अनिता भारती

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ओ सिर पर मंडराते गिद्धों सुनो।
अब आ गई तुम्हारे हमारे फैसले की घड़ी
छेड़ी है तुमने जंग
तुमने ही की है
इसकी शुरुवात

सुनो गिद्धों ।
तुम्हारी खासियत है
कि तुम खुलकर कभी नही लड़ते
दूर से छिपकर करते हो वार
आंख गड़ाए रखते हो हर वक्त
हमारे खुली आंखों से
देखे जा रहे सपनों पर

सुनो गिद्धों ।
तुम्हें बैर हर उस चीज से जो
खुबसूरत है जो सुकून देती है
उस नन्ही चिरैया से भी
जो खुशी से हवा में विचर रही है
खेल रही हंस गा रही है ।
नही पंसद आता तुम्हें उसका
उल्लास में भर कर चहकना
तुम अपने कंटीले अंहकार में झूमकर
अपने बारुदी नुकीली पंजों से
छीन लेना चाहते हो
उस नन्ही चिरैया का वजूद
पर क्या सचमुच छीन पाओगे तुम।

सुनो गिद्धों ।
जब आंधी तूफान नही उड़ा पाती उसका वजूद
तब तुम्हारा क्या वजूद
उस नन्ही चिडि़या के सामने
ओ तुम्हारे सामने फूदक रही
और नए आने वाली सुबह का
आगाज कर रही है।

सुनो, गिद्धों सुनो ।
तुम लाख फैलाओं अपने पंजे
नही जकड़ पाओगे उस
नन्ही चिड़िया को
इसके इरादे, हिम्मत और जज्बे को

सुनो, तुम बहुत डरपोक हो
नही देते तुम तर्क का जवाब तर्क से
नही सुनते तुम हक की बात हक से
तुम्हारे लिए
हक बराबरी
सबका मतलब
सिर्फ तुम्हारा रहम है
ताकि तुम्हारे खौफ का सत्ता कायम रहे
ताकि भ्रम की एक सत्ता कायम रहे
शिक्षा पहचान स्वतंत्रता
तुम्हारे लिए अपनी मौत
या मौत के फरमान से कहीं ज्यादा
खतरनाक वे सुबह हैं
जिनसे उन अंधेरों का वजूद मिट जाए
जिनकी वजह से तुम्हारे खौफ की सत्ता कायम है

सुनो, स्वात घाटी पर मड़राते गिद्धों
तुम्हारे सच के अलावा
कुछ ओर भी सच है
जिसे तुम सुनना नही चाहते
जिसे किसी जिंदगी के गीत की तरह
सारे जहां के बच्चे गा रहे हैं

सुन रही हो बिटिया मलाला ।
सारा आवाम रोते हुए कह रहा है
‘‘ओ, प्यारी मलाला
हम बड़े रजं में हैं
सुनो, बिटिया मलाला ।
तुत्हारी जैसी हजारों बच्चियाँ
तुम्हारे लिए निकाल रही है कैड़ल मार्च
और सुनो, बिटिया मलाला,
मौलवी भी कर रहे हैं
तुम्हारे लिए दुआ की बरसात
देश की सीमाओं से परे उठ रहे हैं हाथ
तुम्हारी सलामती के लिए

सुन रही हो बिटिया मलाला ?
अभी अभी हमसे दूर गई है
”आरफा करीम रंधावा[1]
नही खो सकते हम तुम्हें

सुनो, मलाला बिटिया ।
इन जंगली गिद्धों ने जबरन
बंद कराये थे जो चार सौ स्कूल
उनकी नई चाबी खोजनी है तुम्हें
क्योंकि ये फकत स्कूल नही
ये रोशनी की वे मीनारें हैं,
जिस पर चढ़ना है तुत्हारी नन्ही सहेलियों को
जहाँ से नीचे झांकने पर दुनिंया के
तमाम बदनुमा धब्बे
और ज्यादा साफ दिखाई देने लगते हैं
और उनसे लड़ना ज्यादा आसान हो जाता है

सुनो, मलाला बिटिया ।
तुम भारत की नन्ही सावित्री बाई फूले हो
वह भी 14 साल की उम्र में निकल पड़ी थी
दबी कुचली औरतों के लिए
उन स्कूलों के ताले खोलने
जिन्हें जड़ रखा था
धर्म जाति की सत्ता में
चूर सिरफिरों ने

सुनो मलाला... सुनो, सावित्री
कितने नीचे गिर गये हैं
वो लोग
जो स्कूल जाती लड़कियों के
सिरों पर गोली मार कर
उन्हें हमेशा के लिए
फना करना चाहते हैं
कितने क्रूर हैं वो लोग
जो आगे बढ़ती -स्त्री
को गोबर पत्थर लाठी डंडे
कोड़ों से मार रहे हैं

पर सुनों गिद्धों ।
तुम्हारे कहर के बावजूद चिडि़या जरुर उड़ेगी
और हर बार उसकी उड़ान
पहली उड़ान से ऊॅंची होगी......।

ओ मलाला, क्या तुम जानती थी..
हमको इल्म महज इल्म
की तरह सीखना होता है
बस एक छोटे दायरे को छूना होता है
कैसे हंसे कैसे संवरे
कैसे परिवार की बेल को बढ़ाएं
कैसे आने वाले मौसम को खुशगवार बनाए
पर मलाला, तुम सच में बहुत समझदार निकली...
तुम तो सच में ही
इल्म को इल्म की तरह पढ़ने लगी
और उस पर कुफ्र ये किया कि
दूसरी अपने जैसियों को इल्म बांटने चली

ओ शाबाश, बच्ची मलाला...
तुमने अच्छा किया
देखो अब जो चली हो
चलती जाना
बिलकुल नही रुकना
पीछे देखो
कितनी चिंगांरिया
भंभककर जल उठने को तैयार हैं.....







साभार - वंचित जनता, नवम्बर 2012