-एल. एस. हरदेनिया
                                                                                               
            राज्य सरकारों के जनसंपर्क (व केन्द्र सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय) का मुख्य कार्य सरकार की सोच और उसकी नीतियों को जनता तक पहुंचाना होता है। दूसरे शब्दों में, यह विभाग शासन एवं जनता के बीच संवाद के सेतु कायम करता है। जनसंपर्क विभाग की पत्र विज्ञप्तियां, प्रकाशन इत्यादि सरकार के अधिकृत व आधिकारिक दृष्टिकोण की वाहक होती हैं। 

मध्यप्रदेश  सरकार के जनसंपर्क विभाग ने हाल में एक किताब छापी है, जिसका शीर्षक है संकटमोचन हनुमान। पुस्तक के कवर पर लिखा है मध्यप्रदेश  जनसंपर्क का प्रकाशन। लगभग 400 पृष्ठों की इस पुस्तक के मुखपृष्ठ पर पर्वत उठाए हुए हनुमान जी का बड़ा सा चित्र है। इस पुस्तक के प्रकाक हैं श्री राके  श्रीवास्तव, आयुक्त, जनसंपर्क, मध्यप्रदे  शासन, भोपाल और संपादक हैं लाजपत आहूजा, अपर संचालक, जनसंपर्क। 

इस प्रकान के जरिए मध्यप्रदे सरकार ने प्रदे की जनता को आधिकारिक रूप से यह सूचित किया है कि पवनपुत्र हनुमान उसके सारे संकटों को हर लेंगे। चाहे वह अशिक्षा हो या गरीबी, चाहे वह स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव हो या पेयजल की अनुपलब्धता, चाहे वह बढ़ते हुए अपराध हों या फिर महंगाई डायन-बजरंग बली का नाम लेते ही ये सारी समस्याएं छूमंतर हो जावेंगी। 

कहने की आवष्यकता नहीं कि यह प्रकाशन अत्यंत आपत्तिजनक है।  किसी एक धर्म के देवी-देवताओं के प्रचार पर शासकीय धन खर्च करना पूर्णतः अनुचित है। इससे भी ज्यादा आपत्तिजनक यह है कि इस ग्रन्थ के माध्यम से  अंधविष्वासों को बढ़ावा दिया गया है। यह भी संविधान की मंशा के विपरीत है। संविधान ने राज्य को यह उत्तरदायित्व सौंपा है कि वह समाज से अंधविष्वासों का दमन  करे और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा दे। परंतु यह ग्रन्थ, अंधविष्वासों का खजाना है। इसमें हनुमान को ऐसा व्यक्तित्व बताया गया है जिसके पास प्रत्येक व्यक्ति और पूरे समाज व देश  की हर समस्या को हल करने के उपाय व शक्ति हैं। पुस्तक के प्रारंभ में लेखक अपनी बात में हनुमान की अपार शक्ति का विवरण देते हुए बताते हैं कि "हनुमान भूतों, प्रेतों,  पिशाचांे, दानवों, राक्षसों तथा चुड़ैलों आदि के शत्रु हैं और इन्हें अपने पैरो के नीचे दबाये रखते हैं ताकि ये किसी को सता न सकें। मेरे पिताजी ने मुझे हनुमान चालीसा की यह चौपाई  कंठस्थ करा दी थी कि भूत पिशाच निकट नहीं आवंे, महावीर जब नाम सुनावे। मेरे जीवन में कण्ठस्थ होने वाली यह पहली चौपाई थी। फिर तो जैसे मुझे दानवों से अभय मिल गया। अब मैं अकेले ही कही से भी निकल जाता हूँ  । उस पेड़ (जिस पर भूत रहता है) के पास पहुँचकर यह चौपाई पढ़ता हूँ  फिर पेड़ की ओर ऐसे देखता हूँ  मानो चुनौती दे रहा हूँ  कि कर ले! जो करना हो, मेरे पास हनुमान जी हैं। "

पुस्तक के उपसंहार में लेखक, हनुमान के पराक्रम की विस्तृत चर्चा करते हैं। लेखक के अनुसार हनुमान जब बालक थे तब भूख से व्याकुल होकर उन्होंने सूर्य को फल समझकर उसकी ओर छलांग  लगा दी और सूर्य को निगल लिया। बाद में उन्हें ऐसे वरदान मिले, जिनसे इनका ओज और तेज अन्यों के लिए असह्य हो गया। इन्द्र, ब्रम्हा, वरूण, यम, शिव एवं विश्वकर्मा आदि सभी ने इन्हें शस्त्रों से अवध्यता का वर प्रदान किया।    

वर्तमान सामाजिक संदर्भों में हनुमान की शक्ति की क्या उपयोगिता है, इस प्रश्न पर लेखक विस्तृत प्रकाश  डालता है। उन्हें इतने गुणों से संपन्न बताया गया है कि लेखक का दावा है कि वे (हनुमान जी) आज के भारत की समस्याओं का हल चुटकी बजाते ही कर देंगे।  यदि हम सूक्ष्म रूप से जांच करें तो पायेंगे कि समाज में मनुष्यता के भाव का तीव्र गति से  हास हो रहा है। आपसी द्वन्द, कलह, द्वेष, पाखंड, झूठ, अत्याचार, व्यभिचार, कपट, हिंसा और अराजकता का बोलबाला है। दिनों दिन नैतिक पतन हो रहा है। चोरी-चमारी, राहजनी, डकैती, उत्पीड़न व अनाचार चारों ओर मुँह बाए खड़े हैं। राग, द्वेष, लोभ, क्रोध और ईर्ष्या का साम्राज्य फैल रहा है। आज की राजनीति ने समाज में विद्वेष का जहर घोल दिया है। लोग गुटों में टूट रहे हैं, आपस में बंट रहे हैं, उलझ रहे हैं, मर रहे हैं। यह सब कराने वाले दूर से खड़े तमाशा देख रहे हैं। हजारों धर्मगुरू, हजारों के करोड़ शिष्य  तथा अरबों खरबों की संपत्ति के स्वामी होकर मठाधी बन बैठे हैं। अन्याय, अत्याचार और पाप के कीचड़ में आकंठ डूबे, ये धर्मगुरू सामान्य ही नहीं, पढ़े लिखे लोगों को भी गुमराह कर रहे हैं। ये संत नौकरी दिलाते हैं, स्थानांतरण कराते हैं, विधायक बनाते हैं, मंत्री बनाते हैं, सब चमत्कार दिखाकर, लोकव्यापी ग्लैमर एकत्र करके समपूज्य बने हुए हैं। यहां तक तो सब ठीक था, अब ये भगवान भी बनने लगे हैं। अपने को भगवान कहकर पुजाना, स्तुति कराना, आरती कराना, ग्लैमर दिखाना इनका धन्धा हो चुका हैं। अपने आराध्य की मूर्ति के समक्ष ये पाप के पहाड़ उठाये खड़े हैं। कोई ग्लानि नहीं, कोई पष्चाताप नहीं, वरन् अधिक उत्साह से कुत्सित कारनामों को अंजाम देते हैं। 

लेखक की राय में अनेक रोगों से ग्रस्त समाज का अब त्रिदेव (ब्रम्हा, विष्णु , शिव ) की पूजा से भी तारण  संभव नहीं है क्योंकि आज हमारे पास उतनी आध्यात्मिक ऊँचाई शेष नहीं बची है जिनसे इन महाशक्तियों की अपेक्षित स्तर पर पूजा-अर्चना की जा सके। अतः लेखक की राय में ऐसी स्थिति में हमें कलयुग के नायक युगदेवता हनुमान का ही एकमात्र आधार शेष बचता है जिनकी अर्चना, आराधना व उपासना से हम समस्त कलिप्रपंचांे व आपदाओं से निजात पाकर अपना मनोवांछित फल प्राप्त कर सकते हैं।

लेखक कहता है कि हनुमान का चरित्र आत्मसंयम का, धर्म का, कर्त्तव्य का, भक्ति का, शक्ति का, क्रांति का, विपत्ति से तारण का तथा जनकल्याण का सम्बल देता है। यदि हम श्री हनुमान की समग्र चरितावली का क्रम से पुनरावलोकन करें तो उसके अनुशीलन से, उनकी उपासना से हमें सभी संकटो से राहत मिलती दिखती है। लेखक का दावा है कि आज के सामाजिक संदर्भों में हनुमान जी के चरित्र का अनुशीलन आवष्यक है। उसका आचरण करने से समस्त संकटों से मुक्ति मिल सकती है। 

मध्यप्रदेश  शासन द्वारा प्रकाशित   इस ग्रन्थ का संदे  है कि यदि आप अपनी समस्याओं से मुक्ति चाहते हैं तो आपको कुछ भी करने की आवष्यकता नहीं है। यदि भ्रष्टाचार से मुक्ति पाना है तो लोकपाल की आवष्यकता नहीं है। हनुमान को याद करिये, भ्रष्टाचार रफूचक्कर हो जाएगा। अपराधियों पर नियंत्रण पाने के लिए न तो पुलिस, न ही अदालत और न ही जेल की आवष्यकता है। हनुमान चालीसा का पाठ करिये, अच्छे से अच्छा अपराधी नियंत्रण में आ जायेगा। कुल मिलाकर दे  और समाज को खुहाल बनाने का एकमात्र उपाय है हनुमान की उपासना। 

वैसे लेखक यह भूल गये कि हनुमान जी हमारे समाज व दे की सामूहिक स्मृति में बरसों से हैं। उनकी उपस्थिति के बावजूद हजारों साल से समाज में वे सब नकारात्मक तत्व हैं, जिनका उल्लेख लेखक करते हैं। हनुमान की उपासना भी उतनी ही प्राचीन है। फिर भी हम सदियों तक गुलाम रहे और हनुमान जी हमें आजादी नहीं दिला पाये। 

आरएसएस द्वारा नियंत्रित मध्यप्रदे  की भाजपा सरकार का राज्य को हिन्दू राष्ट्र बनाने की दिशा  में यह पहला कदम नहीं है। 
सच तो यह है कि किसी भी निष्पक्ष प्रेक्षक को ऐसा प्रतीत होना स्वाभाविक है कि मध्यप्रदेष, हिन्दू राष्ट्र बन चुका है। राज्य सरकार शायद यह मानकर चल रही है कि मध्यप्रदे  उस भारत का हिस्सा नहीं है, जिसका शासन सन् 1950 में लागू संविधान द्वारा संचालित होता है। शायद सरकार का यह मानना है कि मध्यप्रदे ,  संघ द्वारा स्थापित हिन्दू राष्ट्र की एक इकाई है। 

यही कारण है कि मध्यप्रदे में लागू सभी सरकारी विकास योजनाओं  का नामकरण हिन्दू देवी-देवताओं और कर्मकांडों के नाम पर किया गया है, प्रदे  के सभी स्कूलों में सूर्य नमस्कार होता है, गीता सार पढ़ाया जाता है, भोजन मंत्र का पठन होता है और वंदेमातरम की सभी पंिक्तयाँ गाई जाती हैं (सभी पंक्तियों वाला वंदेमातरम राष्ट्रीय गीत नहीं है)। मध्यप्रदे  वह राज्य है जहां ईसाईयों से सरकारी तंत्र पूछताछ करता है कि उनकी राजनैतिक विचारधारा क्या है, उनके चर्च और शिक्षण  संस्थाओं के लिए किन देशों से पैसा आता है। प्रदे  के मुख्यमंत्री गर्व से कहते हैं कि वे किसी हालत में सच्चर कमेटी की सिफारिशों  पर अमल नहीं करेंगे क्योंकि इससे देश  का एक और विभाजन हो जाएगा। मध्यप्रदेश में सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस की गतिविधियों में भाग लेने की स्वतंत्रता तो प्राप्त है ही, यहां के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सार्वजनिक मंच से सरकारी कर्मचारियों को शाखाओं में भाग लेने का न्यौता भी दे चुके हैं। 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं साम्प्रदायिकता के विरूद्ध प्रतिबद्ध कार्यकर्ता हैं)