नागरिक अधिकार
मंच दो दिवसीय कार्यकर्ता विचारशाला
दिनांक 30 एवं 31 अगस्त 2013
स्थान:-
सामुदायिक भवन पोली पाथर जबलपुर
इस विचारशाला में
मंच विभिन्न इकाइयों के लगभग 25 कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की .कार्यक्रम की औपचारिक शुरूआत करते हुये साथी अजय यादव ने पहले
दिन की अध्यक्षता के लिये साथी प्रदीप सिंह का नाम प्रस्तावित किया जिसे सभी
साथियों समर्थन दिया।
कार्यक्रम के
प्रारंभ में साथियों से चर्चा करते हुये साथी सत्यम पाण्डेय ने कहा कि हमारे सभी
साथियों को वर्तमान राजनीति को समझना चाहिये । वर्तमान राजनीति पर चर्चा व तर्क
वितर्क करना चाहिये और वर्तमान राजनीति को समझने के लिये हमें पूर्व की राजनीति को
समझना आवष्यक है। आजादी की लड़ाई में गांधी जी समेत अनेक लोग चाहते कि अंग्रेज
जल्दी देश छोड दे। देश को आजादी मिले उसके
बाद देश को कैसे चलाना वह हम बाद में तय
करेगे। कुछ लोग जैसे भगतसिंह कहते थे कि मामला सिर्फ आजादी का नही है, आजादी तो किसकी
आजादी। अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति के साथ साथ हमें आर्थिक और सामाजिक आजादी भी
मिलनी चाहिये। हमें यह समझना होगा कि आजादी हमें किन किन कारणों से प्राप्त हुई।
वर्तमान आजादी में सिर्फ शोषक के चेहरे बदल गये, अंग्रेज तो गये लेकिन उन्होने अपनी जगह भारत के लोगों
को यहां काबिज कर गये और पूँजीपतियों को भारत की सत्ता देकर अंग्रेज भारत को आजाद
कर के चले गये, और आज हमारे देश के पूँजीपति जनता लूट रहे हैं।
आगे आपने 60 साल के राजनीतिक
इतिहास पर प्रकाश डालते हुये बताया कि कांग्रेस की आर्थिक नीतियों को भाजपा ने आगे
बढ़या और देश के सारे संसाधनों पर पैसे
वालों का कब्जा है। आम आदमी जो इस देष को चलाने में बड़ा योगदान करता है, आज भी हासिये पर
है। गरीबी और अमीरी के बीच खाई बढ़ती ही जा रही है। मंहगाई एवं भ्रष्ट्राचार अपने
चरम पर है पर ऐसा नही लगता कि अगले चुनाव का एजेण्डा भ्रष्ट्राचार होगा।
साथी प्रदीप सिंह
ने बताया कि आजादी से पहले इस देश में सामंतवादी राजशाही सत्ता थी
परिचर्चा में उपस्थित साथी ये बताये कि वर्तमान लोकतंत्र और सामंतवाद दोनों में से
कौन सी व्यवस्था बेहतर थी,
सभी साथियों ने
एक स्वर मे कहा कि लोकतंत्र बेहतर है, तब आपने कहा कि ये तो अच्छी बात है कि लोकतंत्र एक बेहतर
विकल्प है पर साथी ये बताये कि लोकतंत्र में आम आदमी जिस भागीदारी को लेकर चुनाव
में भाग लेता है क्या वही आम आदमी चुनाव लड़ सकता ? क्या जीतकर जन प्रतिनिधी बन सकता है ? कई तरह के सवाल
है पर हल यह है कि यहां सामाजिक और आर्थिक परिस्थिति ऐसी है कि कोई भी चुनाव लडकर
चुने जाने की स्थिति में नही है। राजनीतिक व्यवस्था को पैसे से संचालित किया जा
रहा है, राजनीतिक दल में
पैसें वालों का दबदबा है। ये एक आम धारणा है पर क्या जनता की कोई भूमिका नही है।
जनता की भूमिका तो है पर जनता को लगातार ऐसी स्थिति में रखा गया है। दूसरा सवाल है
कि इस व्यवस्था में क्या कमी है कि हम इसे बदलना चाहते है। लोगों में चेतना है शासन
करने वाले दलों में जनता ने बहुतो को हराया है जिताया है। विभिन्न राजनीतिक दलों
का आना जाना लगा रहता है राजतंत्र मे यही बात है कि राजा का बेटा राजा होगा।
आम आदमी राजा नही हो सकता । तमाम विरोधाभास के बाद के साथ इस
व्यवस्था ने लोगों के अन्दर यह बात अन्दर तक निराशा पैदा करने का काम किया है। आम आदमी शासन नही कर
सकता पर इस देश संविधान ने लोकतंत्र मे वह स्थान दिया है। दलितों और गरीबों ने
सत्ता में दखल किया है। अपने हिस्सेदारी
को बढ़या है और जागरूक होकर अपने अधिकारों को पाने की लड़ाई लड़ी है। इस चर्चा को
आगे बढ़ाते हुये आपने व्यवस्था परिर्वतन की बात की। चर्चा में आपने इस राजनीति में
84 कोशी यात्रा का भी जिक्र किया गया। राजनीति में धर्म
का दुरूपयोग की बात की। आपने बताया कि राजनीति में शुरु से ही महिलाओं को दोयम
दर्जे का नागरिक बनाकर रखा। महिलाओं को सषक्त करने के लिये और संघर्ष चलाने की
आवष्यकता बल दिया।
साथी जावेद अनीस ने
शिक्षा अधिकार अधिनियम पर चर्चा करते हुये
बताया कि शिक्षा अधिकार कानून राज्य और केन्द्र
दोनों के मिल जुले संसाधनों पर चल रही है। इसके तहत 6 से 14 साल के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का कानूनी हक मिला है ,लकिन इसकी कमी यह है की यह 0 से 6 साल के बच्चों व 14 से 18 साल के बच्चों के लिये कुछ नही कहती है , कानून की यह सबसे
बड़ी बड़ी कमी है।शिक्षा अधिकार कानून
के मुख्य प्रावधानों की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया की प्राथमिक शाला
में बच्चों और शिक्षकों का अनुपात 30: 1 है, जबकि माध्यमिक शालाओं में
यह अनुपात 35: 1 है .
लेकिन शिक्षा अधिकार कानून
लागू के 3 साल पूरे हो जाने के बाद भी मध्यप्रदेश में शिक्षा के अधिकार कानून के कियान्वयन की स्थिति
बहुत अच्छी नही है। प्रदेश में शालाएं शिक्षकों की कमी से जूझ
रही हैं। शिक्षा अधिकार कानून के मुताबिक प्रदेश में जितने शिक्षक
होने चाहिए, उनमें से 33.73 प्रतिषत शिक्षकों की कमी है।
निजी स्कूलों में
गरीबों के लिए 25 प्रतिशत आाक्षित
सीटों को लेकर उन्होंने कहा कि इसको लेकर संगठन की अवधारणा व सोच स्पष्ट होनी चाहिये
की हमारा संगठन शिक्षा अधिकार कानून के 25 प्रतिशत मे पक्ष में है या हम इसे नामंजूर करते है ?
राजीव आवास योजना
के बारे में संबंध चर्चा करते हुये कहा कि यह योजना सबके लिए आवास उपलब्ध कराने के
नाम पर यह योजना लाई गयी है उन्होंने योजना के उद्देष्य को समझाया। राजीव आवास योजना के
बारीकियों को लेकर विस्तार से बात रखी।
इसके बाद विचारशाला
के प्रथम दिन का कार्यक्रम समाप्त हुआ
दूसरे दिन का
प्रथम सत्रः- अध्यक्षता साथी अजय यादव
विचारशाला के
दुसरे दिन सबसे पहले साथियों को संबोधित करते हुये साथी सत्यम पाण्डेय ने खाद्य
सुरक्षा पर चर्चा करते हुये बताया कि हम सभी साथियों को एक बार इस कानून को पढ़ने
की और अच्छी तरह समझने की जरूरत हैं। पहला सबसे बड़ा कदम यह है कि यह कानून पूरे
देश में लागू होगा। धारा 3(1)
प्राथमिकता वाले
परिवार से संबंध रखने वाले व्यक्ति को 5 कि.ग्रा./व्यक्ति उपलब्ध होगा। अंत्योदय परिवार के लिये 35 कि.ग्रा. अनाज
प्रति व्यक्ति उपलब्ध होगा। अंत्योदय
परिवार के लिये 35 कि.गा्र./
व्यक्ति उपलब्ध होगा। वैज्ञानिक आधार पर एक व्यक्ति को जीवन निर्वाह हेतु 14.5 कि.ग्रा. अनाज
और 4 कि.ग्रा. दालों
की आवष्यकता होती हैं। तब सरकार द्वारा 5 कि.गा्र./ व्यक्ति अनाज देना सवाल के घेरे में है। सरकार
द्वारा परिवार की परिभाषा को भी उलझाने की कोशिश की गई है।
सत्र के अगले चरण
में साथियों को संबोधित करते हुये साथी प्रदीप ने कहा कि संगठन को जिंदा रखने के
लिये एक विचारधारा का होना आवष्यक है। आखिर नागरिक अधिकार मंच का मकसद क्या हैं ? हम कहाँ पहुचना
चाहते हैं ? मंच का लक्ष्य है
कि शोषण, गैरबराबरी, मेहनतकशों के
श्रम की गरिमा और सम्मान हो , ऐसी समाजवादी व्यवस्था को प्राप्त करने का प्रयास करेगा।
इसके लिये समय समय पर उठने वाले मुद्दे को लेकर संघर्ष किया जायेगा। संगठन तत्काल
हस्तक्षेप करेगा। संगठन प्रमुख रूप से सरकार के साथ लोगों के अधिकारों पर कार्य
करता है। हमें असंगठित क्षेत्र में लगे हुये लोगों की श्रममूल्य , सामाजिक सुराक्षा
, उनके स्वास्थ्य, शिक्षा की बेहतरी
का प्रयास करेगा। उन्होंने आगे कहा की संगठन में विचारधारा के साथ अनुशासन भी होना
चाहिये। संगठन व्यक्तिवादी न होकर सामूहिक जिम्मेदारी पर चलना चाहिये। इसके लिये
लगातार जिम्मेदारी का बटवारा और जबाबदेही तय होनी चाहिये। जब तक समाज में षोषण और
गैरबराबरी है, हमारी लडाई रूकनी नही चाहियें। हर लडाई में आम सहमति भी जरूरी है।
आपसी मतभेदों के साथ कोई बड़ी लड़ाई जीती नही जा सकती , जीती क्या अच्छी
तरह लड़ी नही जा सकती। हमारे संगठन के साथियों को बौद्धिक रूप से भी तैयार रहना
चाहियें। हमें देश और दुनिया के घटनाक्रम पर तीखी नजर रखने की
जरूरत है।
इसी साथ दूसरे दिन का कार्यक्रम समाप्त हुआ
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