वीरेन्द्र जैन
प्रिय मोदीजी
मुख्यमंत्री गुजरात राज्य
महोदय,
आपका पत्र मिला।
आपके ऊपर लगे आरोपों की सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को यह कहते हुए वापिस कर दिया है कि इसकी सुनवाई वहीं स्थानीय कोर्ट में ही होगी। इस फैसले से आप फूले नहीं समा रहे हैं, यहाँ तक कि आपने अन्ना हजारे की नकल में तीन दिन का उपवास करने की घोषणा भी कर दी है ताकि चर्चा में आपकी ही बात रहे। इसी प्रचार के लिए आपने प्रदेश की जनता के नाम एक पत्र लिख कर उसे देश भर के अखबारों को उपलब्ध करवा दिया है क्योंकि आपके कारनामों की ख्याति न केवल पूरे देश में है अपितु अमेरिका और इंगलेंड तक आपके दर्शन नहीं करना चाहते इसलिए आपको वीजा देने से इंकार कर देते हैं। चूंकि आपने जनता के नाम पत्र लिखा है सो जनता भी आपको उसका उत्तर देना जरूरी समझती है क्योंकि जनता कोई सरकार तो होती नहीं है कि वह पत्रों को दबा कर बैठ जाये और हाँ या ना कुछ भी न कहे।
महाशयजी,
· इस जनता का कहना है कि उसकी समझ में यह फैसला आपके पक्ष में नहीं अपितु गुजरात के ट्रायल कोर्ट के पक्ष में है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने निष्पक्ष मानते हुए कहा है कि वह सही फैसला करने में सक्षम होगी। पर हमें समझ में नहीं आता कि आपको ऐसा क्यों लग रहा है कि जीत आपकी हुयी है और आप गुजरात कोर्ट से बाइज्जत बरी ही हो जायेंगे। जनता को आशंका है कि ऐसा करके कहीं आप अदालत की मानहानि तो नहीं कर रहे!
· आपका कहना है कि पिछले दस वर्षों से मुझे और गुजरात को सरकार को बदनाम करना फैशन बन गया था। पर महोदय गोधरा में साबरमती एक्सप्रैस की बोगी संख्या 6 में लगी आग के बाद एक ही समाज के जो तीन हजार लोग मार डाले गये थे, वे क्या आपको और आपके नेतृत्व में चलने वाली सरकार को बदनाम करने के लिए उड़ायी गयी खबर थी या सचमुच ही वैसा हुआ था। एक ही समुदाय के लगभग एक हजार लोगों का नरसंहार तो सरकार ने खुद ही माना है तथा लगभग दो हजार लोगों का अभी तक कोई पता नहीं है। इसके लिए सरकार की कमजोर जाँच और कमजोर अभियोजन के चलते अब तक किसी को कोई सजा नहीं मिली है और हत्यारे खुले आम आतंक फैलाते घूम रहे हैं।
· उपरोक्त घटना के बाद क्रिया की प्रतिक्रिया का सन्देश आपका ही था और प्रतिक्रिया में एक ही समुदाय के घरों और दुकानों को लूटा गया था उनमें आग लगा दी गयी थी, बलात्कार ही नहीं हुए थे, अपितु पेट फाड़ कर त्रिशूल से गर्भ के बच्चे को निकाल कर भी छेद दिया गया था। अपने घर को बन्द करके छुप गये लोगों के घर में पानी भर के उसमें करेंट छोड़ दिया गया था। इन घटनाओं को कोई कितनी भी विनम्रता से लिखे, पर किसी के भी खिलाफ सजा न पाने से सरकार की नेकनामी तो नहीं हो सकती। हो सकता है कि आप और आपके लोगों पर लगाये गये आरोप गलत हों और गवाहों को निर्भय, तथा सबूतों को निर्दोष मान कर अदालतें आपको मुक्त कर दें किंतु इतनी बड़ी संख्या में एक ही समुदाय के लोगों के नरसंहार के किसी भी अपराधी को सजा नहीं मिलेगी तो जनता केरल के सरकार को दोष देने तो नहीं जायेगी। दोष तो उसी सरकार को दिया जायेगा जिसका नेतृत्व आप कर रहे हैं।
· आप इस फैसले से अपने ऊपर लगे आरोपों पर खतरा कम हो जाने की कल्पना से मुदित हैं और सुषमा स्वराज से बधाइयाँ पा रहे हैं पर इस अवसर पर आपको शर्म क्यों नहीं महसूस हो रही कि गुजरात में ये कैसा शासन है कि आपके राज्य में इतने बड़े बड़े नरसंहार भी हो रहे हैं और दस साल तक किसी को सजा भी नहीं मिल रही।
· आप पर जब भी आँच आती है तब तब आप उसे गर्वीले गुजरात और उसकी पाँच करोड़ जनता की ओट लेकर अपने पाप ढकने की कोशिश करते हैं, पर गोधरा में साबरमती एक्सप्रैस की बोगी नम्बर 6 की आग में मरने वाले दो कार सेवकों समेत 59 लोग ही गुजराती नहीं थे अपितु बाद में मार डाले गये वे तीन हजार लोग भी गुजरात में पैदा हुये थे, गुजराती भाषा बोलते थे। अंतर केवल इतना था कि उनकी पूजा पद्धति और पूजा स्थल कुछ भिन्न थे। पिछले दस सालों में आपको उनका दर्द कभी क्यों नहीं सताया! यहाँ तक कि आपने साबरमती एक्सप्रैस की बोगी नम्बर 6 में मरे लोगों के परिवार वालों को दो लाख और बाकी गुजरात में मिली लाशों के परिवार वालों को एक लाख रुपये मुआवजा देने की घोषणा करके भी शर्म महसूस नहीं की थी।
· साबरमती एक्सप्रैस की बोगी नम्बर 6 को आग लगाने वाले आक्रोशित लोगों की दृष्टि साम्प्रदायिक नहीं रही होगी क्योंकि बन्द बोगी में किसी भी जाति धर्म के लोग हो सकते थे पर शेष गुजरात में जो लोग मारे गये वे चुन चुन कर एक ही समुदाय के लोग थे। उन्हीं के घर और दुकानें लूटी गयीं थीं। अब आप शांति और सद्भाव का मुखौटा ओढ कर कह रहे हैं कि जनता के लोग आपके विरोधियों की बात का भरोसा नहीं करेंगे। महोदय आप जनता को इतना अन्धा क्यों समझ रहे हैं। वह तंत्र की कमजोरियों के कारण मजबूर हो सकती है, पर इतनी मूर्ख नहीं हो सकती जितना कि आप मान कर चल रहे हैं। क्या अमर सिंह के साथ हुए घटनाक्रम से आपने कोई सबक नहीं लिया है।
फिर भी आपकी खुशफहमी आपको मुबारक हो। दुष्यंत कुमार ने कहा था-
वे मुतमईन हैं पत्थर पिघल नहीं सकता
मैं बेकरार हूं आवाज में असर के लिए
आपकी जनता
http://hastakshep.com से साभार
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