उपासना बेहार

मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले की गाडरवारा तहसील से लगभग 20 कि.मी. की दूरी पर बसे मारेगाँव में अहिरवार समुदाय( दलित ) के लोगों के साथ सवर्ण जाति के समुदाय द्वारा लगभग 2 माह से सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक बहिष्कार किया जा रहा है। अहिरवार समुदाय के बहिष्कार का मुख्य कारण उनके द्वारा सदियों से चली आ रही मृत मवेशी को उठाने जैसे धृणित काम से इनकार करना था। अहिरवार समाज के इस निर्णय को सदियों से जाति के आधार पर दलितों को इंसान ना मानने वाले सवर्ण समाज ने बगावत के रुप में लिया। म.प्र. के गाडरवारा तहसील के गाँव में अहिरवार समाज पर पिछले 2/3 सालों से समय समय पर लगायी जा रही सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक पावंदियाँ इसी मानसिकता का परिणाम है। 2009 में भी इस क्षेत्र के चार गाँव नान्देर, मड़गुला, देवरी और टेकापार में इसी तरह का घटनाक्रम हो चूका है।
भारत के संविधान में हर नागरिक को समानता, न्याय की बात की हे लेकिन आजादी के 65 साल बाद भी इस देश में दलितों को समानता, सम्मान, न्याय नहीं मिल पा रहा है। दलितों को सदियों से कुचला जा रहा हे और जब कभी भी उन्होंने आवाज उठाने की कोशिश की है तो उसे दबा दिया गया है। आज भी दलितों पर उची जातियों द्वारा शोषण, दमन, अत्याचार जारी है, आज का तथाकथित विकशित और सभ्य समाज इस वास्तविकता से मुह चुराता नजर आता है। वो मानता ही नही है की आजादी के इतने सालों बाद भी एक वर्ग के साथ छुआछूत और भेदभाव होता है। समाज में व्याप्त इस छुआ छूत और भेदभाव को नागरिक अधिकार मंच, युवा संवाद और राष्ट्रीय सेक्यूलर मंच ने फिर सामने लेन की कोशिश की है।
देश-प्रदेश में जातीय भेदभाव के खिलाफ कई कानून और संवैधानिक प्रावधान हैं। लेकिन उसके बावजूद सच्चाई से रूबरू होने के लिए ना तो सरकार और ना ही समाज तैयार है। 2009 में जिन चार गाँव की इसी तरह की समस्याओं को नागरिक अधिकार मंच ने उठाया था तब इनके काफी गंभीर प्रयासों के बाद ही नान्देर, मड़गुला, देवरी और टेकापार गाँव के अहिरवार समुदाय के लोगों को सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक पावंदियों से कुछ राहत मिली थी। लेकिन इसके बाद भी स्थितियां पूरी तरह से नही बदली। एक बार फिर से उसी तहसील के कुछ गाँव में वही कहानी दुहरायी जा रही हैं। ऐसे में बड़ी चुनौती ये है कि सवर्णों के दिमाग और व्यवहार में सदियों से चले आ रहे जातीय आधारित भेदभाव, उत्पीड़न और शोषण का खात्मा कैसे हो जो नित्य नये नये रुपों में हमारे सामने आ रही हैं।
नरसिंहपुर की प्रमुख तहसील गाडरवारा की आबादी 70 से 80 हजार है जिसमें अहिरवार समाज के लगभग 38 से 40  हजार लोग है। संविधान के अनुसार यह जाति अनुसूचित जाति में शामिल है। गाडरवारा के आस-पास के लगभग सभी गांव में अहिरवार समुदाय के लोग निवास करते हैं। उनकी यहां के सामाजिक-आर्थिक क्रियाकलापों में उपयोगी भूमिका है। इस तरह के मामले की शुरुआत 2009 में तब हुई जब अहिरवार समुदाय की महापरिषद द्वारा मध्य प्रदेश स्तर पर मृत मवेषी नहीं नहीं उठाने का निर्णय लिया। मारेगाँव में अहिरवार समुदाय का टोला गाँव  अलग है। पूरे अहिरवार समाज में से 80 प्रतिशत परिवार अति गरीब है।
मारेगाँव के अहिरवार समाज ने 3/4 माह पहले गाँव से मृत पशुओं को ना उठाने का निर्णय लिया था। इसी के बाद से ऊँची जाति ( लोधी समुदाय ) द्वारा इस समाज का सामाजिक/सांस्कृतिक और आर्थिक बहिष्कार किया जाने लगा जो अभी तक बदस्तूर जारी है। अहिरवार समाज द्वारा उनके साथ हो रहे उत्पीड़न को लेकर प्रशासन को लगातार शिकायतों व दोषियों के खिलाफ कार्यवाही की मांग किए जाने के बावजूद प्रशासन का रवैया बहुत सकारात्मक नही रहा है।
सीताराम अहिरवार ने प्रतिनिधि मंडल को बताया कि इस साल होली के कुछ दिन पहले लोधी समाज के लोगों ने उनके समाज के लोगों को गाँव से मरे पशु को उठाने को कहा तो उन लोगों ने यह काम करने से मना कर दिया। परिणाम स्वरुप लोधी समुदाय के लोगों ने पंचायत बुलाया जहाँ अहिरवार समुदाय के लोगों को भी बुलाया गया था। पंचायत में अहिरवार समुदाय के लोगों के साथ ऊँची जाति के लोगों ने गाली गलौज किया और अपमानित कर भगा दिया तथा दूसरे दिन पूरे गाँव में ड़िडोरा पीटवा कर यह ऐलान कर दिया गया कि अहिरवार समाज से कोई भी किसी तरह का सबंध नही रखेगा।
गाँव के लोगों ने बताया कि लोधी समाज ने उनके गाँव के अंदर आने पर रोक लगा दिया है तथा अन्य गाँव में जाने वाले रास्तों को भी बंद कर दिया गया है। जिसके कारण इन्हें अन्य गाँव में जाने के लिए बहुत लम्बी दूरी तय करके जाना पड़ता है। साथ ही गाँव में स्थिति सभी दुकानदारों को अहिरवार लोगों को राशन, किराना का सामान देने से मना कर दिया है। उन्होनें आटा चक्की वालों से भी कहा है कि वे अहिरवार समाज के किसी भी परिवार का अनाज नही पीसेगें। दूध बेचने वाले को भी डराया/धमकाया गया है जिसके कारण वह अहिरवार समुदाय को दूध नही बेच रहे हैं। दूध लेने के लिए अहिरवार समाज के लोगों को 3 कि.मी. दूर स्थित सालेचैकी जाना पड़ता है। यहाँ महत्वपूर्ण बात ये है कि ऐसे में अगर उनके समुदाय का कोई बच्चा बीमार होता है और डाक्टर उसे दूध के साथ दवा खाने को कहते हैं तो दूध ना मिलने के कारण बच्चे को पानी के साथ ही दवा खिलाना पड़ता हैं। इस समाज के लोगों को गाँव के हैण्डपम्प और कुओं से इस भीषण गर्मी में पानी तक नहीं लेने दिया जा रहा। स्थिति ये है कि गाँव के तालाब पर तारों कि बाढ़ लगा दी गई है ताकि अहिरवार समाज का व्यक्ति नित्यकर्म के लिए भी तालाब के पानी का उपयोग ना कर सके। अहिरवार समुदाय के लोगों के गाँव में मजदूरी करने पर रोक लगा दी गई है।
इस घटनाक्रम का एक महत्वपूर्ण पहलू जो काफी खतरनाक है वो ये कि गाँव के अहिरवार समाज के बच्चों के साथ स्कूल में दूसरे कामों के साथ साथ मध्यान भोजन में भी भेदभाव हो रहा है जो बच्चों के नाजुक मन के लिए काफी गंभीर है। हालत ये हैं कि गाँव के मंदिर कि सीढ़ी पर अहिरवार समाज का बच्चा भी नहीं चढ़ सकता। अगर कोई अहिरवार समाज की मदद करना चाहता है, उसे भी लोग डराते/धमकाते हैं। लोधी समाज ने गाँव के सभी दुकानदार, नाई, दूध वाला इत्यादी को यह धमकी दी है कि कोई भी दुकानदार ने अहिरवार समुदाय को सामान या मदद की तो उस पर 21,000 रु का जुर्माना लगेगा।
मारेगाँव के अहिरवार समाज के लोगों का प्रशासन पर भी भेदभाव करने का आरोप है वे बताते हैं कि प्रशासन में बैठै अधिकारी भी पूर्वागृहों से ग्रस्ति है। मनरेगा के अंतर्गत अहिरवार समाज के सभी परिवारों के जाब कार्ड को बने 3/4 साल हो गये हैं लेकिन एक/दो लोगों को छोड़ कर और किसी को इसके अन्तर्गत आज तक मजदूरी नही मिली है। इस गाँव की चरनोई और शासकीय लगभग 80 एकड़ भूमि पर लोधी समाज के लोगों ने कब्जा कर लिया है।
इस पूरे घटनाक्रम से रूबरू होने के बाद यही कहा जा सकता है कि विकास की इस अंधी घुड़दौड़ में हमारा समाज आज भी वहीँ खड़ा दिखता है जिसके विकास और सम्मान की हमारे नेता बातें करते नहीं थकते। बड़े शहरों की चकाचौंध में गरीब दलित की सुनने वाला कोई नहीं है। सभी रंग के राजनितिक झंडे इनके बीच चुनाव में वोट के लिए आते है, फिर कहाँ गायब हो जाते हैं-ये मारेगाँव के दलित आज तक नहीं जान पाए।