-निज़ार क़ब्बानी (सीरिया अरब)

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मैं कोई शिक्षक नहीं हूँ
जो तुम्हें सिखा सकूँ
कि कैसे किया जाता है प्रेम !
मछलियों को नहीं होती शिक्षक की दरकार
जो उन्हें सिखलाता हो तैरने की तरक़ीब
और पक्षियों को भी नहीं
जिससे कि वे सीख सकें उड़ान के गुर ।
तैरो-- ख़ुद अपनी तरह से
उड़ो-- ख़ुद अपनी तरह से
प्रेम की पाठ्य-पुस्तकें नहीं होतीं
और इतिहास में दर्ज़
सारे महान प्रेमी हुआ करते थे--
निरक्षर
अनपढ़
अँगूठा-छाप ।

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अँग्रेज़ी से अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह

बहादुर पटेल जी के फेसबुक वाल से साभार