सुभाष गाताडे

पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक अग्रणी नेता - जिनके संघ परिवार में सर्वोच्च पद तक पहुंचने के भी चर्चे थे - को इस 'सांस्कृतिक संगठन की तमाम जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया। संघ सुप्रीमो के बाद दूसरे नम्बर पर सिथत जनाब भैयाजी जोशी के हवाले से एक छोटीसी प्रेस विज्ञपित जारी हुर्इ कि उस शख्स ने अब गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने का निर्णय लिया है और वह अब एक सामान्य कार्यकर्ता के तौर पर काम करेंगे। फिलवक्त़ इस बात के बारे में दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि वह संघ में ऊपरी स्तर पर चल रहे सत्ता संघर्ष का शिकार हुए या इसके पीछे वाकर्इ कोर्इ अन्य कारण है ?
'इंडियन एक्स्प्रेस में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक (12 मार्च 2014) मार्च के प्रारमिभक सप्ताह में बंगलौर में हुर्इ संघ की प्रतिनिधि सभा की बैठक में के सी कन्नन (उम्र 52 वर्ष) को हर पदों से मुक्त करने का निर्णय लिया गया जब यह पता चला कि उन्होंने किसी महिला के साथ सम्बन्ध रखा था और संगठन से उसे छिपाया था। संघ की परम्परा के मुताबिक प्रचारक अर्थात उसके पूर्णकालिक कार्यकर्ता आम तौर पर ब्रहमचारी  होते है, भले ही कुछ मामलों में इस 'नियम का उल्लंघन भी होता हो। इस मामले को लेकर अपनी झेंप मिटाने के लिए संघ के एक अन्य नेता के हवाले से यह भी बताया गया कि दरअसल स्वास्थ्य कारणों से इस व्यकित ने घर लौटने का निर्णय लिया है।
जानकार बता सकते हैं कि यह पहली दफा नहीं है जब प्रचारकों के प्रेमसम्बन्धों को लेकर संघ नेतृत्व ने आंखें दरेरी हों और अनुशासन के डण्डे के बलबूते ऐसे संबंधों  को लेकर अपना फतवा सुना दिया हो और उसे अमल में भी लाया हो।
एक दशक से अधिक समय पहले संघ के एक अन्य वरिष्ठ प्रचारक, जिन्हें भाजपा में काम करने के लिए भेजा गया था और जिनके पार्टी अध्यक्ष बनने के भी आसार बताए जा रहे थे, भी अपने पितृसंगठन के ऐसे ही कहर का शिकार हुए थे। इन प्रचारक के बारे में पहले एक छोटी ख़बर किसी अख़बार में लीक हुर्इ कि किस तरह पार्टी की एक वरिष्ठ नेत्राी - जो बाद में एक सूबे की मुख्यमंत्राी भी बनी -का स्वास्थ्य अचानक ख़राब होने पर उन्होंने उसे अस्पताल पहुंचाया। बाद में यह ख़बर चलने लगी कि इन दोनों के रिश्ते अधिक आत्मीय हो चले हैं। फिर किसी दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हवाले से यह समाचार भी प्रकाशित हुआ कि उसके नेतृत्व ने इस वरिष्ठ प्रचारक और उस नेत्राी के बीच विकसित हो रहे इस सम्बन्ध को समाप्त करने का निर्देश दिया। और अनुशासित सिपाही की तरह इस प्रचारक महोदय ने आधिकारिक  तौर पर उस पर अमल भी किया। बाद में किसी साक्षात्कार में उन्होंने इस समूचे घटनाक्रम को लेकर इशारों-इशारों में अपना पक्ष भी रखा और अपने इन आत्मीय सम्बन्ध्यों की ताइद भी की । जिस सीमित काल के लिए वह नेत्री मुख्यमंत्री रहीं, उन दिनों वह उसके अनआफिशियिल सलाहकार के तौर पर भी रहे।एक क्षेपक के तौर पर यह भी बता दें कि बाद में बीबीसी के किसी पत्राकार के साथ बातचीत के दौरान उन्होंने पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के बारे में किए गए गैरजिम्मेदार किस्म के वक्तव्य के चलते उन्हें अपने पद से भी रूखसत होना पड़ा। इन दिनों संघ परिवार से सम्बद्ध एक विचारक के तौर पर यह सक्रिय रहते हैं।
संगठन में जिम्मेदारी के पद पर किसे रखना है और किसे नहीं रखना है, यह तो संगठन के नियमों से तय होता है, लिहाजा हम उस पर टिप्पणी नहीं करना चाहेंगे ; मगर इन दोनों प्रसंगों के माध्यम से प्रेम नामक सहज मानवीय भावना को लेकर 'परिवार के अन्दर जो चिन्तन विधमान है, उस पर अवश्य बात की जानी चाहिए।
औपचारिक तौर पर प्रेम से इन्कार या प्रचारकों के ब्रहमचर्य  पर जोर कितनी विचित्र किस्से-कहानियों को जन्म देता है, किस किस्म के दोहरे व्यवहार को जन्म देता है, इसकी तार्इद वे सभी कर सकते हैं, जो संघ एवं आनुषंगिक संगठनों की सक्रियताओं पर निगाह रखते हैं । उदाहरण के तौर पर नब्बे के दशक के अन्त में भाजपा के एक वरिष्ठ नेता थे कोर्इ शर्मा - जो अन्य कइयों की तरह संघ परिवार की तरफ से भाजपा में भेजे गए थे - और प्रचारक होने के नाते आधिकारिक  तौर पर गैरशादीशुदा थे। उनके गुजर जाने के बाद वह जिस महिला के साथ सहजीवन में थे, उसका खुलासा हुआ। यह अलग बात है कि इस मामले को रफादफा कर दिया गया।
इक्कीसवीं सदी की पहली दहार्इ में सूर्खियों में रहा 'संजय जोशी प्रसंग अधिकतर लोगों को याद होगा। याद रहे कि इन्हें भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भाजपा में भेजा गया था। और बम्बर्इ में पार्टी के अधिवेशन के पहले एक सीडी वहां बांटी गयी, जिसमें उनके जैसे दिखनेवाले व्यकित के किसी महिला के साथ अन्तरंग सम्बन्धों की तस्वीरें थीं। आननफानन में उन्हें वहां से चलता किया गया। बाद में पता चला कि उन्हें इस तरह 'निपटाने के पीछे पड़ोसी राज्य के एक मुख्यमंत्री एवं उनकी करीबी महिला मंत्री का हाथ था। इतना ही नहीं उन दिनों यह ख़बर भी थी कि एक अन्य नेता को लेकर एक अन्य सीडी चल रही है, जिसका भण्डाफोड़ होगा।
पितृसंगठन से अंकुश और दूसरी तरफ लोगों की अपनी आकांक्षाएं इससे जो विरोधाभास पैदा होते हैं, उसका प्रतिबिम्बन कर्इ स्थानों पर प्रस्फुटित होता है। यहा आडवाणी-वाजपेयी से भी संघ परिवार में वरिष्ठ बलराज मधोक, जिन्हें इन दोनों के पहले भारतीय जनसंघ का अध्यक्ष बनाया गया था और बाद में संघ नेतृत्व से मतभेदों के चलते हाशिये पर डाल दिया गया, उनकी आत्मकथा 'जिन्दगी का सफर का यह उदाहरण समीचीन है। इस आत्मकथा का प्रकाशन तीन खण्डों में हुआ है जो तत्कालीन वरिष्ठ नेताओं की निजी जिन्दगी की अपारदर्शिता एवं विचलन एवं संघ सुप्रीमो गोलवलकर के ऐसे मसलों के प्रति रूख पर अच्छी रौशनी डालता है।

इस आत्मकथा के खण्ड तीन में जिसका शीर्षक है 'दीनदयाल उपाध्याय की हत्या से इंदिरा गांधी की हत्या तक (दिनमान प्रकाशन, 2003, पेज 22) पर वह बताते हैं कि किस तरह जनसंघ के अध्यक्ष होने के दौरान जनसंघ के केन्द्रीय कार्यालय के प्रभारी जगदीश प्रसाद माथुर उनसे मिलने आए जो उन दिनों किसी वरिष्ठ नेता के साथ 30 राजेन्द्र प्रसाद रोड पर सिथत पार्टी के आवास पर रहते थे और उन्होंने मधोक को बताया कि किस तरह उपरोक्त वरिष्ठ नेता ने इस आवास को अनैतिक गतिविधियों का अडडा बना लिया है, जहां रोज रोज 'नयी लड़कियां लायी जाती हैं। गोलवलकर की इस मसले पर प्रतिक्रिया भी विलक्षण थी, जिन्होंने (पेज 62) बताया कि वह इन नेताओं के चरित्रा की कमजोरियों से परिचित हैं, मगर चूंकि वह संगठन को चलाना चाहते हैं, इसलिए शिव की तरह उन्हें हरदिन हलाहल पीना पड़ता है।

प्रेम को लेकर संघ का एकांगीपन वैलेन्टाइन डे जैसे आयोजनों को लेकर अधिक फूहड एवं बर्बर ढंग से अभिव्यक्त होता है। पशिचमी देशों में मनाया जानेवाले इस वैलेन्टाइन डे के व्यावसायीकरण आदि को लेकर लोगों के अपने विचार हो सकते हैं, जिनमें कुछ ठीक बातें भी तलाशी जा सकती हैं, मगर इस दिवस के अवसर पर एक दूसरे के प्रति अपने प्रेम का इजहार करनेवाले युगलों पर हमले करना, उनकी 'शादी करा देना आदि हरकते ऐसे ही कुंठित मसितष्क लोग कर सकते हैं, जो खाकी निक्कर में ड्रील करते हुए और शाखाओं में सुनायी देने वाले बौद्धिकों की जुगाली करते  करते प्रेम जैसी उदात्त भावना के मायने समझने के काबिल नहीं रह पाते हैं।