी करते है।
मलिन बस्ती
मलिन बस्ती बागमुगलिया में स्थित है। इस बस्ती में लगभग 95 परिवार है। यहॉ रहने वाले ज्यादातर परिवार अल्पसंख्यक वर्ग से, कुछ परिवार पिछड़ा वर्ग से भी है। आंगनबाड़ी केन्द्र बस्ती में ही है। इस बस्ती में कुछ ही लोगों के पास गरीबी रेखा वाला राशनकार्ड है। राषन लेने के लिए 7 कि.मी. दूर जाना पड़ता हैं। बस्ती में कई हैड़पम्प है। बस्ती में सामुदायिक शौचालय नही है। सभी लोग खुले में शौच करने जाते हैं। बस्ती के लोग मूर्ति, ढोलक बनाना,मजदूरी करने का काम करते हैं।
भोपाल के 11 बस्तीयों में बच्चों की पोषण/कुपोषण की स्थिति
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भोपाल के 11 बस्तीयों में वजन किये गये 5 साल तक के बच्चों के कुल 255 बच्चों में 129 बच्चे सामान्य पाये गये। जबकि 126 बच्चे कुपोषित है। इन 126 बच्चों में 51 बच्चे अतिकुपोषण के शिकार है। यानी तौल किये गये बच्चों में से आधे बच्चे कुपोषित/अतिकुपोषित हैं। इन कुपोषित/अतिकुपोषित में ज्यादातर बच्चे दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और पिछड़ा वर्ग से हैं।
यह चिंताजनक स्थिति है उस भोपाल की है जो प्रदेश की राजधानी है जहॉ ये माना जाता है कि प्रदेश के दूसरे हिस्सों के मुकाबले राजधानी में जीवन जीने के बुनियादी सुविधाओं की स्थिति बेहतर होती है लेकिन उपरोक्त आंकड़े कुछ ओर ही कहानी बया करते हैं।
वैसे तो आंगनबाड़ी केन्द्र की परिकल्पना समग्र बाल विकास के केन्द्र के रुप में की गई थी। लेकिन वास्तव में ये पोषण आहार वितरण केन्द्र के रुप में अपनी ख्याति दर्ज करा रहें हैं। भोपाल के आंगनबाड़ी केन्द्रों की स्थिति प्रदेश के दूसरे हिस्सों के केन्द्रों से बहुत जुदा नही है। सभी की समस्याऐं समान ही है।
समेकित समग्र बाल विकास को ध्यान में रखते हुए 2 अक्टूबर 1975 से समेकित बाल विकास परियोजनाऐं प्रारंभ की गई । बाल विकास परियोजनाऐं के निम्नलिखित उददेश्य है:-
- छः वर्ष से कम आयु के बच्चों के पोषण और स्वास्थ्य स्तर में सुधार ।
- बच्चों के समुचित मनोवैज्ञानिक, शारीरिक और सामाजिक विकास की नींव डालना।
- रूग्णता मृत्यु दर, कुपोषण और बीच में पढ़ाई छोड़ देने की घटनाओं को कम करना।
- बाल विकास के संवर्धन हेतु विभिन्न विभागों के बीच नीति और इसके कार्यान्वयन के बीच कारगर समन्वय स्थापित करना।
- मां को समुचित स्वास्थ्य और पोषाहार शिक्षा देकर बच्चे की सामान्य स्वास्थ्य और पोषाहारीय आवश्यकताओं की देखभाल करने के लिए उसकी सक्षमता बढ़ाना।
आई.सी.डी.एस. द्वारा प्रदाय की जाने वाली मुख्य 6 महत्वपूर्ण सेवाऐं निम्नानुसार है:-
- पूरक पोषण आहार
- स्वास्थ्य जांच
- प्रथमिक स्वास्थ्य की देखभाल/परामर्श सेवायें
- टीकाकरण/रोग प्रतिरक्षण
- पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा
- स्कूल पूर्व अनौपचारिक शिक्षा
इन उददेशयों को पूरा करने के लिए प्रत्येक आंगनबाड़ी केन्द्र में एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और एक सहायिका की नियुक्ति की जाती है जिन्हें मानदेय के रुप में क्रमश 2500 और 1200रु दिया जाता है। जो ज्यादातर समय पर नही मिलता है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को 18 से 20 रजिस्टर भी मेन्टेन करना होता है। ज्यादातर आंगनबाड़ी केन्द्र किराये के छोटे छोटे कमरों में चलते है जिसके कारण केन्द्र में की जाने वाली विभिन्न गतिविधियॉ नही हो पाती है।
उपरोक्त उददेशयों और सेवाओं की इसे पूरा करने के लिए लगाये गये श्रम शक्ति से तुलना करने पर यह अंदाजा लगाना मुश्किल नही होना चाहिए कि समग्र बाल विकास का सपना जमीनी स्तर पर कितना बदहाल है।
दरअसल पोषण आहार वितरण केन्द्र के रुप में भी आंगनबाड़ी केन्द्र में भी यह फिस्सड़ी ही साबित हो रहे है। इसकी वजह दी जाने वाली पोषण आहार की गुणवत्ता का बदतर होना है। एक पूरक पोषण आहार के लिए शासन द्वारा प्रतिदिन 4 से 6 रु दिया जाता है। ऐसे में माताओं और आंगनबाड़ी कार्यकताओं का यह कहना सही है कि पोषण आहार की गुणवत्ता इतनी खराब होती है कि इसे जानवरों को भी नही खिलाया जा सकता है।
लेकिन अगर हम समेकित समग्र बाल विकास योजनाओं को ठोस रुप से लागू कराने में सफल हो जाये तो क्या देश प्रदेश के बच्चों की कुपोषण से मुक्ति सम्भव है ?
कुपोषण का सीधा संबंध बेरोजगारी,गरीबी,जीवन जीने के लिए जरुरी बुनियादी जरुरतों के अभाव से होता है। इसलिए तात्कालिक रुप से भले ही समेकित समग्र बाल विकास जैसी योजनाओं को प्राथमिकता दी जाये लेकिन यह इसका कोई मुक्कमल हल नही है। इसके लिए इन बच्चों के परिवारों की बेरोजगारी एवं गरीब को दूर करने तथा सम्मानपूर्वक जीवन जीने के लिए आवष्यक संसाधनों तक पहुच होना भी जरुरी है।
सिफारिश और मांगें
भोपाल में 5 साल से कम उम्र के बच्चों के स्वास्थ की स्थिति के अध्ययन के दौरान निम्न लिखित बातें सामने आयीं।
- भोपाल के 11 बस्तीयों में वजन किये गये 5 साल तक के बच्चों के कुल 255 बच्चों में 129 बच्चे सामान्य पाये गये। जबकि 126 बच्चे कुपोषित है। इन 126 बच्चों में 51 बच्चे अतिकुपोषण के षिकार है।
- इन कुपोषित/अतिकुपोषित में ज्यादातर बच्चे दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और पिछड़ा वर्ग से हैं।
- झुग्गीयों में जीवन जीने के बुनियादी जरुरतें पानी, बिजली, षौचालय, स्वास्थ सुविधा, स्कूल,सम्मानजनक आवास, साफ सफाई आदि नही होती है।
- कुपोषित बच्चों के परिवारों की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर है।
अध्ययन के आधार पर हम निम्नलिखित मांगों की सिफारिश करते हैं -
- भोपाल के सभी स्लम क्षेत्रों में बच्चों के कुपोषण की स्थिति की जॉच की जाये तथा कुपोषित बच्चों के लिए स्थानीय स्तर पर तत्काल पोषण पुर्नवास के लिए व्यवस्था की जाये।
- ग्रामीण क्षेत्रों की तरह शहरी क्षेत्रों के लिए भी रोजगार गारंटी योजना शुरुवात की जाये।
- सभी स्लम क्षेत्रों में जीवन जीने के लिए अनिवार्य बुनियादी जरुरतें पानी, बिजली, षौचालय, स्वास्थ सुविधा, स्कूल,सम्मानजनक आवास, साफ सफाई उपलब्ध करायी जायें।
- शहर के दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक एवं आर्थिक रुप से कमजोर तबकों के परिवारों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जाये।
- आंगनबाड़ी केन्द्रों के उददेष्यों की पूर्ति के लिए एक अतिरिक्त कार्यकर्ता की नियुक्ति होनी चाहिए जिसकी मुख्य जिम्मेदारी बच्चों के पोषण और स्वास्थ की निगरानी करना हो।
- आंगनबाड़ी कार्यकताओं एवं सहायिकाओं के द्वारा उनके मानदेय में बढोत्तरी की जायज मांग को माना जाये तथा मानदेय समय पर दिया जाये।
- आंगनबाड़ी केन्द्रों में दिये जाने वाले पोषण आहार की गुणवत्ता बेहतर करने के लिए दी जाने वाली वर्तमान राशी में बढोत्तरी की जाये।
- शहरों में बच्चे ढाई/तीन साल के होते होते ही स्कूलों में जाने लगते है। जिसके कारण आंगनबाड़ी में नही आते हैं। आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों की उपस्थिति सुनिश्चत करने के लिए गुणवत्तापूर्ण प्री स्कूल शिक्षा दी जाये।
- शहर में कुपोषण, उससे होने वाली हेल्थ दिकक्तो का प्रचार प्रसार करे
नागरिक अधिकार मंच द्वारा जारी रिपोर्ट का अंश
अध्ययन टीम -
उपासना बेहार,मधुकर,जय भीम,रितेश,जावेद अनीस
विशेष सहयोग -
तारा,रुपा,नीलम,जितेन्द्र
संपर्क-
नागरिक अधिकार मंच
मकान नं. 900 दुर्गानगर पानी के टंकी के पास, दो नं. स्टॉफ भोपाल
मोबाईल नं. 09301363498/ 9424401459
E-mail-nambhopal@gmail.com
पूरे रिपोर्ट के लिए इस लिंक पर जायें -http://www.scribd.com/doc/52221539/Bhopal-Malnutration-Report
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