- राजेन्द्र राजन.

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कम हो रही हैं चिड़ियां
गुम हो रही हैं गिलहरियां
अब दिखती नहीं हैं तितलियां
लुप्त हो रही हैं जाने कितनी
जीवन की प्रजातियां
कम हो रहा है
धरती के घड़े में जल
पौधों में रस
अन्न में स्वाद
कम हो रही है फलों में मिठास
फूलों में खुशबू
शरीर में सेहत
कम हो रहा है
जमीन में उपजाऊपन
हवा में आक्सीजन
सब कुछ कम हो रहा है
जो जरूरी है जीने के लिए
मगर चुप रहो
विकास हो रहा है इसलिए ।

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