न्य मामलों में मध्यप्रदेश को भले ही बीमारु राज्य कहा जाये, परन्तु दलितों व आदिवासियों पर अत्याचार के मामले में इसका ऊॅचा मुकाम है। प्रदेश में सामाजिक उत्पीड़न की जड़ें आजादी के 60 वर्षों के बाद भी गहरी हैं। सरकारी आंकड़े बतातें हैं कि पूरे देश  में दलित उत्पीड़न के मामले में उत्तर प्रदेश के बाद मध्य प्रदेश दुसरे स्थान पर है तथा आदिवासियों के उत्पीड़न में इसकों प्रथम स्थान प्राप्त है। प्रदेश  में दलित अत्याचार के 71 फीसदी मामलें लबिंत हैं। केवल 29 फीसद मामलें में ही सजा दिलायी जा सकी हैं।  


प्रदेश में लगातार इतने बड़े पैमाने पर दलितों पर अत्याचार के मामलों के सामने आने के बावजूद मध्यप्रदेश के समाज और राजनीति में दलित उत्पीड़न कोई मुददा नही बन पा रहा है। प्रदेश के तमाम राजनैतिक दलों के एजेन्ड़े में दलितों की सामाजिक-आर्थिक बराबरी का सवाल सिरे से ही गायब है। देश-प्रदेश के नेता-अफसर व पूंजीपति आकंठ भ्रष्टाचार में डुबे हुए हैं। मध्य प्रदेश की सरकार और उसके मुखिया जनता की खुन-पसीने की कमाई से ’गौरव दिवस’ मना रहे हैं।

मध्य प्रदेश  में लगातार जारी इस दलित उत्पीड़न को रोकने व उनके सामाजिक सम्मान तथा आर्थिक बराबरी कायम करने की मांग को लेकर आज दिनॉक 11 जनवरी 2011 को नागरिक अधिकार मंच मध्य प्रदेश  एवं युवा संवाद के प्रतिनिधि मंड़ल द्वारा मध्यप्रदेश  के राज्यपाल को ज्ञापन सौपा गया। प्रतिनिधि मंड़ल में नागरिक अधिकार मंच के जयभीम सगोड़े, लखन सिंह भदौरिया तथा युवा संवाद के उपासना बेहार और जावेद अनीस शामिल थे। 

ज्ञात हो कि मध्य प्रदेश  में दलित उत्पीड़न के खिलाफ नागरिक अधिकार मंच एवं युवा संवाद द्वारा पिछले, 25 दिसंबर 2010 महाड़ सत्याग्रह के दिन भोपाल के बोर्ड ऑफिस चौराहे पर एक दिवसीय धरना दिया गया था। जिसके दौरान  एस.डी.एम एम.पी. नगर कों मुख्य मंत्री के नाम ज्ञापन भी सौपा गया था। 
युवा संवाद म.प्र. और नागरिक अधिकार मंच द्वारा नवम्बंर 2009 में गाड़रवाड़ा तहसील के चार गॉवों (नान्देर,मड़गुला,देवरी और टेकापार) में दलित समुदाय के साथ सवर्ण जातियों द्वारा जबरन मवेषी उठवाने और ना उठाने पर उनके सामाजिक और आर्थिक प्रतिबंध लगाने की घटनाओं पर फैक्ट फांईड़िग भी की गई थी। 

- राज्यपाल को दिए गये ज्ञापन में शामिल  मांगे -
  • मध्य प्रदेश मै अनुसूचित जाति-जनजाति को लोगों से जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए सरकार 1950 का रिकार्ड मांगती जिसकी वजह से काफी बड़ी संख्या में लोग जाति प्रमाण से वंचित हैं। जाति प्रमाण पत्र न बन पाने के कारण दलित समुदाय के युवाओं व छात्रों को सरकार द्वारा दिए जा रहे आरक्षण व अन्य सुविधाओं से वंचित होना पड़ रहा हैं। हम सरकार से यह मांग करते हैं कि करते हैं कि 1950 का रिकार्ड मांगने के नियम को तत्काल समाप्त कर जाति प्रमाण पत्र बनवाने की प्रक्रिया को सरल किया जाये तथा कोई भी व्यक्ति संबंधित अधिकारी के सामने शपथ पत्र देकर अपना जाति प्रमाण पत्र बनाने का प्रावधान किया जाए और शपथ पत्र गलत होने पर संबंधित व्यक्ति पर सजा का प्रावधान हो ताकि दलितों को मिले अधिकार का कोई अन्य व्यक्ति दुरूपयोग न कर सके। 
  • अनुसूचित जाति के लोगों को स्वयं रोजगार के लिए ब्याज रहित कर्ज उपलब्ध कराया जाए।
  • अनुसूचित जाति के लोगों पर अत्याचार के प्रकरणों का तत्काल निपटारा कर दोषीयों पर ठोस कार्यवाही की जाए।
  • अनुसूचित जाति-जन जाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 की सुचारू क्रियान्वयन के लिए शासन की ओर से जागरूकता अभियान चलाया जाए।
  • सरकारी संस्थनों में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रिक्त पदों पर तत्काल भर्ती की जाए।
  • मध्य प्रदेश के जिन क्षेत्रों में दलित उत्पीड़न की ज्याद घटनाऐं हो रही है उन क्षेत्रों को अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम 1989 के तहत ‘‘अत्याचार सघन’’क्षेत्र घोषित किया जाए।
  • अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम के तहत दर्ज होने वाले दलितों पर अत्याचार के केसों में सर्वण जाति के व्यक्ति की गवाही की अनिवार्यता समाप्त की जाए।
  • संभागीय स्तर पर दलित छात्रों के लिए शासन द्वारा चलाये जा रहे आवसीय विद्यालयों में तकनीकी एवं व्यवसायिक शिक्षा के लिए पर्याप्त बजट होने के बावजूद दलित छात्रों को तकनीकी एवं व्यवसायिक शिक्षा नहीं दी जा रही है, जिसकों को तत्काल प्रभाव से शुरू किया जाए
  • ग्रामीण क्षेत्र में भूमि सुधार लागू कर दलितों व अन्य भूमिहोनों में कृषि भूमि वितरित किया जाये। इसके लिए प्रदेश स्तर पर भूमि सुधार आयोग का तत्काल गठन किया जाए। 
  • मध्य प्रदेश में अनुसूचित जातियों के लिए सरकारी क्षेत्र की तर्ज पर निजी क्षेत्र में भी आरक्षरण के लिए कानून बनाया जाए। 
  • सभी निजी शैक्षणिक संस्थानों में दलित छात्रों के लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू की जाए तथा शिक्षा का खर्च सरकार द्वारा वहन किया जाए।



नागरिक अधिकार मंच मध्य प्रदेश  एवं युवा संवाद